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महानवमी

MahaNavmi
MahaNavmi

महानवमी 

हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या फिर मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘महानवमी’ कहा जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले ‘नवरात्र’ में नवमी की तिथि ‘महानवमी’ कहलाती है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजाविशेष रूप से की जाती है। यह दुर्गापूजा उत्सव ही है।[1] महानवमी के दिन भक्तजन कुमारी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं तथा दान आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।

माँ सिद्धिदात्री

हिन्दू धर्म में विशेष रूप से पूजनीय और नौ दिनों तक चलने वाले ‘नवरात्र’ का समापन महानवमी पर होता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के व्रत में हर तरफ़ भक्तिमय माहौल रहता है। नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है। माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती हैं। आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं। जैसा कि माँ के नाम से ही प्रतीत होता है, माँ सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं। हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है।[2]

कन्या पूजन

‘नवरात्र’ के अंतिम दिन महानवमी पर कन्या पूजन का विशेष विधान है। इस दिन नौ कन्याओं को विधिवत तरीके से भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा देकर आशिर्वाद मांगा जाता है। इनके पूजन से दु:ख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। कन्या पूजन में कन्या की आयु के अनुसार फल प्राप्त होते हैं, जैसे-

  1. ‘त्रिमूर्ति’ – तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ मानी जाती है। इनके पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
  2. ‘कल्याणी’ – चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ के नाम से संबोधित की जाती है। ‘कल्याणी’ की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  3. ‘रोहिणी’ – पाँच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
  4. ‘कालिका’ – छ:वर्ष की कन्या ‘कालिका’ की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
  5. ‘चण्डिका’ – सात वर्ष की कन्या ‘चण्डिका’ के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
  6. ‘शाम्भवी’ – आठ वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’ की पूजासे वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।
  7. ‘दुर्गा’ – नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
  8. ‘सुभद्रा’ – दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ कही जाती है। ‘सुभद्रा’ के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।[2]

पूजन विधि

वैसे तो ‘महानवमी’ पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए, लेकिन अगर ऐसा संभव ना हो सके तो कुछ आसान तरीकों से माँ को प्रसन्न किया जा सकता है। सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार ‘नवरात्र’ का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मंत्र

देवी की स्तुति के लिए निम्न मंत्र कहा गया है-

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

ध्यान मंत्र

वन्दे वंछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥

स्तोत्र मंत्र

कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

कवच मंत्र

ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥

भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है, जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यों में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं।[2] कामनाओं की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने से कर्ता देवी लोक को जाता है।[3]

 

भगवान राम

रामनवमी

‘महानवमी’ के साथ ही आज के दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में भगवान राम का जन्म दिवस यानि ‘रामनवमी’ भी मनाई जाती है। भगवान राम ने आज ही के दिन अयोध्या के राजा दशरथ के घर जन्म लिया था। सदाचार के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था। भगवान राम को उनके सुख-समृद्धि पूर्ण व सदाचार युक्‍त शासन के लिए याद किया जाता है। उन्‍हें भगवानविष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर राक्षसों के राजा रावण से युद्ध लड़ने के लिए आए थे। आज के दिन अयोध्या में इस पर्व की धूम देखते ही बनती है।

श्रीकृष्ण द्वारा माँ की स्तुति

‘नवरात्रि’ के पर्व पर श्रद्धा और प्रेमपूर्वक महाशक्ति भगवती के नौ रूपों की उपासना करने से यह निर्गुण स्वरूपा देवी पृथ्वी के सारे जीवों पर दया करके स्वयं ही सगुणभाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप से उत्पत्ति, पालन और संहार कार्य करती हैं। ऐसी नवदुर्गा के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण माता की स्तुति में कहते हैं-

 

श्रीकृष्ण

त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्‌।
परब्रह्मास्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्पर॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमंगलमंगला॥

अर्थात “तुम्हीं विश्वजननी मूल प्रकृति ईश्वरी हो, तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो। तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परम तेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वाबीजस्वरूप, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो।”

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Mahaanavamee

hindoo dharm men bahut hee mahattvapoorṇa maanee jaatee hai. Aashvin maah men shukl pakṣ kee navamee yaa kaartik maah men shukl pakṣ kee navamee yaa fir maargasheerṣ maah men shukl pakṣ kee navamee ko ‘mahaanavamee’ kahaa jaataa hai. Nau dinon tak chalane vaale ‘navaraatr’ men navamee kee tithi ‘mahaanavamee’ kahalaatee hai. Is din devee durgaa ke nauven svaroop maan siddhidaatree kee poojaavisheṣ roop se kee jaatee hai. Yah durgaapoojaa utsav hee hai.[1] mahaanavamee ke din bhaktajan kumaaree kanyaa_on ko apane ghar bulaakar bhojan karaate hain tathaa daan aadi dekar puṇay laabh arjit karate hain. Maan siddhidaatree

