दुख सुख दोनो कुच्छ पल के, कब आए कब जाए दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढाल जाए (जे2) दुख सुख दोनो कुच्छ पल के, कब आए कब जाए दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढाल जाए (जे2) दुख तो हर प्राणी को होवय, राम ने भी दुख झेला धैर्या प्रेम से वन में रहे, प्रभु चौदह बर्ष …
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