वह सभी कार्य जिनसे दूसरों को किसी भी तरह का दुख, तकलीफ़ या नुकसान हो वह पाप है, और वह कार्य जिनसे दूसरों का फायदा हो वह पुण्य है। ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिससे केवल पुण्य हो और ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिससे केवल पाप हो।
धर्म अनुसार प्रमुख दस पुण्य और दस पाप। इन्हें जानकर और इन पर अमल करके कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।
“दस पुण्य कर्म“
1. धृति => हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना।
2. क्षमा => बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना।
3. दम => उदंड न होना।
4. अस्तेय => दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना।
5. शौच => आहार की शुद्धता, शरीर की शुद्धता।
6. इंद्रियनिग्रह => इंद्रियों को विषयों (कामनाओं) में लिप्त न होने देना।
7. धी => किसी बात को भलीभांति समझना।
8. विद्या => धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान।
9. सत्य => झूठ और अहितकारी वचन न बोलना।
10. अक्रोध => क्षमा के बाद भी कोई अपमान करें तो भी क्रोध न करना।
“दस पाप कर्म“
1 => दूसरों का धन हड़पने की इच्छा।
2 => निषिद्ध कर्म (मन जिन्हें करने से मना करें) करने का प्रयास।
3 => देह को ही सब कुछ मानना।
4 => कठोर वचन बोलना।
5 => झूठ बोलना।
6 => निंदा करना।
7 => बकवास करना (बिना कारण बोलते रहना)।
8 => चोरी करना।
9 => तन, मन, कर्म से किसी को दुख देना।
10 => पर-स्त्री या पुरुष से संबंध बनाना।
गीता के अनुसार सबसे बड़ा पाप क्या है?
“जीव हत्या” सबसे बड़ा पाप हैं , अनावश्यक हरे पेड़ों को काटना भी पाप हैं।
हिंदू धर्म में 6 पाप कौन से हैं?
हिंदू धर्मशास्त्र में, अरिशदवर्ग या शद्रिपु (संस्कृत: शद्रिपु; जिसका अर्थ है छह शत्रु) मन के छह शत्रु हैं, जो हैं: काम (इच्छा), क्रोध (क्रोध), लोभ (लालच), मद (मैं की भावना), मोह (लगाव), और मात्सर्य (पक्षपात ); जिसके नकारात्मक लक्षण मनुष्य को मोक्ष प्राप्त करने से रोकते हैं।
पुण्य कमाने के लिए क्या करें?
शास्त्रों में लिखा है कि बिना कुछ दिए भी पुण्य कमाया जा सकता है। मन के द्वारा किसी के प्रति अच्छी भावना रखना ही पुण्य की आधारशिला है। अभावग्रसितों, जरूरतमंदों को भी साधन प्राप्त हों, ऐसी भावना रखनी चाहिए। दूसरों के प्रति शुभकामना करने से कुछ भी खर्च नहीं होता।
कितनी उम्र तक पाप नहीं लगता?
मनुष्य को किस उम्र तक उनके पापों …
यह सुनकर मांडव ऋषि ने धर्मराज से कहा कि –धर्म शास्त्रों के अनुसार जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक बालक जो भी कर्म करता है वह पाप नहीं माना जाता है क्योंकि जन्म से लेकर इस आयु तक वह अज्ञान होता है अतः आपसे बहुत बड़ी गलती हुई इसका परिणाम आपको भी भुगतना होगा।
पुण्य क्या है समझाइए?
पुण्य मुख्यतया कर्मविशेष को कहते हैं, जो कर्म सत्वबहुल हो, जिससे स्वर्ग (या इस प्रकार के अन्य सुखबहुललोक) की प्राप्ति होती है। सत्वशुद्धिकारक पुण्यकर्म मान्यताभेद के अनुसार ‘अग्निहोत्रादि कर्मपरक’ होते हैं क्योंकि अग्निहोत्रादि यज्ञीय कर्म स्वर्गप्रापक एवं चित्तशुद्धिकारक माने जाते हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा पुण्य क्या है?
