Breaking News

प्रतिशोध ठीक नहीं होता

pratishodh theek nahin hota
pratishodh theek nahin hota

बालक पिप्पलाद ने जब होश संभाला, तब औषधियों को अपने अभिभावक के रूप में देखा । वृक्ष फल देते थे, पक्षी दाने लाते थे और मृग हरी वस्तुएं । ओषधियां अपने राजा सोम से मांगकर अमृत की घूंटें पिप्पलाद को पिलाया करती थीं । यह दृश्य देखकर पिप्पलाद ने वृक्षों से पूछा – ‘देखा यह जाता है कि मनुष्य माता – पिता से मनुष्य तथा वनस्पतियों का पुत्र होकर भी मनुष्य कैसे हो गया ?’ इसके उत्तर में वनस्पतियों ने पिप्पलाद को उसके जन्म की कथा सुनाते हुए कहा – ‘महर्षि दधीचि तुम्हारे पिता और (गभस्तिनी) तुम्हारी माता हैं । इस तरह तुम मनुष्य के ही पुत्र हो । तुम्हारे माता – पिता हमें पुत्र की तरह मानते थे, अत: हम भी तुम्हें पुत्र ही मानती आ रही हैं । तुम्हारी मानें अपना पेट चीरकर तुम्हें पैदा किया था और हमें सौंपकर स्वयं सती हो गयी थीं । तुम्हारे माता – पिता के मर जाने के बाद समूचा वन बहुत दिनों तक रोता रहा । वे हमें प्यार करते थे और हम सब उन्हें ।’ इतना कहकर वनस्पतियां फूट – फूटकर रो पड़ीं । यह सुनकर बालक पिप्पलाद को बहुत विस्मय हुआ । उसने अपने माता – पिता की कहानी जाननी चाही । वनस्पतियों ने उनके माता पिता को श्रद्धा से नमन कर उनकी जीवन – गाथा प्रारंभ की – ‘तुम्हारे पिता का नाम दधीचि था । उनमें सभी उत्तम गुण विद्यमान थे । तुम्हारी माता उत्तम कुल की कन्या और पतिव्रता थीं । उनका नाम गभस्तिनी था । वे लोपमुद्रा की बहन थीं । तुम्हारे माता – पिता ने तपस्या कर इतनी सामर्थ्य अर्जन कर ली थी कि उनके आश्रम पर दैत्य – दानवों का आक्रमण नहीं हो पाता था । एक दिन विष्णु, इंद्र आदि सभी देवता आश्रम में आएं । दैत्यों पर विजय पाने से वे प्रसन्न थे । तुम्हारे माता – पिता ने उनका भावभीना सत्कार किया । देवताओं ने कहा – ‘आप जैसे महर्षि जब हन लोगों पर इतनी कृपा रखते हैं, तब हमारे लिए क्या दुर्लभ है ? हमने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली है । अब चाहते हैं कि अपने अस्त्र – शस्त्र आपके आश्रम में रख दें, क्योंकि तीनों लोकों में आपका आश्रम ही निरापद स्थान है । यहां आपकी तपस्या के प्रभाव से दैत्य आदि प्रवेश नहीं कर पाते ।’ उदारचेता मुनि ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । तुम्हारी माता ने उन्हें रोकते हुए कहा – ‘नाथ ! यह कार्य विरोध उत्पन्न करन् वाला है । इस काम में आप न पड़ें । आप तो समदर्शी हैं । आपके लिए शत्रु – मित्र बराबर हैं । अस्त्र – शस्त्र रखने से दैत्य और दानव आपसे शत्रुता रखने लगेंगे । धरोहर – रूप में किसी का धन रखना साधु पुरुषों के लिए उचित नहीं कहा गया है ।’ महर्षि दधीचि ने कहा – ‘देवता सृष्टि के रक्षक हैं और मैंने हां कर भी दिया है, इसलिए अब नहीं कहना अनुचित हैं ।’ देवता अस्त्र – शस्त्र आश्रम में रखकर चले गए । इधर दैत्य महर्षि से द्वेष करने लगे । महर्षि को चिंता हुई कि दैत्य बड़े बीर तो हैं ही, साथ ही तपस्वी भी हैं । जब वे आक्रमण करेंगे तब मैं शास्त्रों की रक्षा नहीं कर पाऊंगा, ऐसा विचारकर उन्होंने अस्त्र – शस्त्रों की रक्षा के लिए एक उपाय किया । उन्होंने पवित्र जल को अभिमंत्रित कर उससे अस्त्र – शस्त्रों को नहलाया और उस जल को स्वयं पी लिया । तेज निकल जाने से वे सभी अस्त्र – शस्त्र शक्तिहीन हो गए । इसलिए वे धीरे – धीरे