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न मैं धाम धरती न धन चाहता हूँ

न मैं धाम धरती न धन चाहता हूँ,
कृपा का तेरी एक कण चाहता

रटे नाम तेरा वो चाहूँ मैं रसना,
सुने यश तेरा, वह श्रवण चाहता हूँ

विमल ज्ञान धारा से मस्तिष्क उर्वर
व श्रद्धा से भरपूर मन चाहता हूँ

नहीं चाहना है मुझे स्वर्ग-छबि की,
मैं केवल तुम्हें प्राणधन ! चाहता हूँ

प्रकाश आत्मा में अलौकिक तेरा है,
परम ज्योति प्रत्येक क्षण चाहता हूँ||

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