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मृत्यु के क्षण में लोग तड़फते क्यों हैं

हमारी कामनाओं को पूरा करने का अवसर शेष नहीं बचेगा, यह बात भयभीत करती है। इच्छाएं अधूरी रह जाएंगी, वासना पूर्ति का मौका नहीं मिलेगा। “भविष्य का खत्म होना” हमें डराता है, ना कि मौत का आना। इसलिए जो व्यक्ति कामनाओं के पार उठ गया, वर्तमान क्षण में आनंदित हो गया, वह मृत्यु से नहीं डरता।

मृत्यु के क्षण में लोग तड़फते क्यों हैं?

तुमने किसी पक्षी को मरते देखा ? ऐसे सरल, ऐसे सहज, चुपचाप विदा हो जाता है! पंख भी नहीं फड़फड़ाता। शोरगुल भी नहीं मचाता। पक्षी तो इतने चुपचाप विदा हो जाते हैं, इतनी सरलता से विदा हो जाते हैं! ज़रा नोच-खचोंट नहीं। ज़रा शोरगुल नहीं।
तुमने पशुओं को मरते देखा? मौत में भी एक अपूर्व शांति होती है।
आदमी को मरते देखो–कितना उपद्रव मचाता है, कितना रोकने की अपने को चेष्टा करता है! क्या होगा कारण? कारण हैः जिंदगी व्यर्थ गई और मौत आ गई। अब आगे कोई समय न बचा। खाली आए खाली गए, कुछ भराव नहीं और यह मौत आ गई।

तड़फे न आदमी तो क्या करे ?

भरे हुए आदमी ही शांति से मर सकते हैं। हां, बुद्ध विदा होते हैं शांति से, उल्लास से, उमंग से; जैसे किसी प्यारी यात्रा पर जाते हों! ज़रा भी क्षण-भर को भी, कण-भर को भी मोह नहीं होता इस तट से बंधे रहने का।
छोड़ देते अपनी नाव उस पार जाने को। खोल देते अपने पंख। विराट की पुकार आ गई, आवाज आ गई, संदेश आ गया। रुकना कैसा? फिर इस तट को खूब जी लिया, मन भर कर जी लिया जी भरकर जी लिया! इस तट के गीत भी सुन लिए, इस तट का गीत भी गा लिया। इस तट के नृत्य भी देख लिए, इस तट का नाच भी नाच लिया। इस तट पर जो भी सुंदर था, जो भी मूल्यवान था, सबका स्वाद ले लिया। जाने की घड़ी आ ही गई। अब और तटों पर होंगे। अब और नृत्य और गीत उठेंगे। अब और दीए जलेंगे। एक उल्लास है। एक जाने की तत्परता है। अगर गीत न गाया गया हो तो मुश्किल खड़ी होती है।

मृत्यु के क्षण में लोगों की तड़प कई कारणों से हो सकती है, जिसमें शारीरिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक पहलू शामिल हैं। यहाँ कुछ संभावित कारण दिए गए हैं:

  1. शारीरिक पीड़ा: कई बार मृत्यु की प्रक्रिया में व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा और असुविधा हो सकती है, खासकर यदि वे किसी बीमारी या चोट से पीड़ित हों।
  2. भय और अनिश्चितता: मृत्यु का सामना करते समय, कई लोगों को अज्ञात के प्रति भय होता है। जीवन से अलग होने की भावना, प्रियजनों से बिछड़ने का दुःख, और जीवन के बाद क्या होगा इसकी अनिश्चितता तड़प का कारण बन सकती है।
  3. अधूरी इच्छाएँ और पछतावा: व्यक्तियों को उनके जीवन में अधूरी इच्छाओं, अनसुलझे मामलों, या पछतावे के कारण मृत्यु के समय तड़प महसूस हो सकती है।
  4. आध्यात्मिक और मानसिक संघर्ष: कुछ संस्कृतियों और धर्मों में माना जाता है कि मृत्यु के समय आध्यात्मिक और मानसिक संघर्ष हो सकते हैं, जहां व्यक्ति अपने कर्मों और जीवन के निर्णयों का मूल्यांकन करता है।
  5. श्वास संबंधी समस्याएँ: मृत्यु के समय श्वास संबंधी समस्याएँ, जैसे कि चेयन-स्टोक्स श्वास (एक प्रकार की अनियमित श्वास) हो सकती हैं, जो तड़प का कारण बन सकती हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि मृत्यु के समय व्यक्ति को सहानुभूति, समर्थन, और यथासंभव आराम प्रदान किया जाए। पैलिएटिव केयर और हॉस्पिस सेवाएँ इस समय व्यक्ति और उनके परिवारों को शांति और सहायता प्रदान कर सकती हैं।

मृत्यु पीड़ा है, क्योंकि गीत गाया नहीं गया है।
गीत गाने की तो बात दूर, साज भी टूट गया है। वीणा के तार भी उखड़ गए हैं। वाद्य भी विकृत हो गया है। आवाज भी मर गई है। यह आवाज जो गीत गाने को दी गई थी, गालियां देते-देते मर गई है।
ये प्राण जो प्रार्थना के लिए दिए थे, इनका प्रार्थना से तो कोई संबंध ही न जुड़ा; ये तो पद-प्रतिष्ठा की आपा-धापी में ही टूट गए हैं, उखड़ गए हैं।

ये धड़कनें जो परमात्मा के साथ नाचने के लिए थीं, इन्हें तो बड़े सस्ते में बाजार में बेच आए हो
आत्मा बेच कर मरते हैं लोग, तो रोते हुए मरते हैं।
अपना गीत तो निश्चित गाना है। और यह गीत तुम्हारे गाए नहीं गाया जा सकता। तुम्हें राह देनी है कि परमात्मा गा सके। और यह गीत जब गाया जाता है तो पता चलता है अपना है न पराया है, उसका है।

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