ओ मेरे कृष्ण कन्हिया रे तने कैसी लीला रचाई,
मेहल बना दिए कुटिया म्हारी
चमकादी मेरी नगरी सारी तने मेरी पकड़ी बहिया रे
तने कैसी लीला रचाई
ओ मेरे कृष्ण कन्हिया रे तने कैसी लीला रचाई,
मैं सु इक ब्रामण सा भिखारी क्यों मेरे पे दोलत भारी
फिराया किस्मत का पहियाँ रे तने कैसी लीला रचाई
ओ मेरे कृष्ण कन्हिया रे तने कैसी लीला रचाई,
किसे टाइम पे न इक रोटी
आज भर दिए मेरे हीरा मोती
उतम नाचे ता ता थाईया रे तने कैसी लीला रचाई
ओ मेरे कृष्ण कन्हिया रे तने कैसी लीला रचाई,
जीने मैं भुगता वो कर्म मारती जानी कदर तूने अपने यार की
के पार लगा दी नैया रे तने कैसी लीला रचाई
ओ मेरे कृष्ण कन्हिया रे तने कैसी लीला रचाई,,,,,,,,,,,,,,