जय जय जय साईं राम, जय जय जय साईं श्याम । ले श्रीसाईं का नाम रे रोज सुबह और शाम, कितने ही भाव से तर गए ले साईं का नाम। जय जय साईं राम… साईं के दर पे जाईए तज माया अभिमान, ज्यो ज्यो पग आगे धरे कोटि को यज्ञ सामान। जय जय साईं … आज भी तेरा आसरा कल …
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श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी
श्रीसूत जी ने श्रीमद्भागवत में कहा है – ‘एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’ इस वचन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान ने यदि अपने किसी अवतार में अपने भगवान होने को साफ – साफ प्रकट किया है तो वह केवल श्रीकृष्णावतार में । अन्य अवतारों में उन्होंने इस भेद को इस प्रकार नहीं खोला । कहा जा सकता है …
Read More »व्रज जीवन का संगठन और तैयारी
शैशव काल से ही भगवान ने अपने प्रेम के प्रभाव से सारे वज्र को एकता के सांचे में ढाल दिया था । पहले तो जैसा हम ऊपर कह आये हैं, उन्होंने सब लोगों के हित की दृष्टि से सारे वज्र की संपत्ति को बराबर बांट दिया और मनुष्यों, पशुओं तथा प्रकृति को एकता के सूत्र में बांध दिया । साथ …
Read More »श्रीकृष्णोपदिष्ट कर्मयोग का स्वरूप
वेद आदि सतशास्त्रों में मनुष्यों के नि:श्रेयस के लिये उनके अंत:करण की योग्यता का विचार करके प्रवृत्तिधर्म और निवृत्तिधर्म का उपदेश किया गया है । कर्मयोग को निष्काम – कर्मयोग भी कहते हैं । कर्तापन के अभिमान को और कर्मफल की इच्छा को त्यागकर कर्तव्यबुद्धि से अपने वर्णाश्रम के धर्मों का श्रद्धा और प्रीतिसहित सावधानी के साथ पालन करना निष्काम …
Read More »यह जिन्दगी का कटु सत्य है। (This is the harsh reality of life.)
पुराने ज़माने की बात है। किसी गाँव में एक सेठ रहेता था। उसका नाम था नाथालाल सेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और बहुत धीरे से बोलता था की घर जाकर बोल दूंगा एक बार किसी …
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