नष्ट हो गए । बहुत दिनों के बाद देवता महि के आश्रम में पहुंचे, क्योंकि उनके शत्रुओं ने फिर सिर उठाया था । महर्षि ने उन्हें बतलाया कि उन अस्त्रों की सुरक्षा के लिए उनका तेज मैंने पी लिया है । वे अब मेरी हड्डियों में मिल गए हैं । आप हड्डियां ही ले जाएं । मेरे शरीर का यह सुंदर उपयोग हो रहा है । महर्षि ने योग के द्वारा शरीर का त्याग कर दिया । विश्वकर्मा ने उन हड्डियों से दिव्य अस्त्रों का निर्माण किया । वे ही देवताओं की विजय के कारण बने । इस अवसर पर माता गभस्तिनी नदी – तट पर गयी थीं । पार्वती की पूजा में लगे रहने से उन्हें लौटने में देर हो गयी थी । उस समय वे गर्भवती थीं । आश्रम में आने पर उन्होंने अपने पतिदेव को नहीं देखा । अग्निदेवता ने सारी घटना उन्हें सुना दी । उन्होंने पति के कार्य की सराहना की, फिर तीनों अग्नियों की पूजा करके अपना पेट चीरकर तुम्हें हाथ से निकाल दिया । तुम्हें हमलोगों को सौंपकर पति के केश आदि के साथ वे अग्नि में प्रवेश कर गयीं । उस समय आश्रम का प्रत्येक प्राणी दु:ख से संतप्त होकर रो उठा । सब कह रहे थे कि दधीचि और प्रातिथेयी (गभस्तिनी) जितना हमें प्यार देते थे, उतना अपने माता पिता भी प्यार नहीं कर पाते । हमें धिक्कार है कि हम उनके दर्शनों से वंचित हो गए । अब यह बालक ही हमलोगों के लिए दधीचि और प्रातिथेयी है । वनस्पतियों ने कथा का उपसंहार करते हुए कहा कि यहीं कारण है कि हम वनवासी तुम्हें पुत्र से अधिक मानते हैं । बालक पिप्पलाद को अपनी कथा सुनकर बहुत दु:ख हुआ । माता ने पेट चीरकर जो उसे निकाला था, इस बात से उसे अधिक पीड़ा हुई । वह रोता हुआ बोला – ‘मैं अभागा हूं, जो माता के कष्ट का कारण बना । मैं उनकी सेवा तो कुछ कर ही न सका ।’ उसके बाद देवताओं के कृत्य पर उसे क्रोध हो आया । उसने कहा – ‘मैं देवताओं से प्रतिशोध लूंगा । उन्होंने मेरे पिता का वध किया है, अत: मैं उनका वध करुंगा ।’ वनस्पितयों ने समझाया कि प्रतिशोध ठीक नहीं होता ।तुम्हारे माता पिता ने विश्व के हित के लिए आत्मदान किया है । तुम भी उन्हीं के पथ पर चलो । बच्चे के अंत:करण में प्रतिशोध की भावना शांत नहीं हुई । उसने भगवान शंकर की प्रार्थना की कि शत्रुओं के नाश के लिए आप मुझे शक्ति दीजिए । भगवान ने उसे कृत्या दी । पिप्पलाद ने उसे आज्ञा दी कि तू नेरे शत्रु देवताओं को खा जा । देवता भाग खड़े हुए और उन्होंने भगवान शंकर की शरण ली । भगवान शंकर पिप्पलाद को समझाया कि तुम्हारे पिता ने विश्व के हित के लिए अपना प्राण दे दिया है । उनके समान दयामय कौन होगा ? तुम्हारी माता भी उन्हीं के साथ पति लोक चली गयीं । उनकी समता किससे होगी ? तुम भी अपने माता पिता के रास्ते पर ही चलो । तुम्हारे प्रताप से देवता संकट में पड़ गए हैं । उन्हें तुम बचाओं । यहीं तुम्हारा कर्तव्य है । प्रतिशोध अच्छा नहीं होता । पिप्पलाद शांत हो गए । उन्होंने भगवान शंकर का उपदेश मान लिया । भगवान ने और देवताओं ने भी पिप्पलाद को वरदान मांगने को कहा । पिप्पलाद ने वर मांगा कि मैं अपने माता – पिता को देखना चाहता हूं । दिव्य लोक से उनके माता – पिता दिव्य विमान से उपस्थित हो गए । उन्होंने कहा – ‘पुत्र ! तुम धन्य हो । तुम्हारी कीर्ति स्वर्गलोक तक पहुंच चुकी है । तुमने भगवान शंकर का प्रत्यक्ष दर्शन किया है ।’ वतन समाप्त होते ही आकाश से पिप्पलाद के ऊपर फूलों की वर्षा होने लगी । देवताओं ने जय जयकार किया ।

