Breaking News

पवित्रीकरण मंत्र

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

पवित्र होने का मंत्र क्या है?
शास्त्रों के अनुसार वर्णित ”स्नान मंत्र’ है – ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।। इस मंत्र का अर्थ है – कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, जो भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है।

शुद्धिकरण मंत्र क्या है?
शुद्धिकरण मंत्र से किसी भी अवस्था …
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो5पि वा । यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।

पवित्रीकरण कैसे करते हैं?
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः बाह्याभयन्तर शुचिः ॥ ये मन्त्र पढ़ कर सीधे हाथ में जल ले कर अपने सर पर व सम्पूर्ण शरीर पर छिड़कें। पवित्रीकरण हो जाता है।

पूजा शुरू करने से पहले कौन सा मंत्र बोला जाता है?
आचमन करते हुए, ‘ॐ केशवाय नम:, ॐ नाराणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ हृषीकेशाय नम:. इन मंत्र का उच्चारण करते हुए अंगूठे से मुख पोछ लें और ॐ गोविंदाय नमः मंत्र बोलकर हाथ धो लें. इस विधि व नियम से किया गया आचमन पूर्ण होता है और पूजा संपन्न मानी जाती है.

भगवान में पवित्रीकरण क्या है?
पवित्रीकरण (या इसके क्रिया रूप में, पवित्रीकरण) का शाब्दिक अर्थ है “विशेष उपयोग या उद्देश्य के लिए अलग करना”, यानी, पवित्र या पवित्र बनाना (लैटिन से तुलना करें: सैंक्टस)। इसलिए, पवित्रीकरण का तात्पर्य ईश्वर की पवित्र आत्मा से भरे एक बर्तन के रूप में अलग किए जाने की स्थिति या प्रक्रिया से है, यानी “पवित्र बनाया जाना”।

खुद को पवित्र कैसे करें?
मन को पवित्र कैसे करे | मन को …
मन को पवित्र करने के तरीके
ईश्वर की भक्ति में लीन होना अपने मन को पवित्र करने का सबसे अच्छा माध्यम ईश्वर की भक्ति में लीन होना बताया गया है। …
योग का ले सहारा …
आध्यात्मिक पुस्तक का ले सहारा …
सुबह जल्दी उठने का प्रयास करें …
दूसरों की बुराई से बचाव करें …
अच्छी आदत को शामिल करें …
अपने विचारों पर काबू करें …
अच्छी संगत का ख्याल रखें \

आचमन मंत्र कब बोला जाता है?
सनातन धर्म में किसी भी पूजा पाठ की शुरुआत से पहले आचमन किया जाता है। इसके बिना पूजा पाठ की शुरुआत नहीं होती है। आचमन का अर्थ होता है जल पीना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा व यज्ञ आदि की शुरुआत करने से पहले शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल से आचमन किया जाता है।

Check Also

malik-naukar

जीवन को खुशी से भरने की कहानी

रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं