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सकारात्मक नजीरया !!

दोस्तो कोलकाता में मलिका नाम की एक शिक्षिका रहा करती थी। उन्हें शिक्षण कार्य बहुत पसंद था और वह विद्यार्थियों के साथ अपने बच्चो जैसा व्यवहार करती थी। वह बड़ी सहदयता के साथ उनकी शक्तियों का विकास कर रही थी। उनका सदबहार सिद्धांत वाक्य में कर सकती हूं या कर सकता हु था।

वह अपने पूरे समाज में ऐसे व्यक्ति के रूप में जानी जाती थी, जो देने के लिए ही जीती थी। जो हर जन की निस्वार्थ सेवा करती थी। बड़े दुख की बात यह थी की किसी ने उनके प्यारा स्कूल , जो बच्चो की कई पीढ़ियों की संतोष जनक उन्नति का मूक गवाह था, उसे एक रात को किसी ने आग लगा कर खाक कर दिया।

समाज के सभी व्यक्तियों ने इस हानि को मेहसूस किया। समय बीतने के साथ उनका क्रोध संवेदन शून्यता में बदल गया और उन्होंने चुपचाप यह बात मान ली की उनके बच्चे बिना स्कूल के ही रहेंगे। लेकिन उस स्कूल की टीचर मलिका जी उनसे भिन्न थी। एक अनन्य आशावादी यदि कोई हो सकता था। सबसे अलग उनको जो कुछ हुआ, उसमे सुअवसर दिखाई दिया।

उन्होंने सभी बच्चो के माता पिताओ से कहा की हर विपप्ति लाभ लेकर आती हैं, यदि किसी के पास उसे जानने का समय हो। यह घटना भी विपत्ति के रूप में वरदान थी। स्कूल जो जल कर खाक हो चुका था वह पुराना और जर्जर था, उसकी छते टपकती थी और हजारों छोटे छोटे बच्चो के पैरो की धमा चौकड़ी से फर्श टूट फूट गया था।

यह एक सुअवसर था जिसकी उन्हें प्रतीक्षा थी ताकि साथ मिलकर सबके सहयोग से एक पहले से बेहतर स्कूल बनाया जाए, जो आनेवाले वर्षो में अधिक बच्चो की सेवा कर सकें। और इस प्रकार इस 64 वर्षीय ऊर्जावान महिला के निर्देशन में उन्होंने धन इकट्ठा कर लिया और एक शानदार स्कूल को बनाया।

दोस्तो इस कहानी से हमे सीखने को मिलता है की हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है वह हम स्वय ही उसका सही उत्तर देने में सक्षम होते हैं। और जब हमारा हमारी आदत हर परिस्थिति में सकारात्मक पहलू देखने की हो जाती है, तब हमारा जीवन उच्चतम आयाम में प्रवेश कर लेता है।

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