रामदरश मिश्र की गजलों में प्रेम, प्रकृति, शहर, गांव, मनुष्य, घर परिवार, एवं निजी अनुभवों की तमाम यात्राएं शामिल हैं. सामाजिक राजनीतिक जीवन की विडंबनाए भी. धार्मिकता के स्याह चेहरे भी. पर आम आदमी के पक्ष में उनकी आवाज में करुणा नजर आती है. कविताएं रामदरश जी की रचनात्मकता का पुराना ठीहा हैं तो ग़ज़लें उनके कवित्व का नया विस्तार. हिंदी ग़ज़लों की जो दिशा कभी दुष्यंत कुमार जैसे गजल गो न रखी हिंदी के अनेक समर्थ गजलकारों ने उसे आगे बढ़ाया है. राम दरश मिश्र उनमें एक हैं, जिनके अब तक कई गजल संग्रह आ चुके हैं. बाज़ार को निकले हैं लोग- उनका पहल कदम था. उसके बाद जैसे-जैसे उनकी गजलों को लोकप्रियता मिलती गयी, वे गीतों की दुनिया से गजलों में शिफ्ट होते गए. गजल उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति का एक नया विस्तार सिद्ध हुईं. आज वे भले एक जाने माने कथाकार उपन्यास व कवि के रूप में पहचाने जाते हों पर उनकी गजलगोई उनके कवित्व के सम्मुख कम महत्त्वपूर्ण नहीं. तभी तो उनकी एक गजल इतनी मकबूल हुई कि उनकी वह पहचान बन गयी. वे आज भी जहां जाते हैं वह गजल फरमाइश पर सुनाते हैं. उसमें जीवन का जो फलसफा है वह लोगों को बहुत भाता है और बोलचाल की लय में वह गजल आज लोगों की जबान पर चढ़ चुकी है. वह गजल है: बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे/ खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे. हाल ही में उनकी ग़ज़लों का नया संग्रह स्वराज प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. नाम रखा है: ‘दूर घर नहीं हुआ’. एक बार मिलने पर वे इस संग्रह का यह गजल पढ़ने लगे-
चाहे जहां रहा मैं, दूर घर नहीं हुआ.
होने को तो हो जाता जुदा, पर नहीं हुआ.
रामदरश मिश्र को कौन सा सम्मान मिला है?
काव्य डेस्क प्रतिष्ठित कवि रामदरश मिश्र को नई दिल्ली में साहित्य अकादमी सभागार में साहित्य के क्षेत्र का वर्ष 2021 का बहुचर्चित ‘सरस्वती’ सम्मान से सम्मानित किया गया।
रामदरश मिश्र का जन्म कहाँ हुआ था?
आज हिंदी साहित्य के वयोवृद्ध रचनाकार रामदरश मिश्र सौवां जन्मदिन मना रहे हैं. पूरे साहित्य जगत के लिए यह दिन एक उत्सव की तरह है. 15 अगस्त, 1924 को गोरखपुर के डुमरी गांव में जन्मे मिश्र ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की.
कंधे पर सूरज किसकी रचना है?
इसके बाद के संग्रह ‘कंधे पर सूरज’ और ‘दिन एक नदी बन गया’ रामदरश जी की कविताओं के निस्संदेह बहुत अच्छे संग्रह हैं, जिनकी सबसे ज्यादा चर्चा हुई है. उनकी रचना-यात्रा का यह शिखर-काल है
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