ऊंचे ओहदे के सरकारी अफसर के बंगले पर आज आने मिलने वालों की लाईन लगी थी सबके हाथ में मिठाई के डब्बों के साथ अलग से एक और डब्बा भी था । आज दीपावली का मिलन समारोह का अवसर जो था शहर के व्यापारी तोहफे के ज़रिए अपनी धौंस जमाने में लगे थे । तोहफे का डिपार्टमेंट सरकारी अफसर की सुघड़ पत्नी ने संभाल रखा था ।
“दिवाली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं आप सब को कोई भी बिना भोजन किए नहीं जायेगा” सुघड़ पत्नी ने हाथ जोड़कर ये कहते हुए अपनी दरियादिली दिखाई ।
बैठक में सारे तोहफे रखे हुए थे नाईटी पहने सुघड़ पत्नी ने सारे मिठाई के डब्बे खोलने शुरू किए ।
“स्वीटहार्ट पहले तुम तोहफे खोलो मिठाई के डिब्बे बाद में खोलना” पतिदेव ने सलाह दी ।
“ये देखिए आप…मैं अभी तक बीस डिब्बे खोल चुकीं हूॅं दो डब्बे छोड़ कर बाकी सबमें सिर्फ़ मिठाई ही है शर्म आती है मुझे इस शहर के व्यापारियों पर । याद करो पिछली पोस्टिंग में दीपावली पर मज़ाल जो बिना सोने की चेन के कोई भी मिठाई का डिब्बा आया हो ।”
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रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं