शबाना आज़मी (जन्म 18 सितंबर 1950) फिल्म, टेलीविजन और थिएटर की एक भारतीय अभिनेत्री हैं। हिंदी फिल्म उद्योग में उनका करियर 160 से अधिक फिल्मों में फैला है,
उस समय तो क्या ही समझ आई होगी, पर इसकी एक अच्छी सी याद मेरे दिमाग में अटकी रही। इस तरह की फिल्मों को बाद में मैं यूट्यूब पर सर्च करके देख लिया करती हूं ,इसे भी देख लिया। फिल्म फ्लैशबैक में शुरू होती है। सौदामिनी (शबाना आजमी) अपने पिछले जीवन पर विचार कर रही है बासु चटर्जी निर्देशित इस फिल्म की कहानी है कि सौदामिनी के बचपन में ही, उसके पिता की मृत्यु हो गई , मां (सुधा शिवपुरी) उसे मामा(उत्पल दत्त) के पास ले आती है । मामी की भी मृत्यु हो गई ।
मां धर्म-भीरू है ,उसे बस मिनी(सौदामिनी) के विवाह की चिंता है । मामा अनुभवी और समझदार है मिनी के रुझान को देखते हुए उसके पढ़ने शौक को मां के प्रकोप से बचाते रहते हैं। मां को चिंता है कि अगर मिनी अत्यधिक पढ़ गई तो, उससे शादी कौन करेगा। न रेन (विक्रम) एक संपन्न पड़ोसी है और मिनी और उसके मामा के लिए शहर से किताबें लाता रहता है।
इस तिकड़ी में “स्त्री स्वतंत्रता” व अन्य विषयों पर बहुत सी बहस होती रहती हैं, मिनी और नरेन के बीच एक सहज आकर्षण भी है जो धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है। मां की तीक्ष्ण दृष्टि से कुछ छिपा नहीं है पर मां सामाजिकता को धरातल पर समझती है,नरेन संपन्न परिवार का है, कलकत्ता में नौकरी करता है,ये संबंध आगे तक नहीं चल पाएगा ,उसे ये भली प्रकार पता है। मां ने मामा को ठेलकर ,मिनी के लिए एक लड़के को देखने भेजा है। मिनी निश्चिंत है, उसे पता है ,उसके मामा उसे खूब समझते हैं, उसकी स्वतंत्रता में बाधा नहीं बनेंगे और उसका भला ही करेंगे मामा लड़का देख के आ जाते हैं पर आते समय उन्हें दिल का दौरा पड़ता है। पर मरने से पहले अप्रत्याशित रूप से मामा, मिनी से कहते हैं कि मैं तेरे और नरेन के बारे में जानता हूं, पर तेरे लिए “घनश्याम”(गिरीश कर्नाड) ही ठीक रहेगा।
मिनी हैरान है ,पर स्वभाव से स्वतंत्र मिनी ,कोशिश नहीं छोड़ती और नरेन को पत्र लिखती है , जो उसे सही समय पर नहीं मिल पाता ,मिनी की शादी घनश्याम से हो जाती है। अति साधारण व्यक्तित्व ,आर्थिक दृष्टि से साधारण और पढ़ाई लिखाई से दूर “घनश्याम”, इसके साथ ही घर में भेदभाव करने वाली सौतेली सास, भौतिक सुविधाओं के शौकीन देवर, स्वार्थी देवरानी और एक कुंवारी ननद भी हैं। घनश्याम की घर में कोई खास पूछ नहीं है, ना उसके सुबह जाने पर उसके लिए कुछ खाना पीना बनता है ना ही कोई नौकर नौकरानी लौटने पर हाथ धुलाने जाता है। देवर की बहुत पूछ है, सास भी देवर और देवरानी की सुख-सुविधाओं का बहुत ध्यान रखती हैं। घनश्याम अपनी आवश्यकताओं की किसी पर भी दबाव नहीं बनाता, उसके साथ सब अपने व्यक्तित्व की परिधि में आराम से रह सकते हैं। इतने पर भी वो “दब्बू” नहीं है, समय पड़ने पर स्त्रियों के प्रति उसके अपने उच्च विचार सादगी से दर्शाता भी है, बड़ों के सम्मान में मिनी से माफी मांगने को भी कहता है।
इस बारीकी को गिरीश कर्नाड ही दिखा सकते हैं। पर धीरे-धीरे घनश्याम के साथ घर परिवार में हुआ अन्याय मिनी को चुभने लगता है, वो उसके लिए लड़ने लगती है। अपने अंदर इन बदलावों से हैरान-परेशान है कि अचानक नरेन से फिर से सामना हो जाता है। विभिन्न घटनाओं के बाद मिनी को समझ में आता है कि मामा ने ऐसा क्यों किया,उन्हें पता था कि मिनी ने पढ़ा तो बहुत है ,”गुना” नहीं है।उसके प्रखर ,स्वतंत्र पर नादान व्यक्तित्व के साथ निभाव, नरेन के बस की बात नहींं । उसका साथ घनश्याम ही पितृत्व भाव से निभा सकता है। गीत सभी मधुर हैं “पल भर में यह क्या हो गया..” “का करूं सजनी आए ना बालम..” और “धड़कन का बंधन तो धड़कन से है..” सुनकर तो लगता है कि इससे अच्छा विदाई गीत कोई हो सकता है? शरतचंद्र के उपन्यास पर बनी है तो देश काल और परिधान दर्शाने में ज्यादा दुविधा नहीं रही होगी, संवाद भी काफी कुछ वहीं से मिल गए होंगे। विशेष परिश्रम, अभिनेताओं को चुनने, और उपन्यास के चरित्रों की आत्मा को जीवित रखने में में रहा होगा जो बखूबी किया गया है।
शबाना आजमी के कितने बच्चे हैं?
Shabana Azmi On Not Having Kids: बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री शबाना आजमी ने फेमस राइटर-लिरिसिस्ट जावेद अख्तर संग शादी की है. जावेद की शबाना संग दूसरी शादी है. इससे पहले उन्होंने हनी ईरानी से शादी की थी जिनसे उनके दो बच्चे जोया अख्तर और फरहान अख्तर हैं. वहीं प्रसिद्ध लेखक-गीतकार और शबाना आज़मी की अपनी औलाद नहीं है.