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मोहन कहे माँ हमे ग्वालिन छ्कावे


मोहन कहे माँ हमे ग्वालिन छ्कावे,

मोरी बंसी लेले नचावे मांगू तो ठेंगा दिखावे
मोहन कहे माँ हमे ग्वालिन छ्कावे,

मोर मुकट वे उतार के देखा
माथे तिगुली स्टावे
मोहन कहे माँ हमे ग्वालिन छ्कावे,

खोल पीताम्बर की कशनी हमारी,
चुनरी मोहे पहिनावे
मोहन कहे माँ हमे ग्वालिन छ्कावे,

केहत सखी सुनो कान्हा को राधा
दुल्हिन बना के नचावे
मोहन कहे माँ हमे ग्वालिन छ्कावे,,,,,,,,,


प्रबल प्रेम के पाले पड़ के,
प्रभु का नियम बदलते देखा ।
अपना मान भले टल जाए,
भक्त का मान न टलते देखा ॥

जिनकी केवल कृपा दृष्टी से,
सकल विश्व को पलते देखा ।
उसको गोकुल के माखन पर,
सौ-सौ बार मचलते देखा ॥

जिसका ध्यान बिरंची शम्भू,
सनकादिक न सँभालते देखा ।
उसको बाल सखा मंडल में,
लेकर गेंद उछालते देखा ॥

जिसके चरण कमल कमला के,
करतल से ना निकलते देखा ।
उसको गोकुल की गलियों में,
कंटक पथ पर चलते देखा ॥

जिसकी वक्र भृकुटी के भय से,
सागर सप्त उबलते देखा ।
उसको माँ यशोदा के भय से,
अश्रु बिंदु दृग ढलते देखा ॥

प्रबल प्रेम के पाले पड़ के,
प्रभु का नियम बदलते देखा ।
अपना मान भले टल जाए,
भक्त का मान न टलते देखा ॥

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