hindoo dharm men visheṣ roop se poojaneey aur nau dinon tak chalane vaale ‘navaraatr’ kaa samaapan mahaanavamee par hotaa hai. Nau dinon tak chalane vaale navaraatr ke vrat men har tarapha bhaktimay maahaul rahataa hai. Navamee ke din maataa siddhidaatree kee poojaa hotee hai. Maan durgaa apane nauven svaroop men siddhidaatree ke naam se jaanee jaatee hain. Aadi shakti bhagavatee kaa navam roop siddhidaatree hai, jinakee chaar bhujaa_en hain. Unakaa aasan kamal hai. Daahinee or neeche vaale haath men chakr, oopar vaale haath men gadaa, baa_ii or se neeche vaale haath men shnkh aur oopar vaale haath men kamal puṣp hai. Maan siddhidaatree sur aur asur donon ke lie poojaneey hain. Jaisaa ki maan ke naam se hee prateet hotaa hai, maan sabhee ichchhaa_on aur maangon ko pooraa karatee hain. Aisaa maanaa jaataa hai ki devee kaa yah roop yadi bhakton par prasann ho jaataa hai, to use 26 varadaan milate hain. Himaalay ke nndaa parvat par siddhidaatree kaa pavitr teerth sthaan hai.[2]

kanyaa poojan

‘navaraatr’ ke antim din mahaanavamee par kanyaa poojan kaa visheṣ vidhaan hai. Is din nau kanyaa_on ko vidhivat tareeke se bhojan karaayaa jaataa hai aur unhen dakṣiṇaa dekar aashirvaad maangaa jaataa hai. Inake poojan se duahkh aur daridrataa samaapt ho jaatee hai. Kanyaa poojan men kanyaa kee aayu ke anusaar fal praapt hote hain, jaise-

‘trimoorti’ – teen varṣ kee kanyaa ‘trimoorti’ maanee jaatee hai. Inake poojan se dhan-dhaany kaa aagaman aur snpoorṇa parivaar kaa kalyaaṇa hotaa hai.
‘kalyaaṇaee’ – chaar varṣ kee kanyaa ‘kalyaaṇaee’ ke naam se snbodhit kee jaatee hai. ‘kalyaaṇaee’ kee poojaa se sukh-samriddhi kee praapti hotee hai.
‘rohiṇaee’ – paanch varṣ kee kanyaa ‘rohiṇaee’ kahee jaatee hai. Isake poojan se vyakti rog-mukt hotaa hai.
‘kaalikaa’ – chhahvarṣ kee kanyaa ‘kaalikaa’ kee archanaa se vidyaa, vijay, raajayog kee praapti hotee hai.
‘chaṇaḍaikaa’ – saat varṣ kee kanyaa ‘chaṇaḍaikaa’ ke poojan se aishvary milataa hai.
‘shaambhavee’ – aaṭh varṣ kee kanyaa ‘shaambhavee’ kee poojaase vaad-vivaad men vijay tathaa lokapriyataa praapt hotee hai.
‘durgaa’ – nau varṣ kee kanyaa ‘durgaa’ kee archanaa se shatru kaa snhaar hotaa hai tathaa asaadhy kaary siddh hote hain.
‘subhadraa’ – das varṣ kee kanyaa ‘subhadraa’ kahee jaatee hai. ‘subhadraa’ ke poojan se manorath poorṇa hotaa hai tathaa lok-paralok men sab sukh praapt hote hain.[2] poojan vidhi

vaise to ‘mahaanavamee’ par maan siddhidaatree kee poojaa poore vidhi-vidhaan se karanee chaahie, lekin agar aisaa snbhav naa ho sake to kuchh aasaan tareekon se maan ko prasann kiyaa jaa sakataa hai. Siddhidaatree kee poojaa karane ke lie navaann kaa prasaad, navaras yukt bhojan tathaa nau prakaar ke fal-fool aadi kaa arpaṇa karanaa chaahie. Is prakaar ‘navaraatr’ kaa samaapan karane se is snsaar men dharm, arth, kaam aur mokṣ kee praapti hotee hai. Mntr

devee kee stuti ke lie nimn mntr kahaa gayaa hai-

yaa devee sarvabhooteṣu maatriroopeṇaasnsthitaa. Namastasyai namastasyai namastasyai namo namah॥

