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पिता और पुत्र

एक जवान बाप अपने छोटे पुत्र को गोद में लिए बैठा था | कहीं से उड़कर एक कौवा उसके सामने खपरैल पर बैठ गया |
पुत्र ने पिता से पूछा – ” यह क्या है ”
पिता – ” कोआ है ”
पुत्र ने फिर पूछा – ” यह क्या है ”
पिता ने फिर कहा – ” यह कोआ है ”
पुत्र बार-बार पूछता था -” क्या है ”
पिता स्नेह से बार-बार कहता था – ” कोआ है ”
कुछ वर्षों में पुत्र बड़ा हुआ और पिता बुड्ढा हो गया | पिता चारपाई पर बैठा था | घर में कोई उसके पुत्र से मिलने आया | पिता ने पूछा – ” कौन आया है |”
पुत्र ने नाम बता दिया थोड़ी देर में कोई और आया | और पिता ने फिर पूछा | इस बार झल्लाकर पुत्र ने कहा – “आप चुपचाप पढ़े क्यों नहीं रहते | आपको कुछ करना धरना तो है नहीं ! कौन आया है, कौन गया, यह टाय-टाय दिनभर क्यों लगाए रहते हैं |
पिता ने लंबी सांस खींची | हाथ से सिर पकड़ा | बड़े दुख भरे स्वर में धीरे-धीरे वह कहने लगा | मेरे एक बार पूछने पर तुम क्रोध करते हो और तुम सैकड़ों बार पूछते थे | एक ही बात -” यह क्या है ” ! मैंने कभी तुम्हें झिकड़ा नहीं ! ” मैं बार-बार बताता कोआ है |”
कहानी की शिक्षा: ”अपने माता पिता का तिरस्कार करने वाले ऐसे लड़के बहुत बुरे माने जाते हैं | तुम सदा इस बात का ध्यान रखो कि माता-पिता ने तुम्हारे पालन पोषण में कितना कष्ट उठाया है | और तुमसे कितना प्यार किया है |”

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