जातक कथाओं के अंतर्गत पूर्व जन्म में बोधिसत्व का नाम सेरिवान था। वे एक बर्तन के व्यापारी थे। वे भगवान बुद्ध थे। अतः ईमानदारी, सदाचार, निस्पृहता आदि गुण उनमें स्वतः ही विद्यमान थे।
एक बार सेरिवान एक अन्य बर्तन व्यापारी के साथ नदी पारकर एक कस्बे में बर्तन बेचने गए। वे पुराने बर्तनों के बदले नए बर्तन देते थे। दूसरा व्यापारी बहुत लालची एवं धूर्त था। कस्बे के किनारे पहुचकर उन्होंने तय किया। जिस गली में एक व्यक्ति बर्तन बेचने जाएगा। दूसरा व्यक्ति उस गली में उस दिन न जाकर दूसरे दिन जाएगा।
उसके बाद वे अलग अलग गली में व्यापार करने निकल पड़े। जिस गली में दूसरा व्यापारी गया। उसी में एक बुढ़िया अपनी पोती के साथ रहती थी। एक समय वे लोग बहुत अमीर थे। लेकिन आज वे बेहद गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे।
पोती बहुत दिनों से एक नई थाली खरीदना चाहती थी। लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। आज जब दूसरे व्यापारी ने गली में आवाज लगाई कि पुराने बर्तनों के बदले नए बर्तन ले लो। तो लड़की खुश होकर दादी से बोली-
“देखो दादी, बर्तन वाला पुराने बर्तन के बदले नया बर्तन दे रहा है। हमारे यहां जो पुराने बेकार बर्तन पड़े हैं। उनके बदले हम एक नई थाली ले लेते हैं।”
पोती की इच्छा देख दादी ने स्वीकृति दे दी। पुराने बर्तनों में देखने पर एक बहुत पुराना कटोरा मिला। जो काफी भारी था, लेकिन धूल मिट्टी से बेहद गन्दा और अनुपयोगी था। उन्होंने उसे निकाल लिया और व्यापारी को बुलाकर उसके बदले में एक नई थाली देने को कहा।
व्यापारी ने गौर से उसका निरीक्षण किया तो उसे शक हुआ कि यह कटोरा किसी कीमती धातु का बना है। जब उसने एक सुई से उसके तले को खरोंचा तो पता चला कि यह भारी कटोरा तो सोने का है। दोनों दादी पोती को इसका पता नहीं था।
व्यापारी की आंखें लालच से चमक उठीं। उसने बिना कुछ दिए ही उस कटोरे को लेने की योजना बना ली। उसने कटोरे को जोर से फेंका और क्रोध में भरकर बोला-
“इस बेकार कटोरे से नई थाली नहीं मिल सकती। अरे इससे तो कुछ भी नहीं मिलेगा। तुम लोगों ने मेरा समय नष्ट किया है।” यह कहकर वह पैर पटकता हुआ घर से बाहर निकल गया। दोनों दादी पोती उसके इस अशिष्ट व्यवहार से हैरान और दुखी थीं।
दूसरे दिन सेरिवान उसी गली में बर्तन बेचने गए। आवाज सुनकर पोती ने दादी से फिर थाली लेने की जिद की। दादी ने कल की घटना का स्मरण कराया। तब लड़की बोली, “वह व्यापारी अशिष्ट था। लेकिन यह सज्जन लगता है। एक बार कटोरा इसको भी दिखा लेने में क्या हर्ज है ?
लड़की की जिद के कारण दादी ने सेरिवान को अंदर बुलाकर कटोरा दिखाया। सेरिवान ने कटोरा देखते ही पहचान लिया कि यह शुद्ध सोने का बना है। उन्होने बड़ी विनम्रतापूर्वक कहा-
“दादी ! यह कटोरा सोने का है और बहुत कीमती है। इसकी कीमत के बराबर न तो मेरे पास बर्तन हैं न ही धन। इसलिए मैं इसका मूल्य नहीं चुका सकता।”
दादी और पोती दोनों आश्चर्यचकित हो गए। दादी बोली, “बेटा ! कल एक व्यापारी आया था। उसने इस कटोरे को बेकार बताया था। ऐसा लगता है कि तुम्हारे हाथ लगाने से ही यह कीमती हो गया है। हमारे लिए तो यह बेकार ही है। तुम जो देना चाहो दे दो और इसे ले जाओ।”
तब सेरिवान ने उन्हें अपने सारे बर्तन और पचास चांदी के सिक्के दे दिए। अपने पास केवल नदी पार करने के लिए नाव वाले को देने के लिए पांच सिक्के बचाये। कटोरा लेकर वे सीधे नदी किनारे आये और नाव में बैठकर नदी पार करने लगे।
इधर दूसरा व्यापारी बूढ़ी दादी के घर पहुंचा और बोला, “लाओ वह कटोरा मुझे दे दो। मैं उसके बदले एक थाली दे देता हूँ। क्योंकि मुझे तुम लोगों पर दया आ गयी है।” उसकी बातें सुनकर दादी क्रोधित होकर बोली-
“अरे धूर्त व्यापारी, तूने हमें मूर्ख बनाने की कोशिश की। आज एक भला व्यापारी आया उसने हमें उस कटोरे की सही कीमत दी। तू तुरंत यहां से निकल जा।” यह सुनकर उस लालची व्यापारी के पैरों तले की जमीन खिसक गई।
वह तुरंत सेरिवान के पीछे नदी की ओर भागा। नदी किनारे पहुंचकर उसने देखा कि सेरिवान की नाव तो दूसरे किनारे पर पहुंचने वाली है। सोने का कटोरा खोने का उसे इतना दुख हुआ कि वह पागल हो गया।
उसने अपने पैसे और बर्तन भी फेंक दिए और दुख से रोने लगा। अत्यधिक शोक के कारण उसे हृदयाघात हो गया। जिसके कारण उसकी इहलीला समाप्त हो गयी। सोने के कटोरे के लालच ने उसकी जान ले ली।
Moral- सीख
यह hindi story हमें सिखाती है कि ईमानदारी से ही लाभ मिलता है, प्रगति होती है। लालच हमेशा नुकसान का कारक होता है।