ना स्वर हैं, ना सरगम हैं, ना लय न तराना है। बजरंग के चरणो में एक फूल चढ़ाना है॥ तुम बाल समय में प्रभु, सूरज को निगल डाले, अभिमानी सुरपति के, सब दर्प मसल डाले, बजरंग हुए तब से, संसार ने जाना है। बजरंग के चरणो में एक फूल चढ़ाना है॥ जब राम नाम तुमने, पाया ना नगीने में, तुम …
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ऐसे बनाएं जिंदगी को ओर बेहतर
सदानंद स्वामी श्रद्धानंद के शिष्य थे। उन्होंने काफी मेहनत से ज्ञान प्राप्त किया था। लेकिन उन्हें अपने ज्ञान पर अहंकार हो गया। यह उनके व्यवहार में भी दिखाई देने लगा। वह हर किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करते। यहां तक कि वह अपने साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे अपने मित्रों से भी दूरी बनाकर रहने लगे। यह बात स्वामी …
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