धर्मसंघ के संस्थापक स्वामी करपात्रीजी भारत विभाजन की योजना के विरोध में सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार किए गए। उन्हें कुछ दिनों के लिए लाहौर की जेल में रखा गया। स्वामीजी कैदियों को प्रतिदिन प्रार्थना कराया करते थे, ‘भगवान्, हमें पाप कर्मों से बचाकर अच्छा व्यक्ति बनाओ।’
एक कैदी स्वामीजी के संपर्क में आया और उनके त्यागमय जीवन और प्रवचन से काफी प्रभावित हुआ । उसने एक दिन स्वामीजी से कहा, ‘महाराज, सजा पूरी होने के बाद मैं जेल से छूट जाऊँगा। कोई ऐसा उपाय बताइए कि मुझसे कोई बुरा कर्म न होने पाए। ‘
स्वामीजी ने कहा, ‘किसी दुर्व्यसनी का संग न करने और परिश्रम से कमाई करने का संकल्प ले लो । प्रतिदिन सवेरे भगवान् का स्मरण कर उनसे प्रार्थना किया करो कि कोई पाप न होने पाए । संतों का सत्संग करना । धर्मशास्त्रों का अध्ययन करना। तुम्हारा जीवन सुखमय हो जाएगा।’
स्वामी करपात्रीजी लाहौर जेल से रिहा किए गए, तो वे पुनः धर्म प्रचार में लग गए। कुछ वर्ष बाद उन्होंने एक सम्मेलन में हिस्सा लिया। सम्मेलन के एक सत्र का संचालन करने वाले व्यक्ति ने स्वामीजी का स्वागत करते हुए कहा,
‘पूज्य स्वामीजी उस पारस के समान दिव्य हैं, जिसके स्पर्श मात्र से लोहा सोना बन जाता है। मैं लाहौर जेल में स्वामीजी के संपर्क में आया। इनके सत्संग के कारण मैं आज अपराध करने के बजाय शिक्षक बनकर धर्म के प्रचार में जुटा हूँ।’
सम्मेलन के बाद वह स्वामीजी के पास पहुँचा | स्वामीजी ने उसे गले से लगा लिया।