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एक आँख से देखना

बचपन से ही भाइयों की बजाय मुझे अपने माता पिता का अधिक प्यार ,अधिक मान और प्रशंसा प्राप्त होती थी। हालाँकि भाई भी मुझसे स्नेह करते किन्तु फिर भी मम्मी पापा का मेरे प्रति विशेष स्नेह उन्हें खटकता था।

वैसे मेरा स्वभाव भी उन दोनों की अपेक्षा मृदु था और मैं मम्मी पापा की आज्ञा मानने वाली अनुशासित बच्ची रही, साथ ही पढ़ने के लिए मुझे कभी कहना न पड़ता बल्कि “बस करो थक जाओगी अपने दिमाग को सुकून दो” जैसे वाक्य ही सुनने को मिलते ।इसके विपरीत लड़के स्वभाव से ही जैसे कुछ उद्दंड और जिद्दी होते हैं और बेटियों की तरह संवेदनशीलता भी उनमें कम होती है इस कारण से वे शायद मम्मी पापा के मर्मस्थल को उतनी गहराई से महसूस नहीं करते थे

जितना कि मैं महसूस कर पाती थी। इसी कारण उनका लगाव और झुकाव संभवतः मेरी तरफ ज्यादा था लेकिन दोनों भाई कभी कभी इसे उनका पक्षपाती रवैया मान कर मुझे भी लाड़ली राजकुमारी होने का ताना देते और उनको भी कि “आप अपने बच्चों को एक आँख से नहीं देखते ।”तब पापा ने उनको समझाया “तुम सब बच्चे हमारे अपना खून हो ,हमारी जान हो।

माता पिता कभी अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करते लेकिन अगर किसी बच्चे को वो दूसरे से ज्यादा प्यार करते हैं तो उसका कारण कभी भी शारीरिक सौन्दर्य,लिंग,या आर्थिक भेदभाव नहीं होता हाँ व्यवहार जरूर कारण हो सकता है इसका ।यह तो तुमने सुना ही होगा कि जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होता है

तो यही समझ लो कि जितना प्यार और जितनी परवाह जो संतान माता पिता की करती है उसे उतना ही मीठा व्यवहार मिलता है। हम तो “एक आँख” से ही बच्चों को देखते हैं लेकिन जो बच्चा आँखो के करीब रहेगा आँख तो उसी को ज्यादा देखेगी ना।” शायद यह उदाहरण भाइयों को समझ आ गया था इसलिए ही उन्होंने दुबारा हम सबको “एक आँख से न देखने” की शिकायत नहीं की ।

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