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Tag Archives: adhik maas story

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 20

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 20

सूतजी बोले :- हे विप्रो! नारायण के मुख से राजा दृढ़धन्वा के पूर्वजन्म का वृत्तान्त श्रवणकर अत्यन्त तृप्ति न होने के कारण नारद मुनि ने श्रीनारायण से पूछा ॥ १ ॥ नारद जी बोले – हे तपोधन! महाराज दृढ़धन्वा ने मुनिश्रेष्ठ बाल्मीकि जी से क्या कहा? सो विस्तार सहित विनीत मुझको कहिये ॥  नारायण बोले – हे नारद! सुनिये। राजा दृढ़धन्वा ने महाप्राज्ञ …

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पुरुषोतम मास/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 19

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 19

श्रीसूत जी बोले – हे तपस्वियो! इस प्रकार कहते हुए प्राचीन मुनि नारायण को मुनिश्रेष्ठ नारद मुनि ने मधुर वचनों से प्रसन्न करके कहा ॥ हे ब्रह्मन्‌!तपोनिधि सुदेव ब्राह्मण को प्रसन्न विष्णु भगवान्‌ ने क्या उत्तर दिया सो हे तपोनिधे! मेरे को कहिये ॥ श्रीनारायण बोले – इस प्रकार महात्मा सुदेव ब्राह्मण ने विष्णु भगवान्‌ से कहा। बाद भक्तवत्सल विष्णु भगवान् ने …

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पुरुषोतम मास/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 18

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 18

नारद जी बोले – हे तपोनिधे! उसके बाद साक्षात्‌ भगवान्‌ बाल्मीकि मुनि ने राजा दृढ़धन्वा को क्या कहा सो आप कहिये ॥ श्रीनारायण बोले – वह राजर्षि दृढ़धन्वा अपने पूर्व-जन्म का वृ्त्तान्त सुनकर आश्चीर्य करता हुआ मुनिश्रेष्ठ बाल्मीकि मुनि से पूछता है ॥ दृढ़धन्वा बोला – हे ब्रह्मन्‌! आपके नवीन-नवीन सुन्दर अमृत के समान वचनों को बारम्बार पान कर भी मैं तृप्त …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 17

पुरुषोतम मास / अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 17

नारदजी बोल:- हे कृपा के सिन्धु! उसके बाद जागृत अवस्था को प्राप्त उस राजा दृढ़धन्वा का क्या हुआ? सो मुझसे कहिये जिसके सुनने से पापों का नाश कहा गया है नारायणजी बोले : अपने पूर्व जन्म के चरित्र को सुनने से आश्चर्ययुक्त तथा और सुनने की इच्छा रखनेवाले राजा दृढ़धन्वा से बाल्मीकि ऋषि फिर बोले ॥ बाल्मीकि मुनि बोले: इस तरह …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 16

पुरुषोतम मास / अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 16

श्रीनारायण बोले:- हे महाप्राज्ञ! हे नारद! बाल्मीकि ऋषि ने जो परम अद्भुत चरित्र दृढ़धन्वा राजा से कहा उस चरित्र को मैं कहता हूँ तुम सुनो ॥ १ ॥ बाल्मीकि ऋषि बोले:- हे दृढ़धन्वन! हे महाराज! हमारे वचन को सुनिये। गरुड़ जी ने केशव भगवान्‌ की आज्ञा से इस प्रकार ब्राह्मणश्रेष्ठ से कहा ॥  गरुड़जी बोले:- हे द्विजश्रेष्ठ! तुमको सात जन्म …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 15

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 15

श्रीनारायण बोले :- सुदेवशर्म्मा ब्राह्मण हाथ जोड़कर गद्‌गद स्वर से भक्तवत्सल श्रीकृष्णदेव की स्तुति करता हुआ ॥ हे देव! हे देवेश! हे त्रैलोक्य को अभय देनेवाले! हे प्रभो! आपको नमस्कार है। हे सर्वेश्वर! आपको नमस्कार है, मैं आपकी शरण आया हूँ ॥ २ ॥ हे परमेशान! हे शरणागतवत्सल! मेरी रक्षा करो। हे जगत्‌ के समस्त प्राणियों से नमस्कार किये जाने वाले! हे …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 14

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 14

श्रीनारायणजी बोले :- इसके बाद चिन्ता से आतुर राजा दृढ़धन्वा के घर बाल्मीकि मुनि आये जिन्होंने परम अद्भुत तथा सुन्दर रामचन्द्रजी का चरित्र वर्णन किया है ॥ राजा दृढ़धन्वा ने दूर से ही बाल्मीकि मुनि को आते हुए देखकर घबड़ाहट के साथ जल्दी से उठकर भक्तियुक्त हो उनके चरणों में दण्डवत्‌ प्रणाम किया ॥ २ ॥ भलीभाँति पूजा कर उत्तम आसन …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 13

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 13

ऋषि लोग बोले:- हे सूत! हे महाभाग! हे सूत! हे बोलने वालों में श्रेष्ठ! पुरुषोत्तम के सेवन से राजा दृढ़धन्वा शोभन राज्य, पुत्र आदि तथा पतिव्रता स्त्री को किस तरह प्राप्त किया और योगियों को भी दुर्लभ भगवान्‌ के लोक को किस तरह प्राप्त हुआ? ॥ हे तात! आपके मुखकमल से बार-बार कथासार सुनने वाले हम लोगों को अमृत-पान करने …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 12

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 12

नारदजी बोले:- जब भगवान् शंकर चले गये तब हे प्रभो! उस बाला ने शोककर क्या किया! सो मुझ विनीत को धर्मसिद्धि के लिए कहिये ॥  इसी प्रकार राजा युधिष्ठिर ने भगवान् कृष्ण से पूछा था सो भगवान् ने राजा के प्रति जो कहा सो हम तुमसे कहते हैं सुनो ॥ २ ॥ श्रीकृष्ण बोले:- हे राजन! इस प्रकार जब शिवजी …

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 11

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 11

नारदजी बोले:- सब मुनियों को भी जो दुष्कर कर्म है ऐसा बड़ा भारी तप जो इस कुमारी ने किया वह हे महामुने! हमसे सुनाइये ॥ श्रीनारायण बोले अनन्तर ऋषि-कन्या ने भगवान्‌ शिव, शान्त, पंचमुख, सनातन महादेव को चिन्तन करके परम दारुण तप आरम्भ किया ॥ सर्पों का आभूषण पहिने, देव, नन्दी-भृंगी आदि गणों से सेबित, चौबीस तत्त्वों और तीनों गुणों …

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