Breaking News

राजा और फकीर !!

विरक्त संत एकांत में भगवान् की भक्ति-साधना में मस्त रहते हैं। एक बार संत कवि कुंभनदास को एक बादशाह ने अपने महल में आने के लिए बुलावा भेजा।

संत ने कागज पर लिखकर दिया, ‘संतन कहा सीकरी सो काम, आवत जात पन्हैया टूटे-बिसर जाए हरिनाम।’ यानी मुझे राजा व उसके महल से क्या लेना-देना है। वन का एकांत छोड़कर वहाँ तक जाने में पैरों की जूती घिसेगी और इतने समय में हरिनाम से वंचित रह जाऊँगा।

बादशाह ने जब यह पंक्ति पढ़ी, तो उसने संत वहीं से प्रणाम किया।

कुछ संत कभी-कभी धनाढ्यों और राजाओं को सत्कर्मों में लगाने के उद्देश्य से उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं। संत जलालुद्दीन ऊँचे फकीर माने जाते थे। वे दर्शनों के लिए आने वालों को सदाचार का जीवन जीने और सेवा-परोपकार में लगे रहने की प्रेरणा दिया करते थे ।

एक बार उन्हें पता लगा कि राज्य का बादशाह स्वेच्छाचारी हो गया है। संत बादशाह के महल में जा पहुंचे और उसे विलासी जीवन त्यागने और गरीबों की सहायता करने जैसी अनेक नसीहतें दीं।

उनके शिष्यों को पता चला, तो उन्हें दुःख हुआ, क्योंकि कुरान में लिखा है कि सच्चे फकीर को किसी महल में नहीं जाना चाहिए। एक शिष्य ने कहा, ‘बाबा, आप वहाँ क्यों गए?

बाबा जलालुद्दीन ने मुसकराते हुए कहा, ‘बादशाह तो अज्ञानी है। मेरे पास आने की उसे फुरसत नहीं। मैं उससे कुछ लेने नहीं गया था । फकीरों का यह भी कर्तव्य है कि वे छोटे-बड़े सभी को नसीहत देकर अच्छा बनाए।

शिष्य संतजी के तर्क से संतुष्ट होकर उनके समक्ष नतमस्तक हो उठा।

Check Also

pakshi-budiyaa

बेजुबान रिश्ता

आँगन को सुखद बनाने वाली सरिता जी ने अपने खराब अमरूद के पेड़ की सेवा करते हुए प्यार से बच्चों को पाला, जिससे उन्हें ना सिर्फ खुशी मिली, बल्कि एक दिन उस पेड़ ने उनकी जान बचाई। इस दिलचस्प कहानी में रिश्तों की महत्वपूर्णता को छूने का संदेश है।