प्राचीन काल में सर्वसमृद्धिपूर्ण वर्धमान नगर में रूपसेन नाम का एक धर्मात्मा राजा था। एक दिन उसके दरबार में वीरवर नाम का एक गुणी व्यक्ति अपनी पत्नी, कन्या एवं पुत्र के साथ वृत्ति के लिए उपस्थित हुआ। राजा ने उसकी विनयपूर्ण बातों को सुनकर प्रतिदिन एक सहस्त्र स्वर्णमुद्रा का वेतन नियत कर सिंहद्वार के रक्षक के रूप में उसकी नियुक्ति …
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मैया तेरा बना रहे दरबार
मैया तेरा बना रहे दरबार बना रहे दरबार मैया तेरा तेरे पावन दर पे आके मैया हो सबका उद्धार मैया बना रहे दरबार प्रेम का दीपक ज्ञान की बाती मन मन्दिर में जले दिन राती मैया मिट जाये अंधकार मैया बना रहे दरबार गहरी नदिया, नाव पुरानी जीवन की यह अथक कहानी तू ही खेवनहार मैया बना रहे दरबार जो …
Read More »जो विपरीत परिस्थिति मे भी ठंडा रहे..(Which are cool even in adversity ..)
एक राजा का दरबार लगा हुआ था, क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये राजा का दरवार खुले मे लगा हुआ था. पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी .. महाराज के सिंहासन के सामने… एक शाही मेज थी… और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थीं. पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि सभी दरबार मे बैठे थे और राजा के …
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