श्रीकृष्णजी का जीवन प्रेम का जीवन है, श्रीकृष्णजी का संगीत प्रेम का संगीत है, श्रीकृष्णजी की शिक्षाएं प्रेमतत्त्वों से परिपूर्ण हैं । गोपाल – कृष्ण ने दरिद्र , सरल और भोले भाले साथियों से मित्रता की और अपने प्रेमबल से उनके मन और आत्मा को ऐसे मोह लिया कि उनकी आत्माएं श्रीकृष्णजी की आत्मा में मिलकर एक हो गयी । श्रीकृष्णजी उनके नेता, अधिपति, मित्र एवं आराध्यदेव बन गए । वह उनके लिये केवल उनके प्रेम और श्रद्धा के ही पात्र नहीं बल्कि इससे भी महत्तर व्यक्ति थे । श्रीकृष्णजी ने अपने राजसी वस्त्रों को उतार दिया और हाथ में लकुटी लेकर वह वृंदावन के पुण्यक्षेत्रों में अपनी सखामण्डली के साथ गौएं चराने के लिये निकल पड़े । इस सुरम्य वन में धेनु चराते चराते उन्होंने एक कदंबवृक्ष पर चढ़कर अपनी सोने या चांदी की नहीं – बल्कि बांस की वंशी की सुरीली तान छेड़ी, जिसकी माधुरी ने सभी चराचर प्राणियों को वशीभूत कर लिया । इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह वंशी उनके प्राथमिक जीवन का प्रधान अंग रही । जिन्होंने सरलता के मूर्तिस्वरूप बालकों के आनंदमय सहवास का वायुमण्डल में विचरे हैं वे ही श्रीकृष्णजी के बाल जीवन को समझ सकते हैं ।
इसके अनंतर हम श्रीकृष्णजी को वृंदावन की गोपियों के हृदयस्थित प्रेम के झरनों पर अपना अधिकार जमाते हुए पाते हैं । इस संसार में स्त्रियां मानो प्रेम के सरोवर हैं । माता, भगिनी, पत्नी और पुत्री आदि के प्रेम से ही मनुष्य प्रेम का पाठ सीखता है । श्रीकृष्ण इसे जानते और पहचानते थे । अतएव उसने उनके निर्मल प्रेम को अपनाकर उन्हें अपना प्रेम दिया, जिससे कि इस प्रेमानंदरूप अमृत सिंधु में वे दोनों निमग्न हो गये । जिन विद्वानों ने श्रीकृष्णजी कि लीला के इस अंश की आलोचना की है, उन्होंने उसके इस प्रेम और परमानंद के यथार्थ तत्त्व को नहीं समझा है । यह श्रीकृष्णजी और गोपबालाओं का प्रेम आधुनिक संसार का वह कलुषित काम नहीं है जो समाज को दूषित कर रहा है, वह तो परम निर्मल, सर्वथा उच्च एवं पवित्र प्रेम था जो कि अनायास ही दिव्यघाम का द्वार खोल देता है । जिन लोगों की यह धारणा है कि एक अपरिपक्व अवस्था का अबोध बालक भी कामेच्छा से युवतियों को मोहित कर सकता है वे अगर पागल नहीं तो ज्ञान एवं विवेक से रहित अवश्य हैं । इस अनंत एवं नित्य प्रेम के ऊपर गोपियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था । भक्तों के लिये यह एक अनुपम शिक्षा है, जिसके अनुसार वे अपना मार्ग निश्चित करते हैं, जिससे कि वे इस प्रभु को प्रेममय ईश्वर को पहचान सकें ।
बहुत से सुधार प्रेमी वस्त्र हरण के सुंदर दृश्य को अपनी नासमझी से अश्लील समझते हैं । परंतु बात ऐसी नहीं है । गोपियों के हृदय में इस बात का अभिमान था कि पारस्परिक प्रेम के कारण हमने श्रीकृष्ण को अपने वश में कर लिया है । किंतु उनका होने के लिये तो श्रीकृष्ण और भी अधिक त्याग चाहता था । जबतक उन गोप बालाओं में सांसारिकता का लेशमात्र भी रहा तबतक वह उनके अधीन नहीं हुआ । किंतु जब वे संपूर्ण लोकाचार भूल गयीं और अपने हाथों को ऊपर उठाकर श्रीकृष्ण का आवाहन करने लगीं तो उसने उनपर प्रसन्न होकर और उनके पूर्ण त्याग से संतुष्ट होकर उनके वस्त्रों को अर्थात् सांसारिक आवरण को लौटा दिया ।
इसके बाद राजा दुर्योधन के दरबार में भी ऐसा ही एक दृश्य देखा जाता है । जब पाण्डवों की महिषी द्रौपदी का चीर खींचा जाने लगा तब उसने श्रीकृष्ण का आवाहन किया, किंतु जबतक वह कपड़े को थामे रही तब तक उसे कोई ईश्वरीय सहायता प्राप्त न हुई । परंतु ज्यों ही उसने अपने को भुलाकर दोनों हाथों को ऊंचा उठाकर अखण्ड विश्वास और भरोसे के साथ ईश्वर का स्मरण किया त्यों ही उसे ईश्वरीय सहायता मिल गयी । सच्चे ईश्वर भक्त के लिये ये कैसे सुंदर दृष्टांत हैं ? यदि तुम्हें ईश्वरीय सहायता की आवश्यकता है तो तुम्हें संसार को और अपने को भूल जाना चाहिये और तन मन वचन से उसकी याद करनी चाहिये, तभी तुम्हारी स्तुति सुनी जाएंगी । जिन लोगों ने ईश्वर को पाया है, इसी रीति से पाया है ।
दरिद्रों में श्रीकृष्णजी का प्रेम प्रत्यक्ष है । दरिद्र ग्वालबाल और बालिकाओं ने, दरिद्र विदुर ने, दरिद्र सुदामा ने और दरिद्र पाण्डवों ने उनके मंगलमय प्रेम का औरों की अपेक्षा अधिक रसास्वादन किया था । पवित्र प्रेम की प्रवृत्ति दरिद्र से ही होती है । दरिद्र की सेवा ईश्वर की सेवा है । श्रीकृष्ण के जीवन से इस तथ्य पर अच्छी तरह से प्रकाश पड़ता है । अत: यदि तुम श्रीकृष्ण के जीवन की समझना चाहते हो तो तुम दरिद्रों के लिये अपने जीवन को उत्सर्ग कर दो । दलित एवं पीड़ित भी दरिद्र ही हैं । बौद्धों के भिक्षा – पात्र और वैष्णवों की कण्ठी और झोली का भी यहीं मर्म है । जब तक कोई पुरुष अपने – आपकी दरिद्र की अवस्था में परिवर्तित नहीं कर देता तब तक वह दरिद्र को समझ नहीं सकता । दरिद्र, विनम्र और पीड़ित के हृदय में भक्त अपने सजीव प्रम मय प्रभु को उनकी संपूर्ण महिमा के साथ देख सकता है । श्रीकृष्ण के जीवन से यदि मैंने कोई शिक्षा ग्रहण की है तो यहीं है ।
HINDI TO ENGLISH
