धरती पर भगवान राम ने अपने सारे काम कर लिए थे, अब उनकी मृत्यु का वक्त सामने आ गया था। ऐसे में यमराज ने एक साधू का रूप लिया और राम के नगर पहुंच गए। वो राम के महल पहुंचे और उनसे मिलने का वक्त तय किया। फिर वो श्री राम से मिलें और उन्होंने उनके बीच होने वाली बातों को सबसे छुपाकर रखने की शर्त रखी। साथ ही यह भी कहा कि अगर हम दोनों की बातों के बीच कोई भी आएगा, तो दरवाजे पर खड़े द्वाररक्षक को मृत्युदंड (यानी मरना पड़ेगा) दिया जाएगा। श्री राम ने साधू रूप धारण किए यमराज की बात मान ली और हनुमान जी के न रहने के कारण राम ने भाई लक्ष्मण को द्वारपाल बना दिया।
फिर यमराज अपने असली रूप में आएं और बोले, “भगवान आपका पृथ्वी पर जीवन पूरा हो चुका है। अब आपका अपने लोक लौटने का वक्त आ गया है।” यमराज और भगवान राम के बीच बातचीत चल ही रही थी कि उसी वक्त दरवाजे पर ऋषि दुर्वासा पहुंच गए। उन्होंने लक्ष्मण को दरवाजे से हटने को कहा और अंदर जाने की जिद पर अड़ गए । लक्ष्मण ने मना किया, तो वह श्रीराम को श्राप देने की बात करने लगे।
लक्ष्मण काफी परेशान हो गए। अगर श्रीराम की बात नहीं मानी, तो उन्हें मरना होगा और अगर ऋषि की बात नहीं मानी, तो श्रीराम को श्राप लगेगा। इस स्थिति में उन्होंने एक मुश्किल फैसला लिया और ऋषि को अंदर जाने दिया।
बातचीत के बीच ऋषि को देख भगवान श्रीराम चिंतित हो गए कि अब उनको लक्ष्मण को मारने की सजा देनी होगी। ऐसे में भगवान राम ने लक्ष्मण को नगर से निकाल दिया। लक्ष्मण ने अपने भाई के वादे को निभाने के लिए सरयू नदी में जाकर जल समाधि (डूब गए) ले ली।
लक्ष्मण के बारे में जानने के बाद राम बहुत दुखी हुए। फिर भगवान श्री राम ने भी जल समाधि लेने का फैसला किया। श्री राम भी सरयू नदी में जल समाधि लेने के निकल पड़े। उस वक्त वहां भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, सुग्रीव और जामवंत भी मौजूद थे। देखते ही देखते भगवान श्रीराम सरयू नदी में समा गए। कुछ ही देर बाद नदी के अंदर से भगवान अपने विष्णु रूप में सबके सामने प्रकट हुए। उन्होंने अपने भक्तों समेत वहां मौजूद हर किसी को दर्शन दिए। इस तरह भगवान राम धरती पर अपने जीवन को पूरा कर स्वर्ग लौट गए।