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शांतिभोज


“अम्मा, आज तो मज़ा आ गया। खूब छक कर खीर पूड़ी और रसगुल्ले खाने को मिले।”
पड़ोस में रहने वाले सेठ बनवारीलाल जी का पिछले दिनों देहांत हो गया था। आज शान्ति भोज में अगल-बगल की झोपड़पट्टी के लोगों को निमंत्रण मिला था। गोलू अपनी माॅं के साथ आया था। वो अचानक बोल पड़ा,
“अम्मा, दद्दा और बाबू को भी बुला लो। इतना बढ़िया भोजन फिर जल्दी नहीं मिलेगा।”
अम्मा ने मुस्कुरा कर कहा,
“वो रेलवे लाइन के उस पार जो बड़ी दुकान वाले दादाजी थे ना, आज उनका भी शान्ति भोज हैं। वो लोग वहाॅं जीमने गए हैं।”
सुनकर गोलू बहुत उदास हो गया और मुॅंह में जबर्दस्ती एक और रसगुल्ला ठूॅंसते हुए बोल पड़ा,
“अम्मा, दोनों सेठ एक ही दिन क्यों गुजर गए…एक दिन आगे पीछे जाते तो दो जगह दो दो दिन बढ़िया भोजन…”
उसका वाक्य अम्मा ने पूरा नहीं होने दिया। उसके मुॅंह पर अपना हाथ धर दिया था।

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