“बरसात” के बाद शैलेन्द्र आर के कैंप का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे। राज कपूर और शंकर जयकिशन से उनकी करीबी दोस्ती हुई थी। ख़ास कर शंकर से उनकी ज्यादा जमती थी। आर के की श्री 420 के लिए गीतों का काम चल रहा था। शैलेन्द्र ने एक गीत का मुखड़ा लिखा और शंकर को दिखाया, शंकर बोले वाह शैलेंदर …
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होवे फुल्लां दी वरखा मन्दिर ते
फुल्लां दे नाल सजिया देखो रानी माँ दा मंदिर खिड़ खिड़ कर के हस्दी दाती सज्ज के बैठी अंदर चरना दे विच्च झुक गए आके अकबर जहे सिकंदर भंगड़े पाउँदै भगत मैया दे सब बन गए मस्त कलंदर माँ खुश है मस्त कलंदरां ते, होवे फुल्लां दी वरखा मन्दिर ते साजिया फुल्लां दे नाल माँ दा दरबार है शेर ते …
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