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मुंशी प्रेमचंद की कहानी: अपनी करनी!!

ओह हो! मेरे ही कर्मों की वजह से आज मैं इतना अभागा महसूस कर रहा हूं। मेरे ऊपर आज अपमान भी हंसता होगा, क्योंकि मैंने खुद अपने हाथों से सब कुछ उजाड़ दिया। एक साल पहले मैं इतना किस्मत वाला था, क्या ही कहूं। आराम की जीवन, अच्छी सेहत, पत्नी और दो प्यारे बच्चे, ऊंचा घराना उसपर पढ़ा-लिखा होने के बाद भी मैंने खुद ही ऐसी हालत कर ली है। एक इंसान को जो कुछ भी एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए चाहिए, वो सब मेरे पास था। मैं अब किसी योग्य नहीं, क्योंकि मैंने किसी चीज की कदर ही नहीं की।

मेरे जीवन में ऐसी महिला थी, जिसने मुझमें लाख बुराई होने के बाद भी कुछ बुरा नहीं कहा। कभी गुस्सा नहीं किया। मैं ऐसा हूं कि दीवानगी के नशे में चूर होकर उसे इज्जत नहीं की। उसे तड़पाया, रुलाया और मन-ही-मन खूब जलाया भी। उफ्फ! उसे कितना धोखा दिया और अंधेरे में रखा। देर रात घर आते हुए न जाने कितने बहाने बनाए। रोज नई कहानी बना लेता था। क्या वो मेरे झूठे प्यार के दिखावे को नहीं समझी होगी? मेरा झूठ-फरेब क्या छिपा रह सकता था? भले ही वो अच्छी और भोली थी, लेकिन बेवकूफ नहीं।

मैं जितना झूठा था, वो उतनी सच्ची। मैं जितना गलत व्यवहार करता, वो उतना अच्छा करती। उसे दुनिया के सामने हमारे रिश्ते का मजाक उड़ाना पसंद नहीं था, इसलिए वो मेरे व्यवहार का जिक्र लोगों के सामने कभी नहीं करती थी। शायद उसे हमेशा लगता था कि मैं एक दिन सुधर जाऊंगा और मेरे सिर से ये नशा उतर जाएगा। काश! वो इतनी अच्छी न होती। वो अपने हक के लिए मुझसे लड़ती।

इसी बीच एक दिन मैं आनंद वाटिका मछलियों का करतब देखने गया। वहां मेरी नजर अचानक एक लड़की पर गई, जो फूल तोड़ रही थी। उसके कपड़े मेले थे और वो छोटी उम्र की लड़की थी, जिस वजह वो ताजगी भरी लग रही थी। इसके अलावा, उस लड़की में ऐसी कोई खास बात नहीं थी। कुछ ही देर में उस लड़की ने मेरी तरफ देखा और इस तरह से नजरें फेरी जैसे मैं वहां मौजूद ही नहीं। ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था। मैं इससे परेशान होकर धीरे-धीरे उन फूलों की झाड़ियों के पास पहुंच गया और खुद भी फूल चुनने लगा। मुझे देखते ही माली की वो बेटी बाग के दूसरी दिशा में जाकर फूल चुनने लगी।

उसी दिन से मैं रोज उस आनंद वाटिका में जाने लगा। ऐसा नहीं था कि मुझे उस लड़की से प्यार हो गया था। बस कुछ पाने का मोह मुझे वहां खींचकर ले जाता था। मैं रोज रूप बदलकर वहां जाता, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता। प्यार की बातें होना तो दूर की बात थी, वो मेरी तरफ देखती भी नहीं थी। इस योजना से जब काम नहीं चला, तो मैंने नई तरकीब सोची।

अगले दिन मैं अपने बुलडॉग टॉमी के साथ आनंद वाटिका गया। जैसे ही वो लड़की अपने आंचल में फूल भरकर बाग से जाने लगी, मैंने अपने टॉमी को उसकी तरफ जाने का इशारा कर दिया। वो बुलडॉग भौंकते हुए तेजी से उस लड़की की ओर दौड़ा। वो अपने पीछे कुत्ता देखकर चीखते हुए तेजी से भागी और कुछ ही दूरी पर गिर गई। मैं भी फटाफट छड़ी लेकर वहां गया और अपने टॉमी को एक दो मार लगा दी। उसके बाद फूलमती के आंचल से जमीन पर गिरे फूलों को समेटकर उसे हाथों से पकड़ कर बैठा दिया। फिर उससे दुखी होकर पूछा कि तुम्हें लगी तो नहीं? यह बुलडॉग बदमाश हो गया है। इसने काटा तो नहीं?

