Breaking News

रामचरितमानस’ सुन्दर कांड- दोहा क्रमांक

जो संपति सिव रावनहिं
दीन्हि दिये दस माथ
सोई संपदा विभीसन्हि
सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।

(‘रामचरितमानस’ सुन्दर कांड- दोहा क्रमांक 49 (ख))

प्रसंग है उस घटना का जब विभीषण अपने बड़े भाई रावण का साथ छोड़कर श्री राम की शरण में आये। मिलने पर विभीषण ने श्री राम से केवल उनकी भक्ति मांगी। श्री राम ने उन्हें अपनी भक्ति तो दी ही, साथ ही उनका राजतिलक भी कर दिया। ऐसा कर के श्री राम ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि रावण का अंत निकट है और विभीषण ही लंका नरेश होंगे। प्रभु अपने भक्तों को अपनी भक्ति देने के साथ साथ उनकी उचित सांसारिक इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति भी करते हैं। प्रभु श्री राम की अनुकंपा से भक्त की व्यक्त और अव्यक्त दोनों ही तरह की उचित इच्छाएं पूरी होती हैं।

गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जिस संपत्ति (प्रभु की भक्ति, अनुकंपा और भक्त के लिए उपयुक्त सांसारिक लाभ) को प्राप्त करने के लिए रावण को शिवजी को अपने दस सिर तक अर्पित करने पड़े थे, वैसी ही संपत्ति प्रभु श्री राम ने विभीषण को बहुत संकोच के साथ प्रदान की। यहां संदर्भ है एक पौराणिक कथा का जिसके अनुसार एक बार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। लंबे समय तक तपस्या करने पर भी जब शिवजी ने रावण को दर्शन नहीं दिये तो वह एक के बाद एक अपने सिर काट कर शिवजी को अर्पित करने लगा। तब शिवजी उसके सम्मुख प्रकट हुए। उन्होंने रावण के दसों सिर तो उसे वापिस किये ही, उसे अपनी भक्ति और अनुकंपा भी प्रदान की।

इस प्रकार शिवजी से जो सम्पत्ति पाने के लिए रावण को कठोर तप करना पड़ा और यहां तक कि अपने दस सिर भी अर्पित करने पड़े थे, वैसी ही सम्पत्ति रावण के भाई विभीषण को बिना किसी तप के, सरलता से प्रभु श्री राम से अनायास प्राप्त हो गई।

इसी आशय की पंक्तियों का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘विनय पत्रिका’ में भी मिलता है-

“जो संपति दस सीस अरप
करि रावण सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा विभीषण कहँ
अति सकुच सहित हरि दीन्हीं।”

vibhikshan-ram
vibhikshan-ram
  • Videos
  • Playlists
  • 358 more
  • 18 more
    • Check Also

      first-train-india

      मानसिक गुलामी की आदत

      बिलकुल नहीं, नाना जगन्नाथ शंकर सेठ वो पहले व्यक्ति है जिन्होंने इसके लिए पहल शुरू …