माता वैष्णो देवी की अमर कथा (Mata Vaishno Devi Hindi Story)
Mata Vaishno devi story in Hindi : वैष्णो देवी उत्तरी भारत के सबसे पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर पहाड़ पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता व सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध है। वैष्णो देवी भी ऐसे ही स्थानों में एक है जिसे माता का निवास स्थान माना जाता है। मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन करते हैं।यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थस्थल है। वैसे तो माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन मुख्य 2 कथाएँ अधिक प्रचलित हैं।
माता वैष्णो देवी की प्रथम कथा
मान्यतानुसार एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने एक परम भक्तपंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई और पूरे सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई पर माँ वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं- ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस – पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। वहाँ से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए एकत्रित हुए। तब कन्या रुपी माँ वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।
भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। तब उसने कहा कि मैं तो खीर – पूड़ी की जगह मांस भक्षण और मदिरापान करुंगा। तब कन्या रुपी माँ ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किंतु भैरवनाथ ने जान – बुझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडऩा चाहा, तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। माँ ने वायु रूप में बदलकरत्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। माना जाता है कि माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे। मान्यता के अनुसार उस वक़्त भी हनुमानजी माता की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं।
इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है। इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्धक्वाँरी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते – भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई। तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से युद्ध किया।
भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी जब वीर हनुमान निढाल होने लगे, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा’ अथवा ‘भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी (बाएँ) पिंडी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। इन तीन भव्य पिण्डियों के साथ कुछ श्रद्धालु भक्तों एव जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व नरेशों द्वारा स्थापित मूर्तियाँ एवं यन्त्र इत्यादी है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी।
माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी, उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने को जाते हैं। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे, उन्होंने कई विधियों से ‘पिंडों’ की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली, देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं, वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।
माता वैष्णो देवी की अन्य कथा
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं में जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढऩे पर आदिशक्ति के सत, रज और तम तीन रूप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने अपनी सामूहिक बल से धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रकट की। यह कन्या त्रेतायुग में भारत के दक्षिणी समुद्री तट रामेश्वर में पण्डित रत्नाकर की पुत्री के रूप में अवतरित हुई। कई सालों से संतानहीन रत्नाकर ने बच्ची को त्रिकुता नाम दिया, परन्तु भगवान विष्णु के अंश रूप में प्रकट होने के कारण वैष्णवी नाम से विख्यात हुई। लगभग 9 वर्ष की होने पर उस कन्या को जब यह मालूम हुआ है भगवान विष्णु ने भी इस भू-लोक में भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया है। तब वह भगवान श्रीराम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी।
जब श्रीराम सीता हरण के बाद सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे। तब समुद्र तट पर ध्यानमग्र कन्या को देखा। उस कन्या ने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा। भगवान श्रीराम ने उस कन्या से कहा कि उन्होंने इस जन्म में सीता से विवाह कर एक पत्नीव्रत का प्रण लिया है। किंतुकलियुग में मैं कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें अपनी पत्नी रूप में स्वीकार करुंगा। उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत की श्रेणी में जाकर तप करो और भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो। जब श्री राम ने रावण के विरुद्ध विजय प्राप्त किया तब मां ने नवरात्रमनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी, त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।
किसके इंतजार में कुंवारी बैठी हैं माता वैष्णो देवी
जम्मू के त्रिकूट पर्वत पर एक भव्य गुफा है। इस गुफा में प्राकृतिक रूप से तीन पिण्डी बनी हुई। यह पिण्डी देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की है। भक्तों को इन्ही पिण्डियों के दर्शन होते हैं। लेकिन माता वैष्णो की यहां कोई पिण्डी नहीं है। माता वैष्णो यहां अदृश रूप में मौजूद हैं फिर भी यह स्थान वैष्णो देवी तीर्थ कहलता है। इसका कारण यह है कि माता यहां अदृश्य रूप में उस वचन के पूरा होने का इंतजार कर रही हैं जो भगवान श्री राम ने लंका से लौटते समय देवी त्रिकूटा को दिया था।
इस संदर्भ में कथा है कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के अंश से एक कन्या का जन्म दक्षिण भारत में रामेश्वरम तट पर पण्डित रत्नाकर के घर हुआ था। 9 वर्ष की उम्र में जब इन्हें पता चला कि भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया तब देवी त्रिकूटा ने राम को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी। सीता हरण के बाद भगवान राम जब सीता को ढूंढते हुए रामेश्वरम तट पर पहुंचे। यहां राम और त्रिकूटा की पहली मुलाकात हुई। देवी त्रिकूटा ने राम को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की।
भगवान राम ने देवी त्रिकूटा से कहा कि मैंने इस अवतार में एक पत्नी व्रत रहने का वचन लिया है। मेरा विवाह सीता से हो चुका है इसलिए मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता है। देवी त्रिकूटा ने जब बहुत अनुनय विनय किया तब श्री राम ने कहा कि लंका से लौटते समय मैं आपके पास आऊंगा अगर आप मुझे पहचान लेंगी तो मैं आपसे विवाह कर लूंगा।
श्री राम ने अपने वचन का पालन किया और लंका से लौटते समय देवी त्रिकूटा के पास आए लेकिन भगवान राम की माया के कारण देवी त्रिकूटा उन्हें पहचान नहीं सकी। त्रिकूटा के दुःख को दूर करने के लिए श्री राम ने कहा कि देवी आप त्रिकूट पर्वत पर एक दिव्य गुफा है उस गुफा में तीनों महाशक्तियां महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली पिण्डी रूप में विराजमान हैं।
आप उसी गुफा में जाकर मेरी प्रतिक्षा कीजिए। कलयुग में जब मेरा अवतार होगा तब मैं आकर आपसे विवाह करुंगा। तब तक महावीर हनुमान आपकी सेवा में रहेंगे और धर्म की रक्षा में आपकी सहायता करेंगे। धर्म का पालन करने वाले भक्तों की आप मनोकामना पूरी कीजिए। भगवान राम के आदेश के अनुसार आज भी वैष्णो माता उनकी प्रतिक्षा कर रही हैं और अपने दरबार में आने वाले भक्त के दुःख दूर कर उनकी झोली भर रही हैं।
maata vaishno devee kee amar katha (maata vaishno devee hindee kahaanee)
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maata vaishno devee kee pratham katha
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