अर्थात सच बोलना और सम्मान देना सबसे बड़ा पुण्य है और हर जन्म में किए गए इस पुण्य का परिणाम अगले जन्मों में मिलता है।
सबसे उत्तम दान क्या है?
ज्ञानदान और अभयदान को भी श्रेष्ठ दानों में गिना गया है।
क्या पुण्य करने से पाप में कमी होती हैं?
हिन्दू मान्यता के अनुसार पाप या पुण्य स्वयं में कर्म हैं जो फल से सम्बंधित हैं। सभी कर्मों का फल अलग-अलग भोगना पड़ता है। न पुण्य करने से पाप कटते हैं और न ही पाप की अधिकता किसी भी पुण्य के फल को नष्ट कर सकती है।
ज्यादा दान करने से क्या होता है?
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो जिस इंसान को दान करने में आनंद मिलता है, उसे ईश्वर की असीम कृपा प्राप्त होती है क्योंकि देना इंसान को श्रेष्ठ और सत्कर्मी बनाता है. अगर आप भी अपने भीतर की सच्ची खुशी को महसूस करना चाहते हैं तो जरूरतमंदों को दान करिए. इससे आपको अद्भुत आत्मसुख मिलेगा.
शाम को क्या दान नहीं करना चाहिए?
सूर्यास्त के बाद प्याज और लहसुन दान नहीं करना चाहिए.
पुण्य करने से क्या फायदा होता है?
पुण्य सुख देकर और पाप दुख देकर अंत को प्राप्त होता है। लेकिन पाप और पुण्य में थोड़ा अंतर यह है कि पुण्य का फल यदि हम नहीं चाहते तो उस फल को अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र हैं।
कौन सा दान नहीं देना चाहिए?
नुकीली वस्तुएं जैसी चाकू, कैंची तथा तलवार आदि भी कभी दान में नहीं देना चाहिए, ज्योतिषविद्या में ऐसा करना नुकसानदायक बताया गया है। माना जाता है कि नुकीली वस्तुओं का दान करने से परिवार की सुख-शांति भंग होती है इसके अलावा घर के सदस्यों के बीच तनाव बढ़ने के साथ और रिश्ते खराब होने की भी आशंका रहती है।
पुण्य कितने प्रकार के हैं?
जवाब- 11 पुण्य के 9 प्रकार निम्नोक्त है ।
अन्न पुण्य – भुखे को भोजन देना ।
पान पुण्य – प्यासे की प्यास बुझाना ।
शयन पुण्य – थके हुए निराश्रित प्राणियों को आश्रय देना ।
लयन पुण्य – पाट-पाटला आदि आसन देना ।
वस्त्र पुण्य – वस्त्रादि देकर सर्दी-गर्मी से रक्षण करना ।
मन पुण्य – हृदय से सभी प्राणीयों के प्रति सुख की भावना ।
वचन पुण्य – निर्दोष-मधुर शब्दों से अन्य को सुख पहुंचाना ।
काय पुण्य – शरीर से सेवा-वैयावच्चादि करना ।
नमस्कार पुण्य – नम्रतायुक्त व्यवहार करना ।
रात में कौन सी चीज नहीं देनी चाहिए?
दूध नहीं देना चाहिए
दूध का संबंध भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी से होता है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शाम के समय यानि सूर्यास्त के बाद गलती से भी किसी को दूध दान नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से मां लक्ष्मी की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है.
दान कब नहीं करना चाहिए?
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, अगर जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति ठीक है तो इन्हें सोना, गेहूं, गुड़, तांबे से बनी चीजों का दान नहीं देना चाहिए। इससे सूर्य की स्थिति कमजोर हो जाती है। इसके अलावा अगर जातक की कुंडली में सूर्य सातवें या फिर आठवें भाव में है तो सुबह और शाम के समय दान देने से बचना चाहिए।