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राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान

राजपूताने की वीर मिट्टी में एक से बढ़कर एक वीर और साहसी महापुरुषों का जन्म हुआ जिन्होंने अपना पराक्रम चारों दिशाओं में दिखाया राजस्थान की धरा में मध्यकाल में शक्तिशाली चौहान राजपूतों का शासन था। 1166 ई. में जन्म हुआ राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जिन्होंने अल्पायु में ही अपनी वीरता से चारों दिशाओं में अपना नाम सिद्ध कराया।
• पृथ्वीराज तृतीय (1177-1192)
•परिचय :
पृथ्वीराज तृतीय अर्थात पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ई. में क्षत्रिय रानी कर्पूरी देवी और सोमेश्वर चौहान की संतान के रूप में हुआ।
पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान का निधन गुजरात अभियान के दौरान हो गया और उस समय पृथ्वीराज चौहान की आयु 11 वर्ष थी इस 11 वर्ष की अल्पायु में पृथ्वीराज चौहान का राजतिलक कर उनको अजमेर का राजा बनाया गया उनकी अल्पायु के कारण उनकी माता कर्पूरी देवी शासन मे उनका सहयोग करती थी।
• पृथ्वीराज चौहान के समकालीन शासक :
(1) पृथ्वीराज चौहान के समकालीन गुजरात के शासक भीमसेन थे।
(2) पृथ्वीराज चौहान के समय कन्नौज के शासक जयचंद गहड़वाल थे।
(3) पृथ्वीराज चौहान के समय महोबा में चंदेल शासक परवर्ती देव का शासन था।
(4) दिल्ली में पृथ्वीराज के नाना अनंग पाल तोमर का शासन था।
• पृथ्वीराज चौहान की उपाधियां :
(1) दल पुंगल
(2) राय पिथौरा
(3) अंतिम हिंदू सम्राट
राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान के घोड़े का नाम नाट्य रमन और उनके सेना अध्यक्ष का नाम भुवन मल था।

• पृथ्वीराज चौहान के प्रारंभिक अभियान :

(1) अल्पायु में ही शासन की बागडोर संभालते राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सर्वप्रथम भंडा नको का दमन करने की रणनीति बनाई और इस रणनीति में उनको सफलता भी मिली और यह उनकी शासक के तौर पर पहली विजय थी भंडा नको द्वारा भरतपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में हस्तक्षेप था इस हस्तक्षेप को लेकर सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने भंडा नको दमन कर दिया।
(2) भंडा नको के दमन के पश्चात राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने महोबा के चंदेल शासक परवर्ती देव से तुमुल का युद्ध किया जिसमें पृथ्वीराज चौहान की सेना विजय हुई और परवर्ती देव के विश्वस्त और वीर सेनानायक आल्हा और उदल लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए।
(3) पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान का गुजरात अभियान के दौरान निधन हो गया था तो राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने इस अभियान को पूर्ण करने और अपने पिताजी की मौत का बदला लेने के लिए गुजरात शासक भीमसेन पर आक्रमण कर दिया और इस अभियान में पृथ्वीराज चौहान की सेना विजय हुई।
मोहम्मद गौरी :
मोहम्मद गौरी वर्तमान अफगानिस्तान के गजनवी के गौर प्रदेश पर शासन करता था वह अपनी राज्य विस्तार वादी नीति के लिए सेना सहित भारत की ओर बढ़ा परंतु चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो में वर्णित है कि वह राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान से 17 बार पराजित हुआ और गौरी हर बार की तरह फिर एक नए सेना सहित उसी रास्ते पर फिर आगे बढ़ता और फिर से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध के लिए आमंत्रित करता 17 बार हारने के पश्चात गौरी वापस गौर प्रदेश लौट के आ और कई वर्षों बाद एक विशाल सेना के साथ लौटा।
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• तराइन का प्रथम युद्ध 1191 :
तराइन का प्रथम युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच तराइन के मैदान में लड़ा गया इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई और उसने मोहम्मद गौरी को बहुत आगे तक खदेड़ दिया और उसकी सेना युद्ध मैदान से भाग खड़ी हुई परंतु पृथ्वीराज चौहान की सेना ने भागती गौरी सेना का पीछा नहीं किया और उसे जाने दिया।
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( गौरी की एक और हार हुई और फिर वह एक बार और युद्ध की रणनीति में लग गया इस बार वह 1 वर्ष के बाद एक विशाल और लाखों की सेना की संख्या लेकर पुनः तराइन के मैदान में लौटा )
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हर बार पृथ्वीराज चौहान की विजय होने के कारण पृथ्वीराज ने इस बार गौरी को अपने सेना के एक टुकड़ी को लेकर गौरी का मुकाबला करने के लिए निकल पड़ा और गौरी इस बार लाखों की सैनिक संख्या के साथ आया था।
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• गौरी की छल कपट नीति :
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मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पुनः मैदान में देखकर वह घबरा गया और अपने बादशाह के शासक की बात को लेकर आने तक पृथ्वीराज चौहान को रुकने के लिए कहा जब पृथ्वीराज चौहान की सेना आराम कर रही थी तब अचानक गौरी की सेना ने आक्रमण कर दिया।
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• तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 :
तराइन का द्वितीय युद्ध का पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के मध्य 1 वर्ष के पश्चात हुआ 1192 में हुआ और इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई उसे कैद कर लिया गया और गौरी अपने साथ गौर प्रदेश पृथ्वीराज चौहान को ले गया।
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•शब्दभेदी बाण :
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चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई के कहने पर शब्दभेदी बाण चलाया और मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया।
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“चार बांस चौबीस गज , अंगुल अष्ट प्रमाण
सिर ऊपर सुल्तान , मत चुके चौहान”
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अर्थात चंदबरदाई इस दोहे में यह कहते हैं कि चार बांस जितनी लंबाई और 8 अंगुल जितनी ऊंचाई पर सुल्तान बैठा है चूक ना मत राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान यह आखरी मौका है उसको मारने का।

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