धौलपुर गांव में एक चालाक चोर रहता था। वह इतनी सफाई से चोरी करता था कि किसी की पकड़ में नहीं आता था। लोगों का मानना था कि वो किसी की आंख से काजल चोरी कर लेगा, तो भी किसी को भनक नहीं लगेगी। गांव में चोरी करते करते अब उसे बोरियत होने लगी थी। वह दूसरे चोरों के बीच अपनी धाक जमाना चाहता था। उसने सोचा कि क्यों न राजधानी जाकर राजमहल में सेंध मारी जाए। इससे दूसरे चोरों के बीच उसका रुतबा बढ़ेगा।
यह सोचकर वह राजधानी आ गया। अब समस्या यह थी कि राजमहल में चोरी कैसे की जाए। वहां सुरक्षा में पहरेदार 24 घंटे तैनात रहते थे। कई दिनों तक रेकी करने के बाद उसने ध्यान दिया कि महल के ऊपर जो घड़ी लगी है, वह समय बताने के लिए हर घंटे बजती थी। चोर के दिमाग में एक विचार आया। चोर रात में कुछ लोहे की कीलें और हथौड़ी लेकर राजमहल पहुंचा और जैसे ही घंटी बजती वह दीवार पर एक कील ठोक देता। इससे घंटी की आवाज में हथौड़े की आवाज दब जाती और किसी को पता भी नहीं चलता था। इस तरह उसने 12 कीलें ठोक दी। उन कीलों के सहारे वह महल में दाखिल हो गया और हीरे-जवाहरात चोरी करके रफूचक्कर हो गया।
अगले दिन जब राजा को चोरी का पता चला, तो उसे यह जानकर बड़ी हैरानी हुई कि इतनी सुरक्षा के बावजूद भी कैसे कोई राजमहल से चोरी करने में कामयाब हो सकता है। राजा ने नगर में सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का आदेश दिया और कहा कि कोई भी व्यक्ति रात में घूमता नजर आए, तो चोर समझकर गिरफ्तार कर लिया जाए।
दरबार में ऐलान के वक्त चोर भी भेष बदलकर मौजूद था। उसने चालाकी से पता लगा लिया कि कौन-कौन से सिपाही इस काम के लिए चुने गए हैं। उसने उन सिपाहियों के घर का पता लगाया और साधू का भेष धारण करके उनके घर पहुंच गया। वहां उसने पाया कि सभी सिपाहियों की पत्नियां चाहती थी कि उनका ही पति चोर को पकड़े। इस बात का फायदा उठाते हुए उसने सभी की पत्नियों को कहा कि पूरी रात तुम्हारे पति चोर की तलाश में बाहर रहेंगे। इस बीच चोर तुम्हारे पति का वेश धारण कर घर में घुसने की कोशिश करेगा। भले ही वह तुम्हारे पति की आवाज निकाले, लेकिन तुम उसे अंदर मत आने देना और गर्म कोयला फेंकना। इससे चोर घायल हो जाएगा और पकड़ा जाएगा। पत्नियों ने हामी भर दी।
वहीं, सिपाही पूरी रात गश्त करते रहे और चोर की तलाश करते रहे। सुबह के 4 बजे गए थे। सभी सिपाही चोर को ढूंढते-ढूंढते थक गए। तभी सारे सिपाहियों ने सोचा कि अब घर चलकर थोड़ा आराम कर लेते हैं। जब वे घर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया तो पत्नियों को शक हुआ। उन्होंने सोचा कि साधू की बात सच हो गई। जरूर ये चोर है, जो भेष बदलकर आया है। वे जलता हुआ कोयला अपने पतियों पर फेंकने लगीं। इससे सारे सिपाही घायल हो गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
दूसरे दिन राजा को जब सारी बात पता चली, तो वह चिंतित हो गया। उसने फौरन कोतवाल को आदेश दिया कि जितनी जल्दी हो सके उस चोर को पकड़कर हाजिर किया जाए। कोतवाल ने शहर में पहरा देना शुरू कर दिया। इस दौरान कोतवाल को एक युवक आता दिखा। कोतवाल ने उस लड़के से पूछा, कौन हो तुम?