उस लड़की ने दुपट्टे से मुंह को ढकते हुए कहा कि तुमने समय पर आकर बचा लिया, वरना ये मार ही डालता। अपनी तारीफ उससे सुनकर मन को अच्छा लगा और दिल जोर से धड़का। मेरे मन में हुआ कि यह तरीका काम कर गया है। उस दिन से उस फूलमती से मेरी बातें होनी शुरू हुई। उसके बाद मैंने जाल फलाया, बातें रची और न जाने क्या-क्या किया। इन सब तरकीबों के बारे में दिल फेक किस्म के सारे लोग जानते हैं। ऐसा नहीं था कि मैं उस लड़की के सौंदर्य से प्रभावित था, क्योंकि मेरी पत्नी इंदु से सुंदर कोई हो ही नहीं सकती थी। फिर भी न जाने क्यों मैं उस फूलमती की धसी हुई आंखों और गालों पर फिदा हो रहा था। होते-होते मैं खुद मोहब्बत के जाल में फंस गया।

घर-बार मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन मेरे इस प्रेम के बारे में किसी को खबर न हो, इसलिए मैं घर में इंदु से काफी प्यार से बातें करता था। इस नाटक का एक ही कारण था कि मैं अपनी हरकत को इसके पीछे छिपा सकूं। वक्त के साथ मैंने ये नाटक बंद कर दिया और घर व पत्नी की जरूरतों से मुंह मोड़ लिया। सच कहूं तो पत्नी से कुछ भी कहते हुए डर लगता था कि कहीं उसके मन की बात जुबान पर न आ जाए। यूं तो मैं कभी भी जौहरी की दुकान गया नहीं था, लेकिन अब मेरा वहां आना-जाना भी होने लगा। मेरा वक्त पैसा सब कुछ सिर्फ फूलमती का ही था।

एक दिन मैं हमेशा की तरह शाम के समय आनंद वाटिका में घूम रहा था। तभी मैंने फूलमती को देखा, वो मेरे दिए हुए गहने और रेशम की साड़ी पहन कर फूल तोड़ रही थी। उसी वक्त राजा भी कुछ दोस्तों के साथ वहां पहुंच गए। फूलमती राजा को पहचानती थी, इसलिए तेजी से झाड़ी की तरफ छिप गई। उस वक्त महाराज को जाना तो था पानी के कुंड के पास, लेकिन वो बाग की तरफ ही चले गए। वहां उन्होंने झाड़ी के पीछे फूलमती को छिपते हुए देखकर गुस्से में पूछा, “तुम कौन हो और यहां क्या कर रही हो?”

उस समय आनंद वाटिका का सारे लोग मेरी तरफ ही देखने लगे। मुझे भी लगा कि झट से जवाब दे देना चहिए, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाए। मैंने कहा, “महाराज, ये यहां के माली की बेटी है।” यह सुनते ही राजा और बिगड़ गए। उन्होंने पूछा, “ये माली की बेटी है? इसके कपड़े गहने इन सबको देखकर कहां से लग रहा है कि ये माली की बेटी है।”

तभी माली भी वहां पहुंच गया और उसने जवाब में कहा, “साहब! यह मेरी ही बेटी है।”

राजा ने गुस्से में पूछा, “तुम्हारी तनख्वाह कितनी होगी?”

माली ने बताया, “पांच रुपये।”

फिर राजा ने पूछा, “क्या यह शादीशुदा है?”

माली जवाब में बोला, “नहीं।”

यह सुनते ही महाराज ने नाराज होते हुए कहा, “इसका मतलब तू चोरी करके इसे ये गहने और रेशम की साड़ी देता है। अभी मैं तेरी शिकायत पुलिस में करता हूं। कमाता है पांच रुपये और बेटी को गहनों से लदा रखा है।”

महाराज के पैर पर गिरकर माली बोलने लगा, “साहब! मेरी वफादारी पर सवाल मत उठाइए। ये इस लड़की की ही हरकत है। आजकल ये बड़े लोगों के साथ उठने बैठने लगी है। इसने मेरी नाक कटा दी है। वहां से ही इसे ये सबकुछ मिला है। आप जानते ही हैं अमीर लोग कैसे होते हैं।”

इतना सब सुनते ही महाराज ने जोर देते हुए पूछा, “क्या इसका संबंध किसी सरकारी नौकर के साथ है?”

