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कलाओं से युक्त सप्तर्षिगण

प्रभु श्रीराम को पुरुषों में सबसे उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। वे एक आदर्श व्यक्तित्व लिए हुए थे। एक धनुष और एक वचन धारण करने वाले थे। उन्होंने एक पत्नी व्रत भी धारण कर रखा था। उनमें इसी तरह के 16 गुण थे। 16 गुणों के अलावा वे 12 कलाओं से युक्त थे।
श्रीराम हैं 12 कलाओं से युक्त : 16 कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्‍वरतुल्य होता है या कहें कि स्वयं ईश्वर ही होता है। पत्‍थर और पेड़ 1 से 2 कला के प्राणी हैं। पशु और पक्षी में 2 से 4 कलाएं होती हैं। साधारण मानव में 5 कला और संस्कृति युक्त समाज वाले मानव में 6 कला होती है।
इसी प्रकार विशिष्ठ पुरुष में 7 और ऋषियों या महापुरुषों में 8 कला होती है। 9 कलाओं से युक्त सप्तर्षिगण, मनु, देवता, प्रजापति, लोकपाल आदि होते हैं। इसके बाद 10 और 10 से अधिक कलाओं की अभिव्यक्ति केवल भगवान के अवतारों में ही अभिव्यक्त होती है। जैसे वराह, नृसिंह, कूर्म, मत्स्य और वामन अवतार। उनको आवेशावतार भी कहते हैं। उनमें प्राय: 10 से 11 कलाओं का आविर्भाव होता है। परशुराम को भी भगवान का आवेशावतार कहा गया है।
भगवान राम 12 कलाओं से तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं से युक्त हैं। यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है। इसीलिए प्रभु श्रीराम को पुरुषों में उत्तम और भगवान और श्रीकृष्‍ण को जग के नाथ जगन्नाथ और जग के गुरु जगदगुरु कहते हैं। जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्‍ण कहो या राम।

भगवान श्रीकृष्ण को हिन्दू धर्म में पूर्णावतार माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सभी 16 कलाओं में पारंगत थे। ये 16 कलाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. अणिमा: अपने शरीर को अत्यंत सूक्ष्म करने की कला।
  2. महिमा: अपने शरीर को विशाल बनाने की कला।
  3. गरिमा: अपने शरीर को अत्यधिक भारी बनाने की कला।
  4. लघिमा: अपने शरीर को अत्यंत हल्का बनाने की कला।
  5. प्राप्ति: दूरस्थ वस्तुओं को प्राप्त करने की कला।
  6. प्राकाम्य: इच्छानुसार किसी भी स्थान पर पहुँचने की कला।
  7. ईशित्व: प्राकृतिक शक्तियों पर नियंत्रण की कला।
  8. वशित्व: अन्य जीवों पर नियंत्रण की कला।
  9. कामावसायिता: इच्छानुसार रूप धारण करने की कला।
  10. सत्यसंकल्प: जो कुछ भी चाहे वह सत्य हो जाने की कला।
  11. दूरश्रवण: दूरस्थ स्थानों की बातें सुनने की कला।
  12. दूरदर्शन: दूरस्थ स्थानों को देखने की कला।
  13. मनोजव: मन की गति से चलने की कला।
  14. कामरूप: इच्छानुसार किसी भी रूप में प्रवेश करने की कला।
  15. परकाय प्रवेश: किसी अन्य के शरीर में प्रवेश करने की कला।
  16. स्वच्छंद मृत्यु: अपनी इच्छा से मृत्यु को प्राप्त करने की कला।

ये 16 कलाएँ भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनकी सर्वगुण सम्पन्नता को दर्शाती हैं। इन कलाओं के माध्यम से, वे संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त और सर्वशक्तिमान के रूप में पूजे जाते हैं।

भगवान राम की कितनी कला थी?

श्रीराम, भगवान विष्णु के 7वें अवतार थे, वह 12 कलाओं से युक्‍त थे

कला के देवता कौन है?

सरस्वती को समस्त ज्ञान, साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है।

भगवान श्री कृष्ण के पास कितनी कलाएं थी?

भगवान श्री कृष्ण के पास कितनी कलाएं थी?कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता है। अवतारों में भगवान श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी।

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