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शिक्षाप्रद कहानियां – धन का मोह

dhan kaa moh
dhan kaa moh

एक  नदी के किनारे एक महात्मा रहते थे। उनके पास दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने आते थे। एक बार एक व्यक्ति

उनके पास आया और बोला- महाराज! मैं लंबे समय से ईश्वर की भक्ति कर रहा हूं, फिर भी मुझे ईश्वर के दर्शन नहीं होते। कृपया मुझे उनके दर्शन कराइए।
महात्मा बोले- तुम्हें इस संसार में कौन सी चीजें सबसे अधिक प्रिय हैं?
व्यक्ति बोला- महाराज! मुझे इस संसार में सबसे अधिक प्रिय अपना परिवार है और उसके बाद धन-दौलत।
महात्मा ने पूछा- क्या इस समय भी तुम्हारे पास कोई प्रिय वस्तु है?
व्यक्ति बोला- मेरे पास एक सोने का सिक्का ही प्रिय वस्तु है।
महात्मा ने एक कागज पर कुछ लिखकर दिया और उससे पढ़ने को कहा। कागज देखकर व्यक्ति बोला- महाराज! इस पर तो ईश्वर लिखा है।
महात्मा ने कहा- अब अपना सोने का सिक्का इस कागज के ऊपर लिखे ‘ईश्वर’ शब्द पर रख दो।
व्यक्ति ने ऐसा ही किया। फिर महात्मा बोले- अब तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?
वह बोला- इस समय तो मुझे इस कागज पर केवल सोने का सिक्का रखा दिखाई दे रहा है।
महात्मा ने कहा- ईश्वर का भी यही हाल है। वह हमारे अंदर ही है, लेकिन मोह-माया के कारण हम उसके दर्शन नहीं कर पाते। जब हम उसे देखने की कोशिश करते हैं तो मोह-माया आगे आ जाती है। धन-संपत्ति, घर-परिवार के सामने ईश्वर को देखने का समय ही नहीं होता। यदि समय होता भी है तो उस समय जब विपदा होती है। ऐसे में ईश्वर के दर्शन कैसे होंगे?
महात्मा की बातें सुनकर व्यक्ति समझ गया कि उसे मोह-माया से निकलना है।
wish4me in English

ek nadee ke kinaare ek mahaatma rahate the. unake paas door-door se log apanee samasyaon ka samaadhaan paane aate the. ek baar ek vyakti

unake paas aaya aur bola- mahaaraaj! main lambe samay se eeshvar kee bhakti kar raha hoon, phir bhee mujhe eeshvar ke darshan nahin hote. krpaya mujhe unake darshan karaie.
mahaatma bole- tumhen is sansaar mein kaun see cheejen sabase adhik priy hain?
vyakti bola- mahaaraaj! mujhe is sansaar mein sabase adhik priy apana parivaar hai aur usake baad dhan-daulat.
mahaatma ne poochha- kya is samay bhee tumhaare paas koee priy vastu hai?
vyakti bola- mere paas ek sone ka sikka hee priy vastu hai.
mahaatma ne ek kaagaj par kuchh likhakar diya aur usase padhane ko kaha. kaagaj dekhakar vyakti bola- mahaaraaj! is par to eeshvar likha hai.
mahaatma ne kaha- ab apana sone ka sikka is kaagaj ke oopar likhe eeshvar shabd par rakh do.
vyakti ne aisa hee kiya. phir mahaatma bole- ab tumhen kya dikhaee de raha hai?
vah bola- is samay to mujhe is kaagaj par keval sone ka sikka rakha dikhaee de raha hai.
mahaatma ne kaha- eeshvar ka bhee yahee haal hai. vah hamaare andar hee hai, lekin moh-maaya ke kaaran ham usake darshan nahin kar paate. jab ham use dekhane kee koshish karate hain to moh-maaya aage aa jaatee hai. dhan-sampatti, ghar-parivaar ke saamane eeshvar ko dekhane ka samay hee nahin hota. yadi samay hota bhee hai to us samay jab vipada hotee hai. aise mein eeshvar ke darshan kaise honge?
mahaatma kee baaten sunakar vyakti samajh gaya ki use moh-maaya se nikalana ha

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