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मन की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं

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एक दिन स्वामी विवेकानंद एक अंग्रेज मि.मूलर के साथ टहल रहे थे। उसी समय एक पागल सांड तेजी से उनकी ओर बढ़ने लगा। अंग्रेज सज्जन भाग कर पहाड़ी के दूसरी छोर पर जा खड़े हुए।

स्वामीजी ने उन्हें सहायता पहुंचाने का कोई और उपाय न देख खुद सांड के सामने खड़े हो गए। तब मिस्ट मूल देखकर दंग रह गए।

जब स्वामी जी से मि. मूलर ने पूछा कि आपको सांड के सामने डर नहीं लगा तब वह बोले उस समय उनका मन हिसाब करने में लगा हुआ था कि सांड उन्हें कितनी दूर फेंकेगा।

लेकिन कुछ देर बाद वह ठहर गया और पीछे हटने लगा। अपने कायरतापूर्ण पलायन पर मि. मूलर बड़े लज्जित हुए।

मिस्टर मूलर ने पूछा कि वे ऐसी खतरनाक स्थिति से सामना करने का साहस कैसे जुटा सके? स्वामीजी ने पत्थर के दो टुकड़े उठाकर उन्हें आपस में टकराते हुए कहा, खतरे और मृत्यु के समक्ष मैं स्वयं को चकमक पत्थर के समान सबल महसूस करता हूं, क्योंकि मैंने ईश्वर के चरण स्पर्श किये हैं।

In English

One day Swami Vivekananda was walking with an Englishman Mr. Moeller. At the same time a crazy bull rapidly started moving towards them. The Englishmen ran away and stood at the other end of the hill.

Swamiji did not see any other way to help him, standing in front of the bull himself. Then look stunned after seeing the original.

When Mr. Mular asked if you did not fear in front of the bull, then he said, at the time that he was about to calculate his mind how far the bull would throw him.

But after some time he stopped and started retreating. Mr. on his funeral The master was ashamed.

Mr. Muller asked how he could dare to face such a dangerous situation. Swamiji picked up two pieces of stone and collided with each other and said, before the danger and death, I feel like the Flint, because I touched the feet of God.

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