माली ने जवाब में हां कहा।

फिर महाराज बोले, “जब भी मैं तुमसे उसका नाम पूछूंगा तुम्हें बताना होगा।”

वो सिर झुकाते हुए कहने लगा, “बिल्कुल महाराज! सच को किसी बात का भय नहीं होता है। आप जब भी पूछेंगे मैं नाम जरूर बताऊंगा”

उस समय मेरा शरीर पूरा ठंडा पड़ गया। मन में हुआ कि आज ही राजा के सामने मेरा राज खुल जाएगा और बदनामी होनी पक्की है। लेकिन, महाराज ने अपने दरबार के कार्यकर्ता की इज्जत को यूं सरेआम उछालना ठीक नहीं जाना और नाम बाद में पूछने की बात कहते हुए अपनी गाड़ी में बैठकर महल चले गए।

तभी मैं अपने घर पहुंचा, तो वहां एक बूढ़ी औरत दिखाई दी। वो बिल्कुल पूछताछ करने वाली जासूस महिला लग रही थी, जो चेहरे पर नकली भोलापन लेकर चलती है। मैंने अंदर जाते ही पत्नी से पूछा, “कौन थी वो?” उसने बताया कि एक भिखारन थी। मेरे मन में हुआ कि वो ऐसी तो लग नहीं रही थी।

मैंने गुस्से में कहा, “वो भीख मांगने आई थी, ऐसा तो बिल्कुल नहीं लग रहा था।”

मेरी पत्नी ने मुझपर तंज कसते हुए कहा, “आजकल अंदर से कौन कैसा होता है किसी को पता थोड़ी चलता है। वो भीख मांगने के लिए आई थी मैंने दे दी। वो कैसी है, कैसी नहीं, इसकी जांच नहीं की मैंने।”

तब मैं नाराज होकर पत्नी का हाथ पकड़ते हुए बोला, “देखो, जो भी है सच-सच मुझे बता दो। मैं तुमपर बहुत भरोसा करता हूं और मुझे अपनी इज्जत किसी भी चीज से ज्यादा प्यारी है। तुम्हारे बात करने के तरीके से ही मैं समझ रहा हूं कि जरूर कुछ गड़बड़ है।”

तभी वो रोते हुए बोली, “तुम मुझपर शक मत करो। मैं उस महिला की बात में आ गई थी और घर का पूरा हाल बता दिया।”

मेरा गुस्सा कम हुआ और मैंने इंदुमती से पूछा, “आखिर क्या हाल बता दिया तुमने उसे?”

उधर से जवाब आया, “सबकुछ तुम्हारे घर से यूं मुंह मोड़ना, लापरवाही, बेवफाई, किसी चीज की फिक्र न करना। मैंने सब उसे बता दिया। तुम्हें अंदाजा भी है कि घर चलाने के लिए मेरे सारे गहने बिक गए हैं। तुमने तीन महीने से घर खर्च के लिए एक रुपये भी नहीं दिए हैं। इन सबसे मेरा मन दुखी था और जब उसने प्यार से पूछा, तो मैंने भी सारा हाल कह दिया। लेकिन, आज एक बात साफ हो गई कि तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं है। वरना इस तरह से बात नहीं करते।”

यह सब जानते ही मैंने अपने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। उधर महाराज को फूलमती और मेरे बारे में सबकुछ पता चलने ही वाला है और इधर घर का सारा भेद एक औरत लेकर चली गई है। किसी तरह रात गुजरी और मैं सुबह दफ्तर पहुंच गया। वहां पहुंचते ही मुझे महाराज का बुलावा आया।

मेरे दिमाग में यह बात चल रही थी कि पक्का वो बुढ़िया महाराज की ही भेजी हुई गुप्तचर होगी। उसने सारी रिपोर्ट यहां दे दी होगी। यह सोचते हुए मैं महाराज के पाच पहुंचा। वो पूजा के कमरे में थे और उनके चारों तरफ कागज-ही-कागज बिखरे नजर आ रहे थे।

