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सही राह

“सुधा…… क्या हाल बना रखा है तुमने अपना, अब तो तुम्हारे बदन से भी मसाले की खुशबू आती है | मोहन ने बाथरुम से निकलते ही सुधा को देखा और गुस्से से बड़बड़ाने लगा | सुधा ने मोहन की ओर देखा और आँखे झुका ली |

“नाश्ता तैयार है….मोहन चिल्लाते हुए बोला…गुस्सा अपनी चर्म सीमा पर था |

“जी ….संक्षिप्त सा जवाब सुनाई दिया |

“आज फिर ब्रेड आमलेट, तुम्हारे पास मेरे लिये समय ही नही रहा | झटके से प्लेट पीछे सरकाते हुए मोहन तैश मे बोला, फिर वही खामोशी | मोहन गुस्से से भन्ना गया |

“टिफीन भी रहने दो ऑफिस में ही खा लूँगा, कहते हुए मोहन ने गाड़ी की चाबी उठाई और तेजी से निकल गया | रास्ते भर मूड ऑफ रहा , आँफिस मे पहुंच कर बिजी हो गया तो सब भूल गया लेकिन शाम होते होते फिर वही कोफ्त , घर तो जाना ही पड़ेगा | जैसे ही गाड़ी में बैठा कि मां का फोन आ गया | अनमने मन से फोन उठाया, न उठाता तो मां चिंतित होकर बार बार फोन करती ही रहती |

“हेलो….हां मोहन…कैसा है बेटा ” मां ने फोन उठाते ही हमेशा की तरह पहला प्रश्न पूछा…

“ठीक हूँ मां….मोहन ने खुद को संयत करते हुए जवाब दिया | पर मां तो मां ही होती हैं ना…एक पल में मां ने भांप लिया कि मोहन के मन में कोई तो उथल पुथल मची हुई है |

“और सुना बहू बच्चे ठीक है | कितने दिन हो गये तुझे देखे | जब से तेरी नौकरी दूसरे शहर मे लगी है तरस गई हूँ तुझे देखने को टाईम निकल कर आजा जल्दी

“जी मां….जल्दी ही आऊंगा… ” छोटा सा प्रत्युतर!

” आज उदास क्यूँ है रे….मां से पूछे बिना रहा ना गया | मां के प्रेम का जरा सा सहारा पाते ही आक्रोश का ज्वालामुखी सा फूट पड़ा |

“मां ….वक्त के साथ सुधा में बहुत बदलाव आ गये है…. अब कुछ भी पहले जैसा नही रहा | ना तो अब वो मेरा ठीक से ध्यान रखती है ना मेरी पसंद नापसंद का ध्यान रखती है और तो और मेरी पसंद का खाना तक बनाने का समय नही रहा अब उसके पास …. मां I am fed up now … मोहन के मन में चल रही सारी उमड़ घुमड़ एक ही झटके में उबल पड़ी | मां ने ध्यानपूर्वक मोहन की सब बातें सुनी और फिर पूछा

“और तू,,,, तू नही बदला क्या | सच बताना क्या तू सुधा को पहले की तरह समय देता है….

“पर मां….मोहन को एक पल को कोई जवाब ना सूझा । मां ने गहरी आवाज में अगला प्रश्न दागा-“क्या तू उसे घुमाने, सिनेमा दिखाने या पहले की तरह शापिंग कराने लेकर जाता है |

“मां उसके पास तो टाईम ही नही है….

यही तो सबसे बड़ी प्राब्लम है….”बेटा…. मैं भी इसी दौर से गुजर चुकी हूँ, मेरे और तेरे पापा के बीच भी ये खाई पनपी थी… दूरिया इतनी बढ़ गई कि,,,,पर समय रहते तेरी दादी ने सब संभाल लिया |

“क्याssssss मोहन जैसे पलक झपकना ही भूल गया

“बेटा बच्चे होने के बाद पत्नी एक मां भी होती है, घर और बच्चों की दोहरी जिंदगी जीते जीते एक पत्नी खो सी जाती है | पति शायद इस बात को उतनी गहराई से नही समझ पाते | उन्हें तो बस अपने हिस्से का समय चाहिए होता है |

“मां,,,,,,”

“याद है जब हम सब साथ रहते थे तो मैं किसी ना किसी बहाने से तुम दोनों को बाहर भेज देती थी और बच्चों को खुद संभाल लेती थी | पर दूसरे शहर में जाकर बहू को किसका सहारा है और फिर तू भी उसका साथ नही देगा तो कौन देगा मोहन बेटा| मां की बातें पल्ले पड़ने लगी,,,, उदासी के घने बादल छटकने लगे,,,,”मैनें कभी इस पॉइंट ऑफ व्यू से तो सोचा ही नही….मोहन को ग्लानि सी अनुभव हुई |

“मां मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी कि अनजाने में क्या क्या सोच गया सुधा के बारे मे,,,,, मां आज आपने मुझे सही राह ना दिखाई होती तो मेरा तो घर ही…

“शुभ शुभ बोल मोहन, प्रेम तो एक गहरा सागर है,,,, इस सागर मे जितना डूबोगे उतना सुख पाओगे….

“मां,,,,थेंक्यू,,,,,शर्मिन्दगी सी महसूस हुई मोहन को….

पर मां ने अपना रोल बखूबी निभा दिया था और उथल पुथल का कीड़ा मोहन के मन से निकाल फेंका था….

“सदा सुखी रहो मेरे लाल …अब फोन रख और खुश मन और सकारत्मक विचारों के साथ घर जा….सुधा इंतजार करती होगी….

“जी मां…. मोहन की आवाज में लरजती खुशी की लहर महसूस कर चुकी थी मां….घर पहुँचते ही मोहन ने ऐलान कर दिया-

“जल्दी से तैयार हो जाओ ….आज डिनर बाहर ही करेंगें और आराध्या आज तुम्हारी पसंद की आइसक्रीम भी खायेंगे….

“पर मैनें तो खाना बना लिया…आप सुबह भी बिना कुछ खाए चले गये… सौरी मोहनजी…..सुधा की रूआंसी आवाज़ और लाल आंखें बता रही थी की वह बहुत रोयी होगी आज…

“सौरी तुम्हे नही मुझे कहना है तुमसे….तुम्हे बहुत इग्नोर किया इतने दिन,,, अब और नही…

मोहन सुधा की आंखों मे झिलमिलाते आँसुओ को जैसे पी जाना चाहता था…

“जाओ जल्दी से मेरी पसंद की नीली शिफोन की साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ…और हां रेड लिपस्टिक ही लगाना….

अब दोनों के साथ साथ बेटी आराध्या की मुस्कुराहट देखने लायक थी

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