अधिकांश लोग भौतिक सुविधाओं को सुख का साधन मानते हैं, इसलिए ‘सुख-सुविधा’ शब्द का प्रायः एक साथ उपयोग किया जाता है। सुख पाने के लिए मानव अत्याधुनिक भौतिक साधनों की खोज में लगा रहता है।
किंतु देखने में आता है कि असीमित सुविधाओं से संपन्न व्यक्ति भी कहता है, ‘मुझे आत्मिक सुख-शांति नहीं मिल पा रही है।’ सुख-शांति की खोज में करोड़पतियों को भी साधु-संतों के आश्रम में चक्कर लगाते देखा जा सकता है।
योग दर्शन में कहा गया है, ‘संतोषदनुत्तमसुख लाभः’ यानी जो जीवन में संतोष धारण करेगा, उसी को सच्चे सुख की प्राप्ति होगी। भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं, ‘संतुष्ट सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः’ अर्थात्, मानव को सदैव संतुष्ट रहना चाहिए। जीवन में
संतोष रखोगे, तो हर क्षण सुख की अनुभूति होती रहेगी । महर्षि अरविंद कहते हैं, ‘सुख का संबंध चेतना के साथ है। अनुकूल संवेदन होता है, तो सुख की अनुभूति होती है।
प्रतिकूल संवेदन होने से दुःख की अनुभूति होती है। जिस व्यक्ति ने शरीर की जगह आत्मा को महत्त्व देना शुरू कर दिया, वह हर क्षण अनूठे सुख का आनंद प्राप्त करने लगता है।’
भ्रमवश भौतिक पदार्थों और सुविधाओं में सुख ढूँढ़ने वाला व्यक्ति न कभी संतोष का अनुभव कर सकता है और न आत्मिक सुख का। धन- सुविधाओं में जितनी वृद्धि होने लगती है,
उतना ही दुःख, असंतोष व तनाव सुरसा की तरह बढ़ने लगता है। इसलिए अंत में यह मानने को विवश होना पड़ता है कि सच्चा और स्थायी सुख संतोष से ही पाया जा सकता है।
English Translation
Most people consider material amenities to be a means of happiness, so the word ‘pleasure’ is often used together. In order to get happiness, man is engaged in the search of modern material means.
But it is seen that even a person who is endowed with unlimited facilities says, ‘I am not getting spiritual happiness and peace.’ Millionaires can also be seen roaming in the ashrams of sages and saints in search of happiness and peace.
It is said in the Yoga philosophy, ‘Santoshadanuttamsukh Labhh’, that is, one who has contentment in life, he will get true happiness. Lord Sri Krishna says in the Gita, ‘Santusht sathtam yogi yatatma dridhanishayah’, that is, one should always be content. in life
If you keep contentment, you will continue to experience happiness every moment. Maharishi Aurobindo says, “Happiness is related to consciousness. If there is a favorable feeling, then there is a feeling of happiness.
There is a feeling of unhappiness due to negative feelings. The person who started giving importance to the soul instead of the body, he starts enjoying unique happiness every moment.
A person who seeks happiness in material objects and facilities under illusion can never experience satisfaction or spiritual happiness. The more money and facilities start increasing,
The more sorrow, dissatisfaction and tension starts increasing like a surasa. Therefore, in the end one is forced to believe that true and lasting happiness can be found only through contentment.