उन्होंने मुझे देखते ही नाराज अंदाज में कहा, “कुंवर श्याम सिंह मुझे जो कुछ भी पता चला है, उसके बाद तुम्हारे साथ सख्ती से पेश आना होगा। उन्होंने आगे कहा कि तुम यहां के पुराने वसीकेदार हो। यह वसीका यानी पेंशन तुम्हारी कई पीढ़ियों द्वारा अपनी जान लगाकर की गई सेवाओं का नतीजा है, लेकिन तुमने अपनी हरकत से उनका नाम भी खराब कर दिया।”

महाराज ने आगे कहा कि तुम्हें वसीका अपने परिवार पर खर्च करने के लिए मिलता था। तुमने इस वसीके का गलत फायदा उठाया। माली की बेटी पर सबकुछ लुटा दिया। अब मैंने उस वसीके के दस्तावेज से तुम्हारा नाम हटाकर तुम्हारी पत्नी का नाम डाल दिया है, ताकि वो तुम्हारे बच्चों को पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बना सके कि तुम्हारी पीढ़ियों की तरह वो महल की सेवा करें। तुम्हारी जैसी हरकत से तो पीढ़ियों का नाम खराब तो होगा ही और वसीकदारों का नाम भी नहीं बचेगा। तुम्हारी पत्नी ही वसीका पाने के काबिल है और तुमको अब मालियों की सूची में डाल दिया गया है। तुम इसी के लायक हो। अब यहां से जाओ और अपनी करनी पर पछताओ। इसके अलावा, तुम्हारे पास करने के लिए कुछ है भी नहीं।

मेरी गलती थी ही, इसलिए मुझे कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं हुई। सबकुछ सुनने के बाद मैं घर लौटने लगा। फिर मन से आवाज, आई कौन सा घर? अब तुम्हारा कुछ भी नहीं रहा। धीरे-धीरे ये बात पूरे नगर में फैल जाएगी और लोग तरह-तरह की बातें करेंगे। कुछ झूठी हमदर्दी दिखाएंगे, तो कुछ मजाक उड़ाएंगे। फिर मन हुआ कि एक बार फूलमती से मिल लूं, लेकिन लगा कि अब न वो रौब है और न ही रुतबा कैसे उससे मिलूंगा। उसने कहीं भावनाओं में बहकर मेरे साथ चलने की बात कह दी, तो क्या करूंगा? अकेला तो जैसे भी गुजारा हो जाएगा, लेकिन उसके साथ चीजें मुश्किल होंगी। मन से भी आवाज आई उसी की वजह से सबकुछ बर्बाद हो गया है। इतना सोचकर मैं बंबई की ओर निकल गया।

अब बंबई की ही एक मील में नौकरी करते हुए दो साल बीत गए हैं। पैसे के नाम पर बस इतना ही मिलता था कि किसी तरह कुछ खा-पी लूं। एक बार मैं चुपचाप से अपने घर गया। वहां देखा कि मेरे बच्चे घर के बाहर अच्छे से खेल रहे थे। मेरी पत्नी ने पूरे घर को अच्छे से संभाल रखा था। घर के बाहर दो लालटेन जल रहे थे। सब कुछ बहुत साफ था। तभी मुझे पता चला कि दो-चार महीने मेरी खोज करने के लिए अखबार में कुछ इश्तहार भी छपे थे, लेकिन इस मुंह को लेकर मैं कहां जाता। मैंने फूलमती को भी देखा। पता चला कि वो किसी नए रईस के साथ थी।

अपने जिंदगी पर अफसोस करते हुए मन में हुआ कि अब इसी हालत में जीवन जीना होगा। अब चाहे हंसकर जिंदगी जी लूं या रोकर। अपने पास मौजूद किसी चीज की मैंने कदर नहीं की और खुद अपनी हंसी-खुशी को पैरों से ठोकर मारकर अब पछता रहा हूं। मैं वो इंसान हूं, जिसने अपने सब कुछ को खुद से ही जला दिया और अब उसकी राख भी नहीं बची।

कहानी से सीख :

अपने घर-परिवार को भूलकर किसी पराई महिला के चक्कर में पड़ने से सबकुछ बर्बाद ही होता है। दूसरी सीख यह है कि झूठ छिपाए नहीं छिपता।

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