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स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज

जल भरवे मंह कहु श्रंगार ज़रूरत कोई।
नीर भरन मिस बस में करना चाहौ मोई।।
तुम श्रंगार करके आती हो। यह पानी भरने के बहाने मुझे बस में करना चाहती हो।
प्रगटी बात गांव पुर फैली भोरे कान्हा।
तुम ठगिनी श्रंगार बनाए मों ढिंग आना।।
सब जगह चर्चा फैल गई। श्री कृष्ण तो बड़े भोले हैं और तुम ठगिनी हो। श्रंगार बना बना कर आती हो।
कबहूँ धरि मन हाथ हिये के साथ लगावौ।
कभी मेरा हाथ पकड़ कर अपने हृदय से लगाती हो।
कर चूमो कबहूँ लै अपने भाल लगावौ।।
कभी मेरा हाथ चूमकर अपने माथे से लगाती हो।
अंग धरौ पुनि गले लगावौ बिनु शरमाई।
अब भगवान ऐसा उपदेश दे रहे हैं — एक तो तुम मुझे पकड़ती हो, गले से लगाती हो। तुम्हें शर्म तो आती नहीं। फूलों की माला मेरे गले में डाल दी, लज्जा नहीं तुम्हें?
ठग मों बोलौ सबरी तुम तो हो बड़ साहू।
सब युबती इकट्ठी ह्वै घेरो बालक आहू।।
हाय हाय कैसी कहै हम कहं नजर लबार।
हाथ नैन बस में नहीं जहँ तहँ देत पसार।।
देखो ये कैसी कैसी बातें कर रहे हैं? हम पर आरोप लगा रहे हैं। ऐसे सब गोपियाँ आपस में चर्चा करती हैं।
छोड़ो घाट भरन दो पानी आय दुठानी।
हमको पानी भरने दो, सब लिपट गईं।
छोड़ो घाट भरन दो पानी आय दुठानी।
चुटकी काटें गाल मरोरें घेरा बानी।
और जब श्रीकृष्ण को चारों तरफ़ से घेर लिया। चुटकी काटें — हाथ से चिकौटी काटती हैं, हमको पानी भरने दो, हमको पानी भरने दो। तब भगवान ने एक लीला की।
दुरे सखा तबहीं कान्हां ने टेरि बुलाये।
दो चारन लठिया लै हाथन ऊंच उठाये।।
भगवान ने अपने छिपे हुए सखाओं को बुलाया। आ जाओ, आ जाओ, आ जाओ। अब ग्वाल बाल जो पहले से छिपे हुए थे। तो गौओं को चराने बाली जो लठियां थीं, हाथ में ऊपर उठा उठाकर बोले — आ गये, आ गये, आ गये, भीड़ लग गई।
अब तो —
घेर लई युवतीं तिन गागर लकुट चलाई।
युवतियों को घेर लिया और लठिया चलाई।
भड़ भड़ भई आवाज छिनक महँ भई सफाई।
ग्वालों ने ऐसी लाठी चलाई। भड़, भड़ की आवाज हुई और थोड़ी ही देर में सारी मटकियाँ फूट गईं।
बिखरन छोरे श्याम यमुन जल धार तिराने।
भीजे सारे बसन धार जो कपड़े आने।।
और तब। अब गोपियां कहतीं हैं।
हम तुम्हरी घनश्याम कहो क्यों ऐसे सतावो।
छीन लिओ सबको मन उल्टे ठगनि बतावो।।
हे कन्हैया! तुम्हीं ने सबका मन छीन लिया और हमको ठगिनी बता रहे हो।
छिन गगरी सगरी घर जावैं का कहैं जाई।
सारी गगरियाँ तो तुमने छीन लीं, अब हम घर में जाकर क्या कहेंगे?
घाट जमीं बानर की सेना कलश तोराई।।

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