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अनुशासन

मेरा जॉब प्राइवेट था..जिस कॉलेज में जाती थी सारे विद्यार्थी प्रेम करने लगते थे मेरे कड़क और हँसमुख स्वभाव के कारण जल्दी ही लोकप्रिय हो जाती थी..मैं हमेशा हर कॉलेज को ऊंचाईयों पर लेकर गई..आस-पास के कॉलेज के बच्चे जब मुझसे अपने कॉलेज की बुराई करते और मेरे बच्चे मेरे कॉलेज की प्रशंसा करते तो मुझे अपनी योग्यता का अहसास हो जाता था..मैंने अधिकतर ऐसे कॉलेज में पढ़ाया हैं जहाँ लड़के लड़कियां दोनों होते थे…और मैं उनमे इतना अनुशासन भर देती थी कि वह अपने कॉलेज की लड़कियों को कॉलेज में सम्मान करते थे और यदि वह बस से आस-पास के गाँव में जाती थी तो कॉलेज के उस और जाने वाले छात्र उन छात्राओं का ध्यान रखते थे |

मैं सबको कहती थी कि घबराना नहीं कोई घटना हो जाये तो पिटकर आना पीटकर मत आना कोई झगड़ा होगा तो मैं सम्भाल लूँगी…लेकिन कोई गलत कार्य मत करना अपनी छात्राओं का ध्यान रखना….इससे लड़कियां मेरे होते हुए खुद को महफूज समझती थी…मुझे नए बैच को हमेशा यह बात समझानी पड़ती थी |

अभी कुछ वर्ष पूर्व की बात है उस कॉलेज का माहौल बहुत खराब था | लड़के लड़कियाँ अध्यापक मुझे संदिग्ध दिखाई देते थे…मैंने धीरे-धीरे कॉलेज के माहौल पर अंकुश लगाया तो कुछ लोगों को परेशानी हुईं , तब क्या था सर्दियों के दिन मैं स्टाफ़ के साथ धूप में लंच में खड़ी हुई थी..तभी एक आवारा टाइप विधार्थी छुट्टी लेने आता है मैं जाने के लिए बोल देती हूँ..तभी वह सबके पाँव छूता है..और मेरे पाँव में जूते होने के बावजूद नोच लेता है..और फिर तेजी से भाग जाता है…मैं चिल्लाती हूँ उसे आवाज़ लगाती हूँ स्टाफ़ से कहती हूँ लेकिन वो लोग अनसुना कर देते हैं क्योंकि उनके इशारे पर ही ऐसा किया गया था…मैं उसके पीछे नहीं भागती हूँ क्योंकि मैंने उसी कॉलेज के एक अन्य प्राचार्य को इसी प्रकार की घटना में चोट लगते और मज़ाक बनते सुना था…उस दिन शनिवार होता है…मैं मुश्किल से दो दिन इंतजार करती हूँ

और प्रार्थना सभा का इंतजार करती हूँ..प्रार्थना शुरू होती है जैसे ही खत्म होती है मैं कुछ कहने के लिए सबको रोक लेती हूँ…और विधार्थी की बात सबके सामने रखती हूँ..साथ ही उससे माफी मांगने के लिए कहती हूँ…लेकिन वह विद्यार्थी ना तो माफ़ी मांगता है ना ही मेरे बुलाने पर स्टेज पर आता है..मैं चपरासी को बोलती हूँ और स्टाफ़ की तरफ देखती हूँ लेकिन कोई भी उसे पकड़कर नहीं लाता …मेरा एक अपमान के बाद दूसरा अपमान किया जाता है…तभी एक व्याख्याता सभी विद्यार्थियों को कक्षा में जाने के लिए बोलते हैं….मैं ठगी सी खड़ी रह जाती हूँ सारे विधार्थी वहाँ से चले जाते हैं |

अब मैं सीधे निदेशक के ऑफिस में जाती हूँ..सारी बातें बताती हूँ…और उस लड़के पर कार्यवाई करने के लिए बोलती हूँ..मैं उन्हें कॉलेज के बिगड़े माहौल से अवगत कराती हूँ..साथ ही कहती हूँ जिस विधालय में एक प्राचार्य की इज्जत सुरक्षित नहीं है उस विधालय की लड़कियों का तो भगवान ही मालिक है…निदेशक स्वयं परेशान थे बिगड़े माहौल से…मैंने कहा या तो आप मेरा साथ दीजिए अन्यथा मैं कॉलेज छोड़कर जा रही हूँ और कारण भी वहीं लिखकर दूँगी जो मेरे साथ हुआ है…और अगर कोई उस लड़के को बचाने की कोशिश करता है तो उसकी अभद्रता के खिलाफ मैं FIR कराऊंगी मैं किसी कॉलेज में अपनी इज्जत गंवाने नहीं आती हूँ |

तब निदेशक मुझे कहते हैं कि मैडम इस प्रकार उस बच्चे का जीवन बर्बाद हो जायेगा..तब मैं उन्हें समझाती हूँ कि यदि आपने इसे नहीं रोका तो आपका कॉलिज बर्बाद हो जायेगा. इसी प्रकार की घटनाएं होती रहेंगी…आज मेरे साथ हुई है कल छात्राओं के साथ होगी…तब निदेशक और मैं मिलकर उस लड़के को 3 महीने तक निष्कासित कर देते हैं और उसे लिखकर अनिश्चित काल देते हैं…चपरासी उस लड़के के पास पत्र लेकर जाता है और उसको कॉलिज से बाहर कर देता है….मैं निदेशक महोदय से कहती हूँ आप किसी को ऑफिस में हुई हमारी बातों का जिक्र मत करना और इस छात्र को आप माफ़ मत करना चाहें कितने भी दबाव आए |

मैं इसे अच्छी प्रकार अनुशासित कर दूंगी… अब यह छात्र स्टाफ़ के पास जाता है छात्रों के पास जाता है यहां तक कि निदेशक के पास जाता है लेकिन इस छात्र की कोई सुनवाई नहीं होती…यह मेरे गाँव में आकर रिश्तेदारी निकालकर कहता है कि मैं इसकी बुआ लगती हूँ…तब मैंने कहा पाँव नोचते समय बुआ का ख्याल क्यूँ नहीं आया…तब यह बताता है कि मैं जेल काटकर आया हूँ सभी अध्यापक मुझसे डरते हैं और यहाँ तक कि छात्र भी मैं कॉलेज में जो भी करता हूँ उसमे अध्यापकों का हाथ होता है..उन्होंने ही मुझे आपके साथ ऐसा करने के लिए कहा था…तब मैं हँसने लगती हूँ और कहती हूँ कि बेटा अब उन अध्यापकों से कहिये की वह आपका निष्कासन समाप्त करा दे |

महीनों तक किसी की समझ में कुछ नहीं आता यह छात्र कॉलेज नहीं आता | शेष छात्र अध्यापक भी सीधे हो जाते हैं और कॉलेज में अनुशासन क्या होता है सबको समझ आ जाता है..उसके बाद कोई मुझसे पंगा नहीं लेता…छात्र और स्टाफ़ सभी आदर करने लगते हैं और मेरे व्यक्तित्व से प्रभावित भी होते हैं….निष्कर्ष जब आप स्वयं के लिए लड़ते हैं तभी आगे बढ़ते हैं.. इसीलिए बुरा वक्त आने पर दृढ़ता से उसका मुकाबला कीजिये…!

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