इस गहरे कविता में, हर अंश जीवन का, शिव के अभाव में अधूरा महसूस होता है। आत्मीयता की गहराई में डूबकर, आत्म-साक्षात्कार में पूर्णता की प्राप्ति करें, ‘मेरे प्राण शिव बिन अधूरे हैं’ – शिव के बिना मेरा जीवन अधूरा है।
मेरी देह शिव बिन अधूरी है
मेरा सम्मान शिव बिन अधुरा है
मेरा मान शिव बिन अधुरा है
मेरा ज्ञान शिव बिन अधुरा है
मेरी पहचान शिव बिन अधूरी है
मेरे संस्कार शिव बिन अधूरे ह
मेरा संसार शिव बिन अधुरा है
मेरा स्वाभिमान शिव बिन अधुरा है
मेरा ध्यान शिव बिन अधुरा है
मेरा मस्तक शिव बिन अधुरा है
मेरा अंतिम वस्त्र शिव बिन अधुरा है
मेरी अंतिम यात्रा शिव बिन अधूरी है
और:
जीवन की राहों में, जब हो अंधकार,
मेरे प्राण, शिव बिना, लगे हैं अधूरे।
हर रोज़ मंदिर की ओर, चलता मन लहराये,
शिव की ध्यान बिना, सब सुना है सुना है व्यर्थ लगे।
ध्यान लगाए जब मूर्ति पे, बस भक्ति की भावना,
मिटती सारी चिंताएँ, मिलता है अंतर शांति का स्वर्ग जैसा अनुभव।
हर पल हर दिन, शिव का ही स्मरण करूँ,
जीवन के सभी मार्गों पर, उनकी कृपा से चलूँ।
मेरे प्राण, शिव बिना, जैसे कोई गाना अधूरा,
उनके चरणों में ही, मिलता है जीवन का सारा अर्थ और उद्देश्य अधूरे।