मैया, कबहि बढ़ैगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी। तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्नै है लाँबी-मोटी। काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सी भुइँ लोटी। काँचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी। सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी। (2) तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ। दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूँढ़ि-ढँढ़ोरि आपही आयौ। खोलि …
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