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कण-कण में हैं भगवान जरा खोज कर तो देखो

The final examination of the thorns of Acharya Purshuva's disciplesएक धार्मिक व्यक्ति था। भगवान में उसकी बड़ी श्रद्धा थी। उसने मन ही मन प्रभु की एक तस्वीर बना रखी थी। एक दिन भक्ति से भरकर उसने भगवान से कहा-भगवान मुझसे बात करो, और एक बुलबुल चहकने लगी लेकिन उस आदमी ने नहीं सुना।

इसलिए इस बार वह जोर से चिल्लाया और आकाश में घटाएं उमङ़ने लगी, बादलो की गड़गडाहट होने लगी लेकिन आदमी ने कुछ नहीं सुना। उसने चारो तरफ निहारा, ऊपर- नीचे सब तरफ देखा और बोला, भगवान मेरे सामने तो आओ और बादलो में छिपा सूरज चमकने लगा।

पर उसने नहीं देखा आखिरकार वह आदमी गला फाड़कर चीखने लगा भगवान मुझे कोई चमत्कार दिखाओ तभी एक शिशु का जन्म हुआ और उसका प्रथम रुदन गूंजने लगा किन्तु उस आदमी ने ध्यान नहीं दिया।

अब तो वह व्यक्ति रोने लगा और भगवान से याचना करने लगा ‘भगवान मुझे स्पर्श करो मुझे पता तो चले तुम यहां हो,मेरे पास हो,मेरे साथ हो और एक तितिली उड़ते हुए आकर उसके हथेली पर बैठ गई।

लेकिन उसने तितली को उड़ा दिया, और उदास मन से आगे चला गया। भगवान इतने सारे रूपो में उसके सामने आए इतने सारे ढंग से उससे बात की पर उस आदमी ने पहचाना ही नहीं शायद उसके मन में प्रभु की तस्वीर ही नहीं थी।

In English

Was a religious person. His great reverence in God was. He had made a picture of the mind Lord of mind. One day, filled with devotion, he told God- God talked to me, and started fluttering a buzz but the man did not listen.

That’s why this time he shouted loudly and reduced it to the sky, he started growing up, the cloud started fluttering but the man did not hear anything. He looked around, looked up and down on all sides and said, come to me in front of God and the sun started shining in the cloud.

But he did not see that the man started shouting and shouting God showed me a miracle. Only then a baby was born and his first prayer started to resound but that man did not pay attention.

Now the person started crying and started crying to God, ‘Lord, touch me. I know if you are here you are with me, be with me, and sit with a butterfly and sit on his palm.

But he blew the butterfly, and went ahead with a sad heart. God spoke to him in so many ways in so many forms, but the man did not even recognize that the picture of the lord was not in his mind.

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