Dhyaan mntr

vande vnchhitamanaroraarthechandraarghakritashekharaam. Kamalasthitaachaturbhujaasiddhi yashasvaneem॥
svarṇaavarṇaanirvaaṇaachakrasthitaanavam durgaa trinetraam. Shnkh, chakr, gadaa padamadharaa siddhidaatreebhajem॥
paṭaambaraparidhaanaansuhaasyaanaanaalnkaarabhooṣitaam. Mnjeer, haar keyoor, kinkiṇairatnakuṇaḍaalamaṇaḍaitaam॥
prafull vadanaapallavaadharaakaant kapolaapeenapayodharaam. Kamaneeyaanlaavaṇayaankṣeeṇaakaṭinnimnanaabhinnitambaneem॥

stotr mntr

knchanaabhaa shnkhachakragadaamadharaamukuṭojvalaan. Smeramukheeshivapatneesiddhidaatreenamoastute॥
paṭaambaraparidhaanaannaanaalnkaarabhooṣitaan. Nalinasthitaanpalinaakṣeensiddhidaatreenamoastute॥
paramaanndamayeedevi parabrahm paramaatmaa. Paramashakti,paramabhaktisiddhidaatreenamoastute॥
vishvakateenvishvabharteevishvahateenvishvapreetaa. Vishvíchataavishvateetaasiddhidaatreenamoastute॥
bhuktimuktikaaraṇaeebhaktakaṣṭanivaariṇaee. Bhavasaagar taariṇaee siddhidaatreenamoastute.. Dharmaathakaamapradaayineemahaamoh vinaashinee. Mokṣadaayineesiddhidaatreesiddhidaatreenamoastute॥

kavach mntr

onkaarah paatusheerṣomaan, ain beejnmaan hridayo. Heen beejnsadaapaatunabhogrihochapaadayo॥
lalaaṭ karṇaoshreenbeejnpaatukleenbeejnmaan netr ghraaṇao. Kapol chibukohasauahpaatujagatprasootyaimaan sarv vadano॥

bhagavatee siddhidaatree kaa dhyaan, stotr, kavach kaa paaṭh karane se nirvaaṇa chakr jaagrat hotaa hai, jisase rriddhi, siddhi kee praapti hotee hai. Kaaryon men chale aa rahe vyavadhaan samaapt ho jaate hain.[2] kaamanaa_on kee poorti hotee hai. Is vrat ko karane se kartaa devee lok ko jaataa hai.[3]

bhagavaan raam

‘mahaanavamee’ ke saath hee aaj ke din bhaarat ke vibhinn hisson men bhagavaan raam kaa janm divas yaani ‘raamanavamee’ bhee manaa_ii jaatee hai. Bhagavaan raam ne aaj hee ke din ayodhyaa ke raajaa dasharath ke ghar janm liyaa thaa. Sadaachaar ke prateek maryaadaa puruṣottam bhagavaan shreeraam kaa janm shukl pakṣ kee navamee ko huaa thaa. Bhagavaan raam ko unake sukh-samriddhi poorṇa v sadaachaar yuk‍t shaasan ke lie yaad kiyaa jaataa hai. Un‍hen bhagavaanaviṣṇau kaa avataar maanaa jaataa hai, jo prithvee par raakṣason ke raajaa raavaṇa se yuddh ladne ke lie aae the. Aaj ke din ayodhyaa men is parv kee dhoom dekhate hee banatee hai. Shreekriṣṇa dvaaraa maan kee stuti

‘navaraatri’ ke parv par shraddhaa aur premapoorvak mahaashakti bhagavatee ke nau roopon kee upaasanaa karane se yah nirguṇa svaroopaa devee prithvee ke saare jeevon par dayaa karake svayn hee saguṇaabhaav ko praapt hokar brahmaa, viṣṇau aur mahesh roop se utpatti, paalan aur snhaar kaary karatee hain. Aisee navadurgaa ke baare men svayn bhagavaan shreekriṣṇa maataa kee stuti men kahate hain-

shreekriṣṇa

tvamev sarvajananee moolaprakritireeshvaree. Tvamevaadyaa sriṣṭividhau svechchhayaa triguṇaatmikaa॥
kaaryaarthe saguṇaa tvn ch vastuto nirguṇaa svayam‌. Parabrahmaasvaroopaa tvn satyaa nityaa sanaatanee॥
tejahsvaroopaa paramaa bhaktaanugrahavigrahaa. Sarvasvaroopaa sarveshaa sarvaadhaaraa paraatpar॥
sarvabeejasvaroopaa ch sarvapoojyaa niraashrayaa. Sarvagyaa sarvatobhadraa sarvamngalamngalaa॥

arthaat “tumheen vishvajananee mool prakriti iishvaree ho, tumheen sriṣṭi kee utpatti ke samay aadyaashakti ke roop men viraajamaan rahatee ho aur svechchhaa se triguṇaatmikaa ban jaatee ho. Yadyapi vastutah tum svayn nirguṇa ho tathaapi prayojanavash saguṇa ho jaatee ho. Tum parabrahmasvaroop, saty, nity evn sanaatanee ho. Param tejasvaroop aur bhakton par anugrah karane hetu shareer dhaaraṇa karatee ho. Tum sarvasvaroopaa, sarveshvaree, sarvaadhaar evn paraatpar ho. Tum sarvaabeejasvaroop, sarvapoojyaa evn aashrayarahit ho. Tum sarvagy, sarvaprakaar se mngal karane vaalee evn sarv mngalon kee bhee mngal ho.”

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