wish4me to English

baalak pippalaad ne jab hosh sambhaala, tab aushadhiyon ko apane abhibhaavak ke roop mein dekha . vrksh phal dete the, pakshee daane laate the aur mrg haree vastuen . oshadhiyaan apane raaja som se maangakar amrt kee ghoonten pippalaad ko pilaaya karatee theen . yah drshy dekhakar pippalaad ne vrkshon se poochha – ‘dekha yah jaata hai ki manushy maata – pita se manushy tatha vanaspatiyon ka putr hokar bhee manushy kaise ho gaya ?’ isake uttar mein vanaspatiyon ne pippalaad ko usake janm kee katha sunaate hue kaha – ‘maharshi dadheechi tumhaare pita aur (gabhastinee) tumhaaree maata hain . is tarah tum manushy ke hee putr ho . tumhaare maata – pita hamen putr kee tarah maanate the, at: ham bhee tumhen putr hee maanatee aa rahee hain . tumhaaree maanen apana pet cheerakar tumhen paida kiya tha aur hamen saumpakar svayan satee ho gayee theen . tumhaare maata – pita ke mar jaane ke baad samoocha van bahut dinon tak rota raha . ve hamen pyaar karate the aur ham sab unhen .’ itana kahakar vanaspatiyaan phoot – phootakar ro padeen . yah sunakar baalak pippalaad ko bahut vismay hua . usane apane maata – pita kee kahaanee jaananee chaahee . vanaspatiyon ne unake maata pita ko shraddha se naman kar unakee jeevan – gaatha praarambh kee – ‘tumhaare pita ka naam dadheechi tha . unamen sabhee uttam gun vidyamaan the . tumhaaree maata uttam kul kee kanya aur pativrata theen . unaka naam gabhastinee tha . ve lopamudra kee bahan theen . tumhaare maata – pita ne tapasya kar itanee saamarthy arjan kar lee thee ki unake aashram par daity – daanavon ka aakraman nahin ho paata tha . ek din vishnu, indr aadi sabhee devata aashram mein aaen . daityon par vijay paane se ve prasann the . tumhaare maata – pita ne unaka bhaavabheena satkaar kiya . devataon ne kaha – ‘aap jaise maharshi jab han logon par itanee krpa rakhate hain, tab hamaare lie kya durlabh hai ? hamane shatruon par vijay praapt kar lee hai . ab chaahate hain ki apane astr – shastr aapake aashram mein rakh den, kyonki teenon lokon mein aapaka aashram hee niraapad sthaan hai . yahaan aapakee tapasya ke prabhaav se daity aadi pravesh nahin kar paate .’ udaaracheta muni ne unakee praarthana sveekaar kar lee . tumhaaree maata ne unhen rokate hue kaha – ‘naath ! yah kaary virodh utpann karan vaala hai . is kaam mein aap na paden . aap to samadarshee hain . aapake lie shatru – mitr baraabar hain . astr – shastr rakhane se daity aur daanav aapase shatruta rakhane lagenge . dharohar – roop mein kisee ka dhan rakhana saadhu purushon ke lie uchit nahin kaha gaya hai .’ maharshi dadheechi ne kaha – ‘devata srshti ke rakshak hain aur mainne haan kar bhee diya hai, isalie ab nahin kahana anuchit hain .’ devata astr – shastr aashram mein rakhakar chale gae . idhar daity maharshi se dvesh karane lage . maharshi ko chinta huee ki daity bade beer to hain hee, saath hee tapasvee bhee hain . jab ve aakraman karenge tab main shaastron kee raksha nahin kar paoonga, aisa vichaarakar unhonne astr – shastron kee raksha ke lie ek upaay kiya . unhonne pavitr jal ko abhimantrit kar usase astr – shastron ko nahalaaya aur us jal ko svayan pee liya . tej nikal jaane se ve sabhee astr – shastr shaktiheen ho gae . isalie ve dheere – dheere nasht ho gae . bahut dinon ke baad devata mahi ke aashram mein pahunche, kyonki unake shatruon ne phir sir uthaaya tha . maharshi ne unhen batalaaya ki un astron kee suraksha ke lie unaka tej mainne pee liya hai . ve ab meree haddiyon mein mil gae hain . aap haddiyaan hee le jaen . mere shareer ka yah sundar upayog ho raha hai . maharshi ne yog ke dvaara shareer ka tyaag kar diya . vishvakarma ne un haddiyon se divy astron ka nirmaan kiya . ve hee devataon kee vijay ke kaaran bane . is avasar par maata gabhastinee nadee – tat par gayee theen . paarvatee kee pooja mein lage rahane se unhen lautane mein der ho gayee thee . us samay ve garbhavatee theen . aashram mein aane par unhonne apane patidev ko nahin dekha . agnidevata ne saaree ghatana unhen suna dee . unhonne pati ke kaary kee saraahana kee, phir teenon agniyon kee pooja karake apana pet cheerakar tumhen haath se nikaal diya . tumhen hamalogon ko saumpakar pati ke kesh aadi ke saath ve agni mein pravesh kar gayeen . us samay aashram ka pratyek praanee du:kh se santapt hokar ro utha . sab kah rahe the ki dadheechi aur praatitheyee (gabhastinee) jitana hamen pyaar dete the, utana apane maata pita bhee pyaar nahin kar paate . hamen dhikkaar hai ki ham unake darshanon se vanchit ho gae . ab yah baalak hee hamalogon ke lie dadheechi aur praatitheyee hai . vanaspatiyon ne katha ka upasanhaar karate hue kaha ki yaheen kaaran hai ki ham vanavaasee tumhen putr se adhik maanate hain . baalak pippalaad ko apanee katha sunakar bahut du:kh hua . maata ne pet cheerakar jo use nikaala tha, is baat se use adhik peeda huee . vah rota hua bola – ‘main abhaaga hoon, jo maata ke kasht ka kaaran bana . main unakee seva to kuchh kar hee na saka .’ usake baad devataon ke krty par use krodh ho aaya . usane kaha – ‘main devataon se pratishodh loonga . unhonne mere pita ka vadh kiya hai, at: main unaka vadh karunga .’ vanaspitayon ne samajhaaya ki pratishodh theek nahin hota .tumhaare maata pita ne vishv ke hit ke lie aatmadaan kiya hai . tum bhee unheen ke path par chalo . bachche ke ant:karan mein pratishodh kee bhaavana shaant nahin huee . usane bhagavaan shankar kee praarthana kee ki shatruon ke naash ke lie aap mujhe shakti deejie . bhagavaan ne use krtya dee . pippalaad ne use aagya dee ki too nere shatru devataon ko kha ja . devata bhaag khade hue aur unhonne bhagavaan shankar kee sharan lee . bhagavaan shankar pippalaad ko samajhaaya ki tumhaare pita ne vishv ke hit ke lie apana praan de diya hai . unake samaan dayaamay kaun hoga ? tumhaaree maata bhee unheen ke saath pati lok chalee gayeen . unakee samata kisase hogee ? tum bhee apane maata pita ke raaste par hee chalo . tumhaare prataap se devata sankat mein pad gae hain . unhen tum bachaon . yaheen tumhaara kartavy hai . pratishodh achchha nahin hota . pippalaad shaant ho gae . unhonne bhagavaan shankar ka upadesh maan liya . bhagavaan ne aur devataon ne bhee pippalaad ko varadaan maangane ko kaha . pippalaad ne var maanga ki main apane maata – pita ko dekhana chaahata hoon . divy lok se unake maata – pita divy vimaan se upasthit ho gae . unhonne kaha – ‘putr ! tum dhany ho . tumhaaree keerti svargalok tak pahunch chukee hai . tumane bhagavaan shankar ka pratyaksh darshan kiya hai .’ vatan samaapt hote hee aakaash se pippalaad ke oopar phoolon kee varsha hone lagee . devataon ne jay jayakaar kiya .

Check Also

ravaan-dasrath

महाराज अज और रावण

महाराज दशरथ की जन्म कथा विविधता और आद्भुतता से भरी है। इस पौराणिक कथा में, राजा अज की भक्ति और उनके धर्म के प्रति निष्ठा से देवी सरस्वती.....