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मुर्ख बंदर की टोली !!

एक दिन की बात है; जंगल से सटे गाँव के पास मंदिर बन रहा था; वहाँ काम करने वाले कारीगर हर दिन की तरह उस दिन भी खाना खाने के लिए गाँव में आए थे; इसी बीच जंगल में रहने वाले बंदरों की टोली घुमते-फिरते वहाँ पहुँच गयी; जहाँ कारीगरों का काम चल रहा था |

कारीगरों को वहाँ न पा कर बंदरों ने यहाँ वहाँ उछल-कुद मचाना शुरू कर दिया; वहीं एक कारीगर विशाल लकड़ी का एक दरवाजा एक कील के सहारे टिका कर छोड़ दिया था; उन मुर्ख बंदरों की टोली में से एक बंदर को यह सहन नहीं हुआ कि यह कील यहाँ क्यों फंसी है?

वह बिना सोचे समझे अपने दोनों हाथों की मदद से कील को बाहर निकालने के जी तोड़ कोशिश करने लगा; काफी प्रयास के बाद कील बाहर आ गयी; पर कील के सहारे टिका हुआ विशाल दरवाजा उस मूर्ख बंदर के ऊपर गिर गया; और वह उस दरवाजा के अंदर दबकर तड़प-तड़प कर मर गया |

दोस्तों, इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें दूसरों के काम में कभी भी अपनी टांग नहीं अड़ानी चाहिए; वरना उस मुर्ख बंदर की तरह हमें भी बुरा परिणाम मिलेगा |

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