बात द्वापरयुग की है। अज्ञातवास में पांडव रूप बदलकर ब्रह्मणों के वेश में रह रहे थे। एक दिन उन्हें कुछ ब्राह्मण मिले। वे राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में जा रहे थे। पांडव भी उनके साथ चल दिए। स्वयंवर में पानी में देखकर ऊपर घूम रही मछली पर निशाना लगाना था। वहां मौजूद सभी ने प्रयास किया। लेकिन …
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गुणनिधि पर भगवान शिव की कृपा
पूर्वकाल में यज्ञदत्त नामक एक ब्राह्मण थे । समस्त वेद शास्त्रादि का ज्ञाता होने से उन्होंने अतुल धन एवं कीर्ति अर्जित की थी । उनकी पत्नी सर्वगुणसंपन्न थी । कुछ दिनों के बाद उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा गया । बाल्यावस्था में इस बालक के कुछ दिन तो धर्मशास्त्रादि समस्त विद्याओं का अध्ययन किया, परंतु बाद …
Read More »भगवन्नाम समस्त पापों को भस्म कर देता है
कन्नौज के आचारच्युत एवं जातिच्युत ब्राह्मण अजामिल ने कुलटा दासी को पत्नी बना लिया था । न्याय – अन्याय से जैसे भी धन मिले, वैसे प्राप्त करना और उस दासी को संतुष्ट करना ही उसका काम हो गया था । माता पिता की सेवा और अपनी विवाहिता साध्वी पत्नी का पालन भी कर्तव्य है, यह बात उसे सर्वथा भूल चुकू …
Read More »मुनिवर गौतमद्वारा कृतघ्न ब्राह्मणों को शाप
एक बार इंद्र ने लगातार पंद्रह वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं की । इस अनावृष्टि के कारण घोर दुर्भिक्ष पड़ गया । सभी मानव क्षुब्धा तृषा से पीड़ित हो एक दूसरे को खाने के लिए उद्यत थे । ऐसी बुरी स्थिति में कुछ ब्राह्मणों ने एकत्र होकर यह विचार किया कि ‘गौतम जी तपस्या के बड़े धनी हैं । …
Read More »वेदमालि को भगवत्प्राप्ति
प्राचीन काल की बात है । रैवत मन्वंतर में वेदमालि नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहते थे, जो वेदांगों के पारदर्शी विद्वान थे । उनके मन में संपूर्ण प्राणियों के प्रति दया भरी हुई थी । वे सदा भगवान की पूजा में लगे रहते थे, किंतु आगे चलकर वे स्त्री, पुत्र और मित्रों के लिए धनोपार्जन करने में संलग्न …
Read More »आरोग्य – सुभाषित – मुक्तावली
सुख – दु:ख का कर्ता व्यक्ति स्वयं ही होता है, ऐसा समझकर कल्याणकारी मार्ग का ही अवलंबन लेना चाहिए, फिर भयभीत होने की कोई बात नहीं । परीक्षक – विवेकीजन ठीक – ठाक परीक्षा करके हितकर मार्ग का सेवन करते हैं, परंतु रजोगुण और तमोगुण से आवृत बुद्धिवाले लौकिक मनुष्य (हिताहितका विचार न करके तत्काल) प्रिय (मालूम होने वाले आचार …
Read More »राजा रंतिदेव
भारतवर्ष नररत्नों का भंडार है । किसी भी विषय में लीजिए, इस देश के इतिहास में उच्च – से – उच्च उदाहरण मिल सकते हैं । संकृति नामक राजा के दो पुत्र थे, एक का नाम था गुरु और दूसरे का रंति देव । रंतिदेव बड़े ही प्रतापी राजा हुए । इनकी न्यायशीलता, दयालुता, धर्मपरायणता और त्याग की ख्याति तीनों …
Read More »दो मित्र भक्त (Two friends devotee)
कुरुक्षेत्र में दो मित्र थे – एक ब्राह्मण और दूसरा क्षत्रिय । ब्राह्मण का नाम पुण्डरीक और क्षत्रिय का अंबरीष । दोनों में गाढ़ी मित्रता थी । खाना पीना, टहलना सोना एक ही साथ होता था । जवान उम्र में पैसे पास हो और कोई देख – रेख करने वाला न हो तो मनुष्य को बिगड़ते देर नहीं लगती । …
Read More »वेदमालिको भगवत्प्राप्ति
प्राचीन काल की बात है । रैवत – मंवतर में वेदमालि नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहते थे, जो वेदों और वेदांगों के पारदर्शी विद्वान थे । उनके मन में संपूर्ण प्राणियों के प्रति दया भरी हुई थी । वे सदा भगवान की पूजा में लगे रहते थे, किंतु आगे चलकर वे स्त्री, पुत्र और मित्रों के लिए धनोपार्जन करने …
Read More »चक्रिक भील
ब्राह्मण, श्रत्रिय, वैश्य, शूद्र और जो अन्य अन्त्यज लोग हैं, वे भी हरिभक्तिद्वारा भगवान की शपृरण होने से कृतार्थ हो जाते हैं, इसमें संशय नहीं है । यदि ब्राह्मण भी भगवान के विमुख हो तो उसे भी चाण्डाल से अधिक समझना चाहिए और यदि चाण्डाल भी भगवान का भक्त हो तो उसे भी ब्राह्मण से अधिक समझना चाहिए । द्वापर …
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