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सिंहासन बत्तीसी की बारहवीं कहानी – पद्मावती पुतली की कथा!!

विक्रमादित्य की खूबियों के बारे में बताने के लिए इस बार बारहवीं पुतली सिंहासन से निकलती है। वह राजाभोज को राजा विक्रमादित्य और एक राक्षस की कहानी सुनाती है।

एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने राज-पाठ का काम खत्म करके सुहाने मौसम का आनंद उठा रहे थे। तभी उन्हें एक महिला की चीख सुनाई दी। वह मदद के लिए के लिए लोगों को पुकार रही थी। उसकी आवाज सुनते ही राजा तलवार लेकर घोड़े पर सवार हुए और तेजी से आगे बढ़ने लगे। कुछ समय बाद राजा उस जगह पहुंच गए, जहां से महिला के चीखने की आवाज आ रही थी।

राजा ने देखा कि उस महिला के पीछे एक भयानक राक्षस पड़ा हुआ है। विक्रमादित्य बिना देरी किए अपने घोड़े से कूद गए। महाराज को अपने सामने देखकर महिला बिलखते हुए उनसे मदद मांगने लगी। तब राजा विक्रमादित्य ने कहा, “बहन, अब तुम्हारी जान मैं बचाऊंगा। तुम चिंता मत करो।”

इतने में वहां राक्षस पहुंच गया और राजा विक्रमादित्य से कहने लगा कि एक साधारण इंसान उससे युद्ध में जीत नहीं सकता है। फिर जोर-जोर से हंसते हुए राक्षस कहता है कि मैं पल भर में तुम्हें मार सकता हूं। इतना कहते ही राक्षस, तुरंत महाराज पर हमला करने के लिए आगे बढ़ता है।

राजा विक्रमादित्य राक्षस को चेतावनी देते हैं, लेकिन राक्षस ने उनकी एक नहीं सुनी। तभी विक्रमादित्य तलवार से राक्षस पर हमला कर देते हैं। राक्षस ने खुद को तलवार के हमले से बचाया और युद्ध करना शुरू किया। महाराज विक्रमादित्य काफी चतुर थे, इसलिए उन्होंने पहले राक्षस को थकाया। उसके बाद राक्षस का सिर काट दिया।

सिर कटने के बाद राजा को लगा कि राक्षस मर गया, लेकिन तभी उसके शरीर पर दोबारा कटा हुआ सिर जुड़ गया। साथ ही जहां उस राक्षस का रक्त गिरा था, वहां से दूसरा राक्षस पैदा हो गया। यह देखकर राजा विक्रमादित्य हैरान हो गए। फिर दोनों राक्षसों ने महाराज से लड़ाई करना शुरू कर दिया।

सबसे पहले रक्त से जन्मा हुआ राक्षस राजा पर हमला करता है। राजा चतुराई से उसके प्रहार से बचते हुए अपनी तलवार से उसके दोनों हाथ और पैर काट देते हैं। अपने साथी राक्षस को दर्द से तड़पता हुआ देखकर दूसरा राक्षस उसे लेकर वहां से भाग जाता है। राजा के पास उस दूसरे राक्षस पर हमला करने का मौका था, लेकिन राजा ने सोचा पीठ दिखाकर भागते हुए राक्षस पर हमला नहीं किया जाना चाहिए।

इसके बाद राजा सीधे उस महिला के पास चले गए। विक्रमादित्य ने उससे कहा “राक्षस डर कर भाग गया है, तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें तुम्हारे माता-पिता के पास पहुंचा दूंगा।” तभी वह महिला कहती है “अभी खतरा टला नहीं है, क्योंकि राक्षस मरा नहीं सिर्फ भागा है। वो दोबारा से आएगा।” उसकी बातें सुनकर राजा ने उसका नाम पूछा।

महिला बताती है “वह सिंहुल द्वीप में रहने वाले एक ब्राह्मण की बेटी है। एक दिन वो तालाब में अपनी सहेलियों के साथ नहाने गई थी। उसी दिन इस राक्षस की नजर मुझ पर पड़ी और वो मुझे उठाकर यहां अपने साथ ले आया। वह मुझसे शादी करना चाहता है, लेकिन मुझे उस राक्षस की पत्नी नहीं बनना।”

यह सुनकर राजा उस ब्राह्मण पुत्री से कहते हैं “मैं उस राक्षस को मारकर तुम्हें उससे आजाद करा दूंगा।” फिर विक्रमादित्य ने उससे राक्षस के बारे में पूछा कि वो दोबारा जिंदा कैसे हो रहा है। तब उस महिला ने बताया “राक्षस के पेट में एक मोहिनी रहती है, जो तुरंत उसके मुंह में अमृत डाल देती है। इसलिए, वह दोबारा जीवित हो जाता है, लेकिन वह रक्त से जन्मे दूसरे राक्षस को अमृत नहीं दे सकती है। इसलिए, उसके रक्त से जन्मा राक्षस दर्द से तड़प रहा था।”

फिर राजा ने स्त्री से मोहिनी के संबंध में पूछा, लेकिन ब्राह्मण पुत्री को उसके बारे में कुछ मालूम नहीं था। मोहिनी के बारे में सोचते हुए विक्रमादित्य पास के पेड़ के नीचे आराम करने लगे। तभी उन पर एक शेर ने हमला कर दिया। शेर के पहले हमले से राजा के हाथ पर चोट लग गई।

जैसे ही शेर ने राजा पर दूसरा हमला किया, महाराज विक्रमादित्य ने उस शेर के पैरों को पकड़कर उसे दूर फेंक दिया। तभी शेर अपने राक्षस रूप में आ गया। यह देखकर राजा समझ जाते हैं कि यह मायावी राक्षस है, जो छल से मुझसे हराने की कोशिश कर रहा है।

राजा तेजी से राक्षस के पीछे भागे और उससे युद्ध शुरू कर दिया। लड़ते-लड़ते जब राक्षस थक गया, तब राजा ने अपनी तलवार से उसके पेट पर हमला किया। राक्षस दर्द के कारण चिल्लाने लगा। इसके बाद विक्रमादित्य ने उसके पेट को तलवार से काट दिया। पेट के फटते ही मोहनी उससे बाहर निकलती है और अमृत लाने के लिए भागने लगती है।

इस देखकर विक्रम अपने बेतालों को बुलाकर मोहिनी को पकड़ने का आदेश देते हैं। काफी देर तक अमृत न मिलने की वजह से राक्षस तड़पकर मर जाता है। फिर महाराज विक्रमादित्य उस मोहिनी से पूछते हैं कि तुम कौन हो? मोहिनी बताती है “वह भगवान शिव की एक भक्त है, जिसे उसकी गलती के वजह से राक्षस की सेवा करनी पड़ रही थी। अब वह श्राप मुक्त हो गई है।”

इतना सुनते ही राजा अपने साथ मोहिनी और उस ब्राह्मण पुत्री को महल लेकर आते हैं। महिला के माता-पिता का पता लगाकर महाराज उसे उसके घर सकुशल पहुंचा देते हैं। उसके बाद राजा मोहिनी से शादी करके खुशी-खुशी अपने महल में रहने लगते हैं।

यह कहानी सुनाने के बाद बारहवीं पुतली राजा भोज से पूछती है कि क्या आप में हैं राजा विक्रमादित्य जैसे गुण और फिर वहां से उड़ जाती है।

कहानी से सीख :

लोगों की मदद करने से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है और किसी तरह का काम मुश्किल नहीं होता। बस थोड़ा सोच-विचार कर कदम उठाना पड़ता है।

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