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सुधांशु मनी साहब

आज से कोई 6 साल पुरानी बात है, 2016 की रेलवे के एक बड़े अधिकारी थे, बहुत बड़े वाले पेशे से इंजीनियर थे उनके रिटायरमेंट में सिर्फ दो साल बचे थे
आमतौर पे रिटायरमेंट के नज़दीक जब अंतिम पोस्टिंग का समय आता है तो कर्मचारी से उसकी पसंद पूछ ली जाती है
पसंद की जगह अंतिम पोस्टिंग इसलिये दी जाती है ताकि कर्मचारी अपने अंतिम दो साल में पसंद की जगह घर मकान इत्यादि बनवा ले और रिटायर हो के सेटल हो जाये व आराम से रह सके पर उस अधिकारी ने अपनी अंतिम पोस्टिंग मांग ली ICF चेन्नई में
ICF बोले तो Integral Coach Factory मने रेल के डिब्बे बनाने वाला कारखाना
चेयरमैन रेलवे बोर्ड ने उनसे पूछा कि क्या इरादा है ?
वो इंजीनियर बोला अपने देश की अपनी खुद की सेमी हाई स्पीड ट्रेन बनाने का इरादा है
ये वो दौर था जब देश मे 180Km प्रति घंटा दौड़ने वाले Spanish Talgo कंपनी के रेल डिब्बों का ट्रायल चल रहा था
ट्रायल सफल था पर वो कंपनी 10 डिब्बों के लगभग 250 करोड़ रु मांग रही थी और तकनीक स्थानांतरण का करार भी नही कर रही थी
ऐसे में उस इंजीनियर ने ये संकल्प लिया कि वो अपने ही देश मे स्वदेशी तकनीक से Talgo से बेहतर ट्रेन बना लेगा उसके आधे से भी कम दाम में चेयरमैन रेलवे बोर्ड ने पूछा Are You Sure, We Can Do It ?
Yes Sir
कितना पैसा चाहिये R&D के लिये ?
सिर्फ 100 करोड़ रु सर
रेलवे ने उनको ICF में पोस्टिंग और 100 करोड़ रु दे दिया
उस अधिकारी ने आनन फानन में रेलवे इंजीनियर्स की एक टीम खड़ी की औऱ सभी काम मे जुट गए
दो साल के अथक परिश्रम से जो नायाब प्रॉडक्ट तैयार हुआ उसे हम ट्रेन 18 बोले तो वन्दे भारत रेक के नाम से जानते हैं
और जानते हैं 16 डब्बे की इस ट्रेन 18 की लागत कितनी आई ?
सिर्फ 97 करोड़ जबकि Talgo सिर्फ 10 डिब्बों के 250 करोड़ माँग रही थी
ट्रेन 18 भारतीय रेल के गौरवशाली इतिहास का सबसे नायाब हीरा है
इसकी विशेषता ये है कि इसे खींचने के लिए किसी इंजन की ज़रूरत नही पड़ती क्योंकि इसका हर डिब्बा खुद ही सेल्फ प्रोपेल्ड है, बोले तो हर डिब्बे में मोटर लगी है
दो साल में तैयार हुए पहले रैक को वन्दे भारत ट्रेन के नाम से वाराणसी नई दिल्ली के बीच चलाया गया
उस होनहार इंजीनियर का नाम था सुधांशु मनी साहब
2018 में ही Retire हो गये

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