चंदनपुर का राजा बड़ा दानी और प्रतापी था , उसके राज्य में सब खुशहाल थे पर राजा एक बात को लेकर बहुत चिंतित रहा करता था कि धर्म व दर्शन पर लोगोँ के विचारोँ मेँ सहमति क्योँ नहीँ बनती।एक बार राजा ने विभिन्न धर्मोँ के उपदेशकोँ को आमंत्रित किया और एक विशाल कक्ष में सभी का एक साथ रहने का प्रबंध करते हुए कहा , ” अब अगले कुछ दिनों तक आप सब एक साथ रहेंगे और आपस में विभिन्न धर्मो और दर्शनों पर विचार-विमर्श करेंगे। और जब आप सभी के विचार एक मत हो जायेंगे तो मैं आपको ढेरों उपहार देकर यहाँ से विदा करूँगा।”
और ऐसा कहते हुए राजा वहाँ से चला गया।
कक्ष में घोर विचार-विमर्श हुआ , सभी अपनी -अपनी बात समझाने में लगे रहे पर कुछ दिन बीत जाने पर भी वे एक मत नहीं हो पाये।
पड़ोसी राज्य में रहने वाले एक महत्मा जी को जब ये बात पता चली तो वह राजा से मिलने पहुंचा।
” हे राजन ! मैंने सुना है कि तू बड़ा दानी है , क्या तू मुझे भी दान देगा ?”, महात्मा जी बोले।
” अवश्य ! बताइये आपको क्या चाहिए। ” , राजा बोला।
महत्मा जी – ” मुझे तेरे अनाज के गोदाम से कुछ अनाज चाहिए। ”
राजा – ” जी, बिलकुल आप मेरे साथ आइये। ” और राजा उन्हें गोदाम तक ले गया।
वहाँ पहुचते ही महात्मा जी बोले , ” अरे ! ये क्या राजन , तुम्हारे गोदाम में तो तरह तरह के अनाज रखे हैं तुम इन सबकी जगह कोई एक अनाज ही क्यों नहीं रखते ?”
राजा को यह सुन थोड़ा अचरज हुआ और वह बोला, ” यह कैसे सम्भव है , अगर मैं गेंहूं, चावल , दाल , इत्यादि की जगह बस एक अनाज ही रखूँगा तो हम अलग अलग स्वाद और पोषण के भोजन कैसे कर पाएंगे , और जब प्रकृति ने हमे इतने ढेर सारे अन्न दिए हैं तो बस किसी एक अन्न का ही प्रयोग करना कहाँ की बुद्धिमानी है ?”
” बिलकुल सही राजन , जब तुम विभिन्न अनाजों की उपयोगिता एक से नहीं बदल सकते तो भला विभिन्न धर्मों के विचारों और दर्शनो को एक कैसे कर सकते हो ? सबकी अलग-अलग उपयोगिता है और वे समय-समय पर मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं।”, महात्मा जी ने अपनी बात पूरी की।
राजा को अपनी गलती का अहसास हो चूका था और उसने कक्ष में बंद सभी उपदेशकों से क्षमा मांगते हुए उन्हें विदा कर दिया।