कर दो श्रमा किशोरी अपराध मेरे सारे,बड़ी आस लेके अई दरबार में तुम्हारे, तुम्ही किरपा से श्यामा चलती है सारी श्रृष्टि,सदियों से रो रही हु ढालो दया की दर्स्तीउधार और पतन है सब हाथ में तुम्हारे,बड़ी आस लेके अई………….. सपने में भी था कुना श्री राधा नाम जपसे,मैं भी सावरू जीवन गह वन में गोर ताप से,मेरी भी झोपडी हो …
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