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सास बहु और कामवाली

मां ये क्या हैं …. तुम हमेशा अपनी मेड के लिए ये साड़ियां वगैरह खरीदते रहती हो वो भी मंहगी से मंहगी कल भी खरीदी थी बीना बता रही थी मां जो कीमती साड़ियां तुम्हारी बहु पर शूट करती है वैसी अगर तुम अपने घर की नौकरानी के लिए आखिर चाहती क्या हो क्यों तुलना करने में लगी हो क्या आपकी नजर में बीना जोकि हमारे घर की बहु है और एक नौकरानी में कोई अंतर नहीं है गुस्से में लाल पीला होते हुए दीपक ने अपनी मां से कहा बाहर दरवाजे की ओट में छुपी हुई बीना मुस्कुरा रही थी क्योंकि उसने ही दीपक को बताया था कि मां ने कल फिर से अपनी नौकरानी के लिए कीमती साड़ी खरीदी है
अंतर …. तुलना … बेटा बहुत भारी शब्द है खैर तुम जानते भी हो एक बहु का फर्ज क्या होता है बस अपनी सास से उसकी संपत्ति लेने का…
बेटा में जो करती हूं सोच समझकर ही करती हूं और में तुम्हारे पैसों का नहीं बल्कि अपने स्वर्गीय पति के पैसे का सदुपयोग करती हूं सुधा गर्व से बोलीमे कुछ समझा नहीं मां
तुम्हें बताया था मगर तुम भी अपनी पत्नी के कहे पर ही खैर में बुरा नहीं मानती जीवनसाथी हो उसके मगर बेटा एक अच्छे जीवनसाथी का फर्ज अपने साथी को अच्छा बुरा बताकर समझाने का भी होता है केवल आंख बंद करके हां में हां मिलाते हुए रहने का नहीं
मां साफ साफ कहो ना आखिर बात क्या है
जानते हो बीना ने मुझे कहा था मां आपका ये सोने का हार मुझे चाहिए इतना खूबसूरत है और कीमती भी मेरी सहेलियां तो देखकर ही जलभुन जाएगी इन्होंने बड़े प्यार से दिया था मुझे मेरे बाद ये सब है ही किसका तेरा और बहु का मैंने खुशी खुशी उसे दे दिया उसदिन तू भी था नाजब तेरे चचेरे भाई की शादी में हमसब को जाना था मेरा सिरदर्द हो रहा था ये तुझे भी पता था मगर तू तैयार होकर बाहर गाड़ी निकालकर हार्न बजाकर बहु को बुला रहा था और बीना तैयार होकर बाहर आई और मुझसे बोली मैं निकल रही हूं मम्मी जी आप अपना ख्याल रखिएगा….. ख्याल ….उसे बस अपनी कीमती साड़ी और सोने का हार दिखाने की जल्दी थी सास की फ्रिक नहीं जाना तो हमें सबको था ना क्या रुककर मेरे सिर को प्यार से सहलाया नहीं जा सकता था मुझे डाक्टर के पास पहले लेकर जाया नहीं सकता था मगर तुम्हें अपना स्टेटस मेंटेन करना जरूरी था शादी में दोनों को ही जाना था मेरी हालत ऐसी नहीं थी कि मैं उठकर खाना बना पाती जब बहु को कहा कुछ बनाकर दे जाओ तो वह बोली होटल रेस्टोरेंट से आर्डर कर लीजिए और तैयार होकर निकल गई उस वक्त मेरी आंखों में पानी भर आया था जिस वक्त अपनों का साथ जरूरी हो उस वक्त बेटे बहु को पार्टी जरुरी लगती है अपनी मां नहीं … तभी अपनी कामवाली आ गई मे दरवाजा खोलकर वापस बिस्तर पर आकर लेट गई
अभी बमुश्किल पांच मिनट ही बीते थे की वह कमरे में आ गई और बोली आप यहां कयुं लेटी हुई है बाहर आकर बैठिए ना आपकी हमेशा की तरह मीन- मेख निकालने वाली बातें और मुझसे किच-कीच करने वाली बातें कीजिए ना काम में मन लगा रहता है और काम भी अच्छा होता है
अच्छा तुझे मेरा किच -किच करना बुरा नहीं लगता
नहीं मां जी …बल्कि मुझे तो बहुत खुशी होती है मेरी मां बचपन में मुझे ऐसे ही टोकती थी और उनकी डांट खाने के लिए में अक्सर कुछ ना कुछ गलतियां करती रहती थी बाद में हम मां बेटी खिलखिला कर हंसती थी मुझे आप में अपनी मां की छवि दिखाई देती है अरे चलिए ना
नहीं …आज नहीं
कयुं क्या हुआ है आपको
वो आज तबीयत खराब है सर में बहुत दर्द है..जब मैंने कहा तो वह बोली अरे तो पहले बताना चाहिए था ना रुकिए कहकर वह तेजी से रसोईघर में गयी और जब वह वापस आई तो उसके हाथों में तेल की कटोरी थी मेरे सिर में मालिश करनी और सिर दबाते हुए सहला रही थी उस वक्त बहुत सुकून मिला फिर उसने पूछा मैंने कुछ खाया
मैंने कहा अभी बनाना है
वो रसोईघर में गयी और झटपट खिचड़ी बनाकर ले आई उस वक्त मुझे बहु की बात याद आ रही थी मां में आपकी बहु नहीं बेटी हूं बेटी
बेटी ….जो मां को दर्द में छोड़कर बाहर पार्टी के लिए निकल गई और वहीं एक दूसरी और हमारे घर में काम करने वाली एक गरीब घर की लड़की जिसे में हमेशा डांटती रहती थी वह मेरी देखभाल कर रही थी मुझे अपनी मां समझती थी और में …. मैंने उसी वक्त तय कर लिया था आज से वह मेरी बेटी है और हर मां अपनी बेटी को कुछ ना कुछ देती है सो …और हां बहु को बता देना आगे से अपनी तुलना मेरी बेटी से मत करना कहकर सुधाजी टीवी चला कर देखने लगी वहीं दीपक कमरे से बाहर दरवाजे की ओट में छुपी हुई अपनी पत्नी बीना को देखते हुए बाहर निकल आया दोनों एक दूसरे को देखकर शर्मिंदगी से यहां वहां देखते हुए अलग अलग कोनों में चले गए…

ये किस्सा उन दिनों का है जब 70 के दशक में अभिनेता मनोज कुमार फिल्म ‘शोर’ बनाने जा रहे थे इस फिल्म की कहानी के हिसाब से इसमें दो नायिकाओं की जरूरत थी
एक रोल मनोज कुमार की पत्नी का था और दूसरा रोल उनकी प्रेमिका और सहायक अभिनेत्री का था…… सहायक अभिनेत्री का रोल काफी पावरपुल था इस रोल के लिए मनोज कुमार ने एक्ट्रेस जया भादुड़ी को साइन कर चुके थे पर फिल्म में मनोज कुमार की पत्नी का रोल करने के लिए कोई एक्ट्रेस तैयार ही नहीं हो रही थी मनोज कुमार ने इसके लिए शर्मिला टैगोर से भी बात की उन्होने भी मना कर दिया …
..मनोज कुमार ये समझ नहीं पा रहे थे फिल्म के पहले हाफ के इस जरुरी किरदार ( उनकी पत्नी वाला ) के लिए वो किस नायिका को साइन करे ? क्योंकि ये रोल फिल्म के लिहाज़ से भी काफी महत्वपूर्ण था अब ऐसे वक्त में किसी मित्र ने मनोज कुमार की पत्नी के रोल के लिए अभिनेत्री ‘नंदा ‘का नाम सुझाया मनोज कुमार अनमने ढंग से बोले ….
”नंदा जी एक बड़ी हीरोइन है वो ऐसी फिल्म में काम क्यों करेंगी ? जिसमे वो इंटरवेल से पहले ही मर जाती है जबकि फिल्म में उनके समक्ष दूसरी अभिनेत्री जया के लिए कहानी में ज्यादा स्कोप है …मुझे तो लगता है की इस रोल के लिए किसी नई अभिनेत्री को ही लेना पड़ेगा ? ” लेकिन अपने मित्र के बार बार कहने पर मनोज कुमार ने नंदा से बात की और मिलने का वक्त माँगा ताकि वो उन्हें कहानी और रोल के बारे में बता सके
नंदा जी ने मनोज जी को अपने घर फिल्म की कहानी सुनने के लिए बुला लिया मनोज कुमार नंदा जी के घर गए …..यहां मनोज कुमार ने नंदा को पहले की सारी कहानी भी ईमानदारी से बता भी दी कि किस किस हीरोइन ने पहले इस रोल को करने से मना कर दिया है
और फिल्म में उनका नायक की पत्नी का छोटा सा रोल है जो एक एक्सीडेंट में मर जाती है प्रमुख नायिका एक तरह से जया जी ही है अब आप बताये की क्या आप ये रोल करेंगी ? …..नंदा जी ने कुछ देर सोचने के बाद कहा ….” वो उनकी फिल्म में ये रोल जरूर करेंगी ‘मगर इस शर्त के साथ की वो ये रोल वो बिना कोई फ़ीस लिए करेंगी ”…..
..मनोज कुमार जी हैरान थे ….. उन्हें उम्मीद ही नहीं थी की नंदा जैसी बड़ी अभिनेत्री ये छोटा सा रोल करेंगी लेकिन यहाँ तो वो इस रोल को बिना पैसो के ही करने को तैयार हो गई …..मनोज कुमार बहुत खुश हुए
नंदा ,जया भादुड़ी को लेकर इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई 1972 में ये फिल्म सिनेमा परदे पर रिलीज हुई नंदा जी ने अपना काम बेहद ईमानदारी से किया ,फिल्म ‘शोर ‘में इस छोटे में रोल में वो दर्शको की सारी सहानुभूति बटोर ले गई, फिल्म में उनके हिस्से ‘एक प्यार का नगमा ‘ जैसा सबसे हिट गाना आया ..फिल्म भी शानदार तरीके से बनी मॉ.सत्यजीत का फिल्म में नंदा के मूक बधिर बेटे बने थे ….
.. मनोज कुमार नंदा का ये एहसान कभी भुला नहीं पाए उन्होंने नंदा से वादा किया कि कभी किसी रूप में वो उनका ये ऐहसान चुका देंगे पर ऐसा हो नहीं पाया वो समय फिर कभी आया ही नहीं इस बात का मलाल मनोज कुमार को आज भी है अपने अलग कथानक के कारण भले इस फिल्म को सिमित दर्शक मिले पर ‘शोर ‘मनोज कुमार की बेहरीन फिल्मो में से एक मानी जाती है लक्ष्मी कांत प्यारेलाल का अमर संगीत इस फिल्म की जान है…

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