युवक ने कहा, मैं चोर हूं।
कोतवाल को यकीन नहीं हुआ। भला इस तरह कोई खुद को चोर कैसे बता सकता है। उसे लगा युवक मजाक कर रहा है। कोतवाल ने आगे कहा, अगर तुम चोर हो तो चलो तुम्हें जेल में बंद करने का आदेश मिला है।
वह युवक (चोर) तैयार हो गया। कोतवाल उसे लेकर एक कमरे में गया, जिसे देखकर चोर ने बोला कि कोतवाल साहब इस जेल को तो कोई भी खोल सकता है। कोतवाल बोला, इसे खोला नहीं जा सकता। चोर बोला, आप अंदर जाइए, मैं बताता हूं इसे कैसे खोल सकते हैं।
कोतवाल मान गया और जैसे ही अंदर गया, चोर ने दरवाजा बंद करके लॉक कर दिया और हंसते हुए बोला। मैंने पहले ही बोला था मैं चोर हूं, आप माने नहीं। कोतवाल पूरी रात जेल में बंद रहा। सुबह सिपाहियों की मदद से कोतवाल किसी तरह जेल से बाहर आया और राजा के पास पहुंचकर उसने सारी कहानी सुनाई।
पूरी बात सुनकर राजा दंग रह गया। अब उसने खुद चोर को पकड़ने का फैसला किया। रात होने पर राजा ने गश्त देना शुरू कर दिया। इस दौरान चोर ने साधू का भेष बनाया और एक पेड़ के नीचे धूनी जमाकर बैठ गया। गश्त के दौरान राजा इधर-उधर के चक्कर काट रहा था। इस दौरान उसने पेड़ के नीचे साधू को बैठा देखा, तो पूछा कि बाबा इधर से किसी अजनबी इंसान को जाते देखा है क्या?
साधू के भेष में बैठा चोर बोला कि मैं ध्यान में था। इसलिए देख नहीं पाया। इस दौरान राजा को एक विचार आया। उसने तय किया कि वह साधू की पोशाक पहनकर पेड़ के नीचे बैठकर नजर रखेगा और साधू (चोर) को अपने कपड़े पहना देगा, ताकि वह नगर के चक्कर लगा सके। पहले तो चोर इस बात पर राजी नहीं हुआ, लेकिन काफी चर्चा के बाद वह राजा के कपड़े पहनने के लिए राजी हो गया।
राजा साधू के भेष में पेड़ के नीचे बैठ गया। इस दौरान चोर ने राजा के कपड़े पहने, घोड़े पर बैठा और महल जाकर आराम से सो गया। जब पूरी रात गुजर गई। सुबह के चार बजे के करीब राजा को लगा कि साधू तो अब तक लौटा नहीं और न ही कोई अजनबी इस रास्ते से गुजरा तो उसने महल लौट जाने का फैसला किया। जब वह महल के फाटक के पास पहुंचा, तो पहरेदारों ने सोचा कि राजा तो काफी पहले महल आ चुके हैं। ये जरूर कोई बहरूपिया है। उन्होंने राजा को बहरूपिया समझकर जेल में डाल दिया। भोर होने पर एक संतरी ने राजा को पहचाना और जेल से बाहर निकाला। वह राजा के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगा। राजा ने उसे माफ कर दिया। राजा ने महल पहुंकर देखा कि चोर रातभर उसके बिस्तर पर सोया और उसी की पोशाक में फरार हो गया।
अगले दिन राजा ने एलान किया कि अगर चोर उसके सामने आ जाएगा तो उसे बख्श दिया जाएगा। साथ ही उसे इनाम भी दिया जाएगा। चोर वहां मौजूद भीड़ से निकलकर बोला कि मैं ही चोर हूं। सबूत के तौर पर उसने राजा को उसकी पोशाक दिखाई और चोरी का सारा सामान भी वापस कर दिया। राजा ने अपने वादे के मुताबिक चोर को माफ कर दिया। राजा ने भेंट में उसे एक गांव दिया। साथ ही वादा लिया कि भविष्य में वह कभी चोरी नहीं करेगा। इस तरह चतुराई के बल पर चोर ने खुद को साबित किया और खुशी-खुशी जीवन यापन करने लगा।
कहानी से सीख : अगर इंसान में बुद्धिमानी और समझदारी है, तो वह विषम परिस्थितियों में भी खुद को साबित कर सकता है।