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सत्कर्म करते रहो

विधि का नियम है कि मानव को जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत कुछ-न- कुछ कर्म करते रहना पड़ता है। इसलिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को हर क्षण सत्कर्म में ही व्यतीत करना चाहिए। सत्कर्म करते रहने में ही जीवन की सार्थकता है।

आदि शंकराचार्य कहते हैं, जो पुरुषार्थहीन है, वह वास्तव में जीते-जी मरा हुआ है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘युक्ताहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु।’

यानी बुद्धिमान को उचित जीवनचर्या एवं पुरुषार्थ में लगे रहना चाहिए। एक क्षण भी आलस्य, प्रमाद, भोग या किसी अन्य प्रकार के दुष्कर्म में कदापि नहीं खोना चाहिए।

मुनि याज्ञवल्क्य कहते हैं, ‘व्यक्ति यदि अपने कर्म को धर्म, कर्तव्य एवं पूजा मानकर करे, तो उसका जीवन सार्थक हो जाता है। अपना नियत कर्म किए बिना जीवन-निर्वाह भी नहीं हो सकता।’

पितामह भीष्म ने उपदेश में अक्रोध, सत्य, क्षमा, समभाव, सरलता आदि को मानव का सामान्य धर्म बताया है। धर्मशास्त्रों में न्यायोचित्त धनार्जन करते हुए भक्ति, सेवा, परोपकार, दान, स्वाध्याय, अतिथि सेवा, सत्संग आदि सत्कर्म में रत रहने की प्रेरणा दी गई है।

असत्य भाषण, बेईमानी, हिंसा, असंयम, अभक्ष्य भक्षण अर्थात् मांस- मदिरा तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन आदि को निंदित कर्म बताकर इनसे सदैव बचने की प्रेरणा दी गई है।

स्कंद पुराण में कहा गया है, ‘निषिद्ध कर्मों को करने एवं विहित कर्मों का त्याग करने से मनुष्य के पुण्य नष्ट हो जाते हैं तथा उसे तरह-तरह के संकट घेरकर दुरावस्था को पहुंचा देते हैं।’ अतः हर क्षण सत्कर्म करते रहने में ही मानव का कल्याण है।

English Translation

The rule of law is that from birth till death, one has to do some or the other karma. That is why it is said in the scriptures that one should spend every moment in good deeds. The meaning of life lies in doing good deeds.

Adi Shankaracharya says that one who is without effort is actually dead while alive. Lord Krishna says in the Gita, ‘Yuktahara Viharasya Yukta Cheshtasya Karmasu’.

That is, the wise should be engaged in proper lifestyle and effort. Not a single moment should be lost in laziness, pride, indulgence or any other kind of misdeeds.

Muni Yajnavalkya says, ‘If a person does his work as religion, duty and worship, then his life becomes meaningful. Without performing one’s assigned karma, one cannot even survive.’

Pitamah Bhishma, in his sermon, has described non-anger, truth, forgiveness, equanimity, simplicity etc. as the common religion of human beings. In the scriptures, while earning justified money, devotion, service, charity, charity, self-study, guest service, satsang etc. have been given inspiration to be engaged in good deeds.

False speech, dishonesty, violence, incontinence, indecent eating i.e. consumption of meat-liquor and other intoxicants etc. have been given an inspiration to always avoid them by describing them as condemned deeds.

It is said in the Skanda Purana, ‘By performing forbidden actions and relinquishing prescribed actions, the virtues of a man are destroyed and various kinds of troubles surround him and bring him to a bad state.’ Therefore, it is only in doing good deeds every moment. is welfare.

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