The life of Shri Krishna is the life of love, the music of Shri Krishna is the music of love, the teachings of Shri Krishna are full of love. Gopal – Krishna befriended the poor, simple and naïve spear companions and with his love power fascinated his mind and soul in such a way that their souls merged into the soul of Shri Krishna. Shri Krishna became their leader, suzerainty, friend and arahadev. He was not only the person of love and reverence for them, but also a better person. Shri Krishna took off his royal robes and took a lakti in his hand, and he went out to graze the cows with his sakhamandali in the holy areas of Vrindavan. In this picturesque forest, while grazing the dhenu, he climbed on a Kadambavriksha, not of gold or silver – but of the bamboo tan, which made Madhuri subjugate all the grazing creatures. It is not surprising that this descent was the primary part of his primary life. Only those who have seen the joyful cohabitation of the children in the atmosphere as an idol of simplicity can understand the life of Shri Krishna ji.
Apart from this, we find Shri Krishna ji asserting his authority over the springs of heartfelt love of the gopis of Vrindavan. In this world, women are as if they are the lake of love. It is from the love of mother, sister, wife and daughter etc. that man learns the lesson of love. Shri Krishna knew and recognized this. Therefore, he embraced their pure love and gave them their love, so that both of them were immersed in this beautiful Amrit Indus. The scholars who have criticized this part of Shri Krishna ji’s Leela have not understood the true essence of his love and ecstasy. This Sri Krishna ji and Gopabalas love is not the vile work of the modern world that is polluting the society, it was the absolute pure, absolute and pure love that unintentionally opens the door to the divine game. Those who believe that a child who is immature in an immature state can also fascinate young women with libido, they are absolutely devoid of knowledge and wisdom if not mad On this infinite and continual love, the gopis sacrificed their everything. It is a unique teaching for the devotees, according to which they decide their path, so that they can recognize this Lord as the loving God.
Many improvised lovers consider Haran’s beautiful scene to be vulgar with his own senselessness. But this is not the case. The gopis had a sense of pride that due to mutual love, we have subdued Shri Krishna. But for them to happen, Shri Krishna wanted even more sacrifice. As long as there was even a small amount of worldliness in those Gopa Balaas, he did not come under them. But when she forgot the entire ethos and started raising her hands to invoke Shri Krishna, she pleased him and satisfied with his complete renunciation, returned his clothes ie the earthly covering.
After this a similar scene is seen in the court of King Duryodhana. When Draupadi, the Mahishi of the Pandavas, began to be dragged, she invoked Krishna, but she did not receive any divine help as long as she held the cloth. But as soon as he forgot himself, raising both hands high, remembered God with unwavering faith and trust, as soon as he got divine help. How are these beautiful parables for the true God devotee? If you need divine help, then you should forget the world and yourself and remember it with your whole heart, then only your praise will be heard. Those who have found God, have found it in this way.
The love of Shri Krishna is evident among the poor. The poor Gwalabas and girls, the poor Vidur, the poor Sudama and the poor Pandavas, expressed their love for their love more than others. The trend of pure love is from the poor. Service to the poor is service to God. This fact is well highlighted by the life of Shri Krishna. Therefore, if you want to understand the life of Shri Krishna, then leave your life for the poor. Dalits and victims are also poor. The begging of the Buddhists – vessels and the kanthi and bag of the Vaishnavas also have the merit here. Until a man transforms into a state of his own poverty, he cannot understand the poor. In the heart of the poor, humble and afflicted, the devotee can see his living beloved May Prabhu with all his glory. If I have received any education from the life of Shri Krishna, then it is here.