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श्रीकृष्ण जी की के सात विशेष विग्रह (Seven special enunciations of Sri Krishna ji)

जय श्री कृष्णा

जैसे की हम सब जानते हैं की वृंदावन वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अनेकों ही बाललीलाएं की और अनेकों ही राक्षसों का वध भी किया। यहां पर श्रीकृष्ण जी के विश्वप्रसिद्ध मंदिर भी हैं। आज हम आपको ऐसी ही श्रीकृष्ण जी की 7 चमत्कारी प्रतिमाओं के बारे में बताएँगे , जिनका संबंध वृंदावन से है। इन 7 प्रतिमाओं में से 3 आज भी वृंदावन के मंदिरों में स्थापित हैं, लेकिन 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं

पहली विशेष प्रतिमा है:- गोविन्द जी

श्रीकृष्ण की यह मूर्ति रूप गोस्वामी को वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि. सं. 1592 (सन् 1535) में मिली थी। उसी स्थान पर उन्होंने एक छोटी सी कुटिया में इस मूर्ति को स्थापित किया। इसके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंदजी की सेवा पूजा संभाली, उन्हीं के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंदजी का भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर में गोविंद जी 80 साल विराजे। औरंगजेब के शासनकाल में उन्होंने ब्रज पर हमला किया। उसी दौरान गोविंदजी को उनके भक्त जयपुर ले गए, तब से गोविंदजी जयपुर के राजकीय (महल) मंदिर में विराजमान हैं।

इनकी दूसरी विशेष प्रतिमा है :- मदन मोहनजी

यह मूर्ति अद्वैतप्रभु को वृंदावन में कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। उन्होंने सेवा-पूजा के लिए इस मूर्ति को मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को दे दिया और फिर चतुर्वेदी परिवार से मांगकर सनातन गोस्वामी ने वि.सं. 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित कर दिय। बाद में क्रमश: मुलतान के नमक व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहां मदनमोहनजी का विशाल और भव्य मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय इन्हें भी भक्त जयपुर ले गए पर कालांतर में करौली के राजा गोपालसिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहनजी की इस मूर्ति को वहां स्थापित किया। तब से मदनमोहनजी करौली (राजस्थान) में ही दर्शन दे रहे हैं।

इनकी तीसरी विशेष प्रतिमा है :-गोपीनाथजी (जयपुर)

श्रीकृष्ण की यह मूर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली थी और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास विराजमान कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंप दी थी । बाद में रायसल राजपूतों ने यहां मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया, तब से गोपीनाथजी वहां पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।

इनकी चौथी विशेष प्रतिमा है :-जुगाककिशोरे जी (पन्ना)

श्रीकृष्ण जी की यह मूर्ति हरिरामजी व्यास को वि.सं. 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यासजी ने उस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित किया। बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। यहां भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षों तक बिराजे पर मुगलिया हमले के समय जुगलकिशोरजी को उनके भक्त ओरछा के पास पन्ना ले गए। पन्ना (मध्य प्रदेश) में आज भी पुराने जुगलकिशोर मंदिर में दर्शन दे रहे हैं।

इनकी पांचवी विशेष प्रतिमा है :- राधारमण जी (वृन्दावन)

एक बार गोपाल भट्ट गोस्वामी को गंडक नदी में एक शालिग्राम जी मिले । वे उन्हें वृंदावन ले आए और केशीघाट के पास एक मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया। एक दिन किसी भगत ने उन पर कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए हुए शालिग्रामजी तो ऐसे लगते हैं जैसे कढ़ी में बैगन पड़े हों। यह सुनकर गोस्वामीजी को बहुत दुख हुआ। भगत का मान रखने के लिए श्री कृष्ण जी ने चमत्कार किया और सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। यह दिन वि.सं. 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा का था। वर्तमान मंदिर में इनकी प्रतिष्ठापना सं. 1884 में की गई।

उल्लेखनीय है कि मुगलिया हमलों के बावजूद यही एक मात्र ऐसी प्रतिमा है, जो वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गई। इसे भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। इनकी सबसे विशेष बात यह है कि जन्माष्टमी को जहां दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव पूजा-अर्चना, आरती होती है, वहीं राधारमणजी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है, मान्यता है ठाकुरजी सुकोमल होते हैं उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं।

इनकी छटी विशेष प्रतिमा है :- राधावल्लभ जी (वृन्दावन)

भगवान श्रीकृष्ण की यह सुंदर प्रतिमा हित हरिवंशजी को दहेज में मिली थी। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गांव में आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (संवत् 1591) और बाद में सुंदरलाल भटनागर (कुछ लोग रहीम को यह श्रेय देते हैं) द्वारा बनवाए गए लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में राधाबल्लभजी प्रतिष्ठित हुए।
मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हें कामा (राजस्थान) ले गए थे। वि.सं. 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आए और यहां नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया, तब से राधाबल्लभजी की प्रतिमा यहीं विराजमान है।

इनकी सातवीं विशेष प्रतिमा है :- बांकेबिहारी जी (वृन्दावन)

स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को बांकेबिहारीजी की प्रतिमा निधिवन में प्रकट हुई। स्वामीजी ने इस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलों के आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर ले गए। वृंदावन के भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि.सं. 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तब से यहीं भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। बिहारीजी की प्रमुख विशेषता यह है कि यहां साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होती है, जबकि वैष्णवी मंदिरों में यह नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।

 

Hindi to English

Hail lord krishna
As we all know that Vrindavan is the place where Lord Krishna performed many hairs and killed many demons. There are also world famous temples of Shri Krishna ji. Today we will tell you about 7 miraculous idols of Shri Krishna ji, which are related to Vrindavan. Of these 7 statues, 3 are still installed in the temples of Vrindavan, but 4 are revered in other places.

The first special statue is: – Govind ji

This idol form of Shri Krishna was given to Goswami from a place called Goma Tila of Vrindavan. Was found in 1592 (1535 AD). At the same place, he installed this idol in a small hut. After this Raghunath Bhatt Goswami took over the service worship of Govindji, during that time Amer Naresh Mansingh built a grand temple of Govindji. Govind ji lived 80 years in this temple. During the reign of Aurangzeb, he attacked Braj. At the same time, his devotees took Govindji to Jaipur, since then Govindji has been sitting in the royal (palace) temple of Jaipur.

His second special statue is: – Madan Mohanji

The idol was received by Advaitaprabhu from the Dwadashaditya mound near Kalidah in Vrindavan. He gave this idol to a Chaturvedi family of Mathura for service and worship, and then asking for Chaturvedi family, Sanatan Goswami gave the V.S. In 1590 (1533), it was again established on the same mound of Vrindavan. Later, the salt merchant Ramdas Kapoor of Multan and the Raja of Orissa built a huge and magnificent temple of Madan Mohanji respectively. At the time of Mughal invasion, devotees took them to Jaipur but later, King Gopal Singh of Karauli built a big temple near his palace and installed this idol of Madan Mohanji there. Since then Madan Mohanji is giving darshan in Karauli (Rajasthan) only.

His third special statue is: -Gopinathji (Jaipur)

This idol of Shri Krishna was found by Saint Parmanand Bhatt on the banks of the Yamuna, and he seated this statue near Nidhivan and handed over his service worship to Madhu Goswami. Later the Raisal Rajputs built the temple here, but this statue was also taken to Jaipur during Aurangzeb’s invasion, since then Gopinathji is sitting in the Gopinath temple located in the old settlement there.

His fourth special statue is: -Jugakakishore Ji (Panna)

This idol of Shri Krishna Ji was given to Hariramji Vyas by V.N. Magh Shukla Ekadashi of 1620 was found at a place called Kishorevan of Vrindavan. Vyasji revered that statue right there. Later King Madhukar Shah of Orchha built the temple near Kishorevan. Here, Lord Jugal Kishor took Jugal Kishorji to Pancha near Orchha, his devotee at the time of Mughal attack on Biraje for many years. Even today in Panna (Madhya Pradesh), he is seen in the old Jugalkishore temple.

His fifth special statue is: – Radharaman Ji (Vrindavan)

Once Gopal Bhatt Goswami found a Shaligram in the Gandak River. They brought him to Vrindavan and established him in a temple near Keshighat. One day some Bhagat made a sarcasm on him that Shaligramji, who is wearing sandalwood, looks as if there are brinjals in the kadhi. Goswamiji was very sad to hear this. Shri Krishna ji performed a miracle to keep the faith of Bhagat and as early in the morning, the divine statue of Radharaman was revealed from Shaligram. This day Vaishakha Purnima of 1599 (1542 AD). In the present temple, they are consecrated no. Done in 1884.

It is noteworthy that despite the Mughal attacks, this is the only such statue that did not go out of Vrindavan. Devotees kept it hidden in Vrindavan itself. The most special thing about them is that on Janmashtami, in all the Krishna temples of the world, there is a festival of worship, aarti, at twelve o’clock in the night, while Radharamanji is born at Abhishek at twelve in the afternoon, it is believed that Thakurji is a gentle person to awaken him at night. No.

His six special idols are: – Radhavallabh ji (Vrindavan)

This beautiful statue of Lord Shri Krishna was found in the dowry by Hari Harvanshji. He was married to the daughter of Atma Dev Brahmin in Chatthaval village while coming to Vrindavan from Deoband. Radhaballabhji was revered in the old red stone temple built first in Sevakunja of Vrindavan (Samvat 1591) and later by Sunderlal Bhatnagar (some attribute this to Rahim).
Devotees took him to Cama (Rajasthan) at the time of the Mughal attack. V.s. Once again in 1842, devotees brought this statue to Vrindavan and revered it in the newly built temple here, since then Radhaballabhji’s statue has been sitting here.

His seventh special statue is: – Bankebihari Ji (Vrindavan)

Bankebihariji’s statue appeared in Nidhivan on Margashirsha Shukla Panchami to give realization to the worship of Swami Haridasji. Swamiji distinguished this statue right there. Devotees took him to Bharatpur at the time of the Mughal invasion. In place of Bharatpur wala garden of Vrindavan After the construction of the temple in 1921, Bankebihari once again became revered in Vrindavan, since then he is giving darshan to the devotees here. The major feature of Bihariji is that Mangla Aarti takes place only on one day of the year (at the dawn after Janmashtami), whereas in Vaishnavi temples it is a tradition to have Mangla Aarti